दुनिया के सबसे पुराने खाने का नुस्खा मिल गया

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- Author, एश्ले विनचेस्टर
- पदनाम, बीबीसी ट्रैवल
"भेड़ का मांस लें. शोरबा तैयार करें. नमक और जौ के सूखे केक डालें. फारसी शैलॉट और दूध मिलाएं. हरा प्याज़ और लहसुन मसलकर डालें."
लैंब स्टू बनाने के ये निर्देश सामग्रियों की सूची भर हैं. इस अधूरी विधि को पूरा जानना मुमकिन नहीं, क्योंकि इसे लिखने वाला 4,000 साल पहले ही मर चुका है.
पाक कला, फ़ूड केमिस्ट्री और क्यूनीफ़ॉर्म (मेसोपोटामिया की प्राचीन लिपि) के विशेषज्ञों की टीम दुनिया के सबसे पुराने व्यंजन को फिर से बना रही है.
यह एक तरह की पुरातात्विक खोज है जिसमें ज़ायके के ज़रिये उस सभ्यता को गहराई से समझने की कोशिश हो रही है. इसमें येल विश्वविद्यालय के बेबीलोन संग्रह की मदद ली जा रही है.
गोज्को बर्जामोविक हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में असीरिया सभ्यता के विशेषज्ञ हैं. उन्होंने येल यूनिवर्सिटी के पीबॉडी म्यूजियम से मिली पेपरबैक-आकार की पट्टियों का अनुवाद किया है.
बर्जामोविक ने ही अलग-अलग विषयों के जानकारों को इकट्ठा किया है ताकि वे पुराने खाने को फिर से तैयार कर सकें.
वह कहते हैं, "यह किसी गीत को फिर से तैयार करने जैसा है. कोई एक सुर भी अर्थ बदल सकता है."

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पट्टियों में दर्ज नुस्खा
येल से आई तीन पट्टियां 1730 ईसा पूर्व की हैं. चौथी पट्टी करीब 1,000 साल बाद की है. ये पट्टियां मेसोपोटामिया क्षेत्र से मिली थीं, जिसमें बेबीलोन और असीरिया शामिल हैं.
आज ये क्षेत्र इराक़ में हैं- बगदाद के दक्षिण और उत्तर में सीरिया और तुर्की के कुछ हिस्सों तक फैले हुए.
तीन पुरानी पट्टियों में से जो सबसे सुरक्षित है उस पर स्टू और शोरबा बनाने के 25 नुस्खों की सामग्रियों की सूची है.
अन्य दो पट्टियों पर 10 अतिरिक्त नुस्खे हैं. आगे उनको पकाने की विधि और परोसने का तरीका बताया गया है, लेकिन वो हिस्से टूट गए हैं और पढ़ने लायक नहीं हैं.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की फ़ूड केमिस्ट पिया सोरेन्सेन कहती हैं, "उन नुस्खों में बहुत जानकारियां नहीं हैं, शायद चार लाइनें लंबी. इसलिए आप कई धारणाएं बना रहे हैं."
पिया सोरेन्सेन ने हार्वर्ड की साइंस एंड कुकिंग फेलो पैट्रिसिया जुराडो गोंज़ालेज़ के साथ मिलकर सामग्रियों के सही अनुपात का पता लगाया है.
गोंज़ालेज़ कहती हैं, "आज और 4000 साल पहले के सभी खाद्य पदार्थ समान हैं. मांस का टुकड़ा मूल रूप से मांस का टुकड़ा है."
"भौतिकी के नज़रिये से प्रक्रिया एक जैसी है. इसका विज्ञान जैसा आज है वैसा ही 4,000 साल पहले था."

