स्कूल में बच्चे दादागिरी क्यों करने लगते हैं?

बच्चे

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, मनोचिकित्सकों ने कई तरह की दादागिरी के बारे में पता लगाया है
    • Author, केली ओक्स
    • पदनाम, बीबीसी फ़्यूचर

बचपन में बहुत से लोग दादागिरी के शिकार होते हैं. कुछ बच्चे तो ख़ुद ही ऐसे काम करते हैं. दूसरों को डराते-धमकाते हैं. हो सकता है कभी हमने भी, दूसरे बच्चों को बिना किसी बात के पीटा भी हो, या हमने ख़ुद मार खाई हो.

अंग्रेज़ी में इसे 'बुली' करना और हिंदी में 'धौंस जमाना' कहते हैं. स्कूल में बहुत से बच्चे ऐसे अनुभवों से गुज़रते हैं.

लेकिन जो बच्चे दादागिरी करते हैं, उन पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. डर उनके ज़हन की गहराइयों में बैठ जाता है. उनमें आत्मविश्वास और साहस की कमी हो जाती है. बच्चे तो मासूम होते हैं. फिर उनमें ये प्रवृत्ति कहां से पैदा हो जाती है?

यूनिवर्सिटी ऑफ़ नॉर्थ कैरोलिना की प्रोफ़ेसर डोरोथी स्पेलेज का कहना है कि इस बारे में अभी तक जितनी रिसर्च हुई थी, उसके आधार पर माना जा रहा था कि बहुत आक्रामक स्वभाव वाले बच्चे ही इस तरह का बर्ताव करते हैं. ऐसा स्वभाव बनाने में घर का हिंसक माहौल भी अहम भूमिका निभाता है.

ये ज़्यादातर ऐसे बच्चे होते हैं जिन्हें घर में तवज्जो नहीं मिलती. लेकिन अब नई रिसर्च बताती है कि तस्वीर बदल रही है. नई रिसर्च के मुताबिक़, दो ग्रुप या बच्चों के बीच आक्रामक टकराव में किसी भी तरह की ताक़त का असंतुलन होना शामिल है.

नई रिसर्च ये भी बताती है कि हिंसक माहौल से आने वाले बच्चे को भी अगर स्कूल में अच्छा माहौल और प्यार मिले, तो उसमें आक्रामकता पनपने की आशंका काफ़ी कम हो जाती हैं. इसमें एंटी बुलीइंग प्रोग्राम भी मददगार हो सकते हैं.

बच्चे

इमेज स्रोत, Getty Images

भीड़ का लीडर बनना पसंद

रिसर्च के मुताबिक़ हाल के वर्षों में दादागीरी के मामले में बच्चे ज़्यादा शातिर हो गए हैं. वो अब अपनी शख्सियत के इस पहलू का इस्तेमाल ज़रूरत के मुताबिक़ कूटनीतिक तरीक़े से करते हैं. आमतौर पर इन बच्चों का व्यवहार बहुत शालीन होता है. ये अध्यपकों की पसंद बन जाते हैं. लेकिन जब इन्हें ज़रूरत होती है, तो ऐसे बच्चे अपनी ताक़त का इस्तेमाल कर दूसरे बच्चों पर धौंस जमाते हैं.

प्रोफ़ेसर स्पेलेज के मुताबिक़ इस तरह के बच्चे भीड़ का लीडर बनना पसंद करते हैं.

एक अन्य रिसर्च इस बात पर ज़ोर देती है कि डराने-धमकाने वाले बच्चे दूसरे बच्चों से ज़्यादा ख़ुद को तंग करते हैं. इटली और स्पेन में स्कूल के बच्चों को एक एक्सरसाइज़ कराई गई जिसमें उन्हें या तो किसी पर धौंस जमानी थी, या ख़ुद पीड़ित होना था.

दूसरों पर दादागिरी करने वाले बच्चों का कहना था कि वो ख़ुद ज़्यादा प्रभावित हुए हैं. दूसरों को धमकाने के बाद वो ख़ुद मानसिक पीड़ा से गुज़रे हैं.

तकनीक के इस दौर में दादागिरी का तरीक़ा भी बदल गया है. अब किसी को सामने से डराना-धमकाना या मारपीट करना ही एक तरीक़ा नहीं है.

अब साइबर बुलिंग भी होने लगी है. फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि साइबर बुलिंग में किसी को बार-बार नहीं धमकाया जा सकता. क्योंकि एक बार सोशल मीडिया पर जो लिख दिया, तो वो एक ही समय में लाखों करोड़ों लोगों तक पहुंच जाता है.

साइबर बुलिंग

इमेज स्रोत, Getty Images

साइबर बुलिंग ज़्यादा हो रही है

लेकिन कुछ रिसर्चर इससे इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते. मनोवैज्ञानिक कैली ज़ानी-पेपेसी का कहना है कि स्कूल बुलिंग की तुलना में आज साइबर बुलिंग ज़्यादा हो रही है.

आज बच्चे क्लासरूम में भी स्मार्ट फ़ोन लेकर जाने लगे हैं. उन्होंने अपनी रिसर्च में पाया है कि अगर बच्चे अगल-बगल बैठे हों, तो भी वो सोशल मीडिया के ज़रिए धौंस जमाते हैं. उन्हें लगता है कि ऐसा करके उन्हें ज़्यादा लोग जान पा रहे हैं. उन्हें अपनी ताक़त का एहसास होता है.

अगर आपको पता चल जाए कि आपका बच्चा दूसरे बच्चों को बुली कर रहा है तो आपको क्या करना चाहिए?

सबसे पहले तो बच्चे के बर्ताव पर नज़र रखनी चाहिए. अगर कहीं से उसकी शिकायत मिलती है, तो उससे प्यार से पूछना चाहिए कि वो ये सब कहां से सीख रहा है. वो ऐसा क्यों कर रहा है. ऐसा करके उसे क्या हासिल हो रहा है.

साथ ही मां-बाप को अपने बर्ताव पर भी ग़ौर करना चाहिए. कहीं जाने-अनजाने वो ऐसा बर्ताव तो नहीं कर रहे जिसका ग़लत असर बच्चे पर पड़ रहा है.

स्कूल में ऐसे बहुत से बच्चे होते हैं, जिनके बर्ताव से दूसरे बच्चे डरते हैं. लेकिन अगर स्कूल में सभी बच्चों को मित्रता का माहौल दिया जाए, तो कोई भी बच्चा ना तो बुली करेगा और ना ही बच्चों के मन में भय पैदा होगा. स्कूल स्टाफ़ और शिक्षक इसमें अहम किरदार निभा सकते हैं.

बच्ची

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, बचपन में धौंस का शिकार रहे बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य की समस्या भी होती है

बुली करने वाले बच्चे बनते हैं पुलिस, वकील

रिसर्च के मुताबिक़ जिन स्कूलों में बच्चों में एहसास पैदा किया गया है कि स्कूल उनका है, वहां पढ़ने वाले सभी बच्चे उनके साथी हैं, वहां बुली करने वालों की संख्या बहुत