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काम आया तजुर्बा
खाद्य वैज्ञानिकों को ज़ायके और खाना पकाने की विधियों के बारे में जो भी पता था, उसके आधार पर उन्होंने सामग्रियों के सही अनुपात की कल्पना की और प्रामाणिक नुस्खे के करीब तक पहुंचे.
सोरेन्सेन कहती हैं, "हम तजुर्बे से सीख सकते हैं. शोरबा यदि बहुत पतला है तो सूप बन जाएगा."
येल बेबीलोन कलेक्शन की एसोसिएट क्यूरेटर एग्नेट लासेन का कहना है कि शोधकर्ताओं की खोज से पता चला कि इराक में आज भी भेड़ के मेमने का स्टू उसी तरह बनाया जाता है जैसा मेसोपोटामिया सभ्यता के रसोइए तैयार करते थे.
पुरानी पट्टियों में दर्ज सामग्रियों के आधार पर चार व्यंजन तैयार किए गए.
पाश्रुतुम एक सूप है जिसे सर्दी होने पर दिया जाता है. इसमें लीक, धनिया और प्याज का ज़ायका होता है.
"एलामाइट" शोरबा या "मु एलामुटुम" उन दो विदेशी व्यंजनों में शामिल हैं जिनका जिक्र पट्टी पर किया गया है.
बर्जामोविक इसे आज के सर्वव्यापी विदेशी व्यंजनों लसाने या स्कियर या हम्म की तरह मानते हैं जो अपने मूल देश से निकलकर दुनिया भर में छा गए हैं और स्थानीय ज़ायके के मुताबिक उनमें थोड़ा अनुकूलन भी हुआ है.
"4,000 साल पुराने इन लेखों में व्यंजन होने का धारणा है. उनमें हमारे व्यंजन हैं और उनमें विदेशी व्यंजन हैं."
"विदेशी व्यंजन बुरे नहीं हैं. वे अलग हैं. वे कभी-कभी पकाने लायक हैं क्योंकि वे हमें नुस्खा देते हैं."

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परंपराओं से बदला ज़ायका
पशुओं के ख़ून से बना शोरबा आज के इस्लामिक और यहूदी परंपराओं में मना किया गया है, मगर एलामाइट शोरबे में इसका इस्तेमाल होता है.
पुराने ईरान से निकले एलामाइट शोरबे में सोआ की पत्तियां डाली जाती हैं. बर्जामोविक और लासेन के मुताबिक पट्टियों में इसका कहीं उल्लेख नहीं है.
यह अंतर आज भी दिखता है. इराकी व्यंजनों में शायद ही कभी सोआ का इस्तेमाल होता है, जबकि ईरानी खाने में यह आम है. बर्जामोविक को लगता है कि यह परिपाटी हजारों साल पहले ही तय हो गई होगी.
पाक इतिहासकार और इराकी व्यंजन विशेषज्ञ नवल नसरल्लाह ने मध्यकालीन अरबी खाने पर रिसर्च किया है.
उन्होंने मेसोपोटामिया से मिली पट्टियों और उस क्षेत्र में खाना पकाने की विधियों को जोड़ने में मदद की है.
नसरल्लाह को लगता है कि "विदेशी" व्यंजन यह संकेत देते हैं कि दो संस्कृतियों के बीच व्यापार होता था और लोग स्थानीय व्यंजनों के अलावा दूसरों के खाने की भी तारीफ करते थे.
बेबीलोन के लोग एलामाइट व्यंजनों में सोआ उसी तरह डालते होंगे जैसे हिस्पैनिक लोग खाने में धनिया डालते हैं.

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खाना सजाना भी कला है
रसोइयों में खाना सजाने का कौशल हमेशा से रहा है. मेसापोटामिया के रसोइये भी अमीर वर्ग की बड़ी दावतों के लिए विशेष तैयारी करते थे.
एक डिश चिकन पॉट पाई से मिलती-जुलती है जिसमें चिकेन को बेकमेल सॉस में लपेटकर आटे के स्तरों के बीच पकाया जाता है.
इसे ढंककर परोसा जाता है. ढक्कन हटाने के बाद खाने वाले को खाने का पता चलता है.
बगदादी में 10वीं सदी के खान-पान पर आधारित किताब अल-तबीख में इस विधि का कई बार जिक्र मिलता है. यह परंपरा आज भी इराक में प्रचलित है.
नसरल्लाह कहती हैं, "अरब जगत में, ख़ासकर इराक में, हमें डोल्मा जैसे भरवां व्यंजनों पर बहुत नाज़ होता है. रसोइयों की यह कला हमें विरासत में मिली है. मैं खाने की निरंतरता से हैरान हूं."
बेबीलोन में खाने को सजाने के लिए केसर या धनिया, अजमोद और चार्ड के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता था.
नसरल्लाह के मुताबिक दजला और फुरात नदियों में प्रचुरता से मिलने वाली मछलियों की चटनी का भी प्रयोग किया जाता था जिससे खाने में पांचवे ज़ायके उमामी के तत्व आएं.
इस इलाके में आजकल बनने वाले स्टू का रंग आम तौर पर टमाटर की वजह से लाल होता है, जो सदियों बाद यहां पहुंचा था. जीरा, धनिया, पुदीना, लहसुन और प्याज का ज़ायका भी पहचान में आता है.

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पुराना तरीका पुराना स्वाद
नसरल्लाह का कहना है कि भेड़ के पूंछ की चर्बी (अरबी में अल्या) 1960 के दशक तक इराक के खाने में एक ज़रूरी सामग्री मानी जाती थी.
"मैं प्राचीन काल से आज तक एक ही प्रवृत्ति देखती हूं. हम सिर्फ़ नमक और काली मिर्च नहीं मिलाते, हम स्वाद और सुगंध बढ़ाने के लिए कई तरह के मसाले मिलाते हैं."
"हम सब कुछ एक साथ नहीं मिलाते. हम उनको एक-एक करके कई चरणों में मिलाते हैं और उसे धीमी आंच पर पकने देते हैं."
भेड़ के मेमने का स्टू मी-ए-पुहदी जौ की रोटी के साथ खाया जाता था, जैसे आज भी लोग स्टू के शोरबे में रोटी डुबोकर खाते हैं.
विद्वानों ने महीनों तक वैज्ञानिक विधि से मसालों के टेस्ट और ट्रायल के बाद एक जायकेदार व्यंजन तैयार किया.
मिसाल के लिए, सोपवार्ट (कहीं-कहीं साबुन घास के नाम से मशहूर बारहमासी पौधा) का इस्तेमाल करने पर खाना कड़वा, झागदार और बेकार हो गया. यह गलत अनुवाद का नतीजा था.
इसी तरह, सीजनिंग के स्तर की एक मात्रा होती है. किसी भी डिश में नमक की एक मात्रा होती है, चाहे वह 4,000 साल पहले हो या आज हो. ज़्यादा नमक खाने को बेकार बना देगा.
देश बदला खाना नहीं बदला
मेसोपोटामिया के इन व्यंजनों में कई संस्कृतियों के तत्वों को पहचाना जा सकता है.
तुहु में लाल चुकंदर का इस्तेमाल होता है और इसमें अश्केनाज़ी यहूदियों के बोर्श के साथ-साथ इराकी यहूदियों के स्टू कोफ्ता शावंदर हामुद (मीठे और कड़वे चुकंदर के साथ पकाया हुआ मांस) जैसी खूबियां होती हैं.
लैंब स्टू बनाने के लिए भी ज़रूरी है कि मांस को भेड़ की चर्बी में तला जाए.
स्टू जैसा ही एक और व्यंजन है- इराकी पाचा. नसरल्लाह को याद है कि उनकी मां भेड़ के सभी अंगों के मांस को मिलाकर इसे तैयार करती थीं.
इस व्यंजन को भी उसी तरह तैयार किया जाता है जैसे मेसोपोटामिया की पट्टियों में लिखा गया है.
नसरल्लाह कहती हैं, "मैं सचमुच हैरत में हूं कि आज इराक में रोजाना का जो भी खाना है, वह पुराने जमाने में भी दैनिक भोजन था. इराक में स्टू, रोटी और चावल यही हमारा रोज का खाना है."
यह सचमुच हैरानी की बात है कि यह खाना और उसकी तमाम किस्में उस समय से लेकर आज तक बची हुई हैं.
"बेबीलोन के लोग इन व्यंजनों को पकाने में परिष्कृत स्तर तक पहुंच गए थे. तो कौन जानता है उन्होंने कितना पहले यह शुरू किया होगा."
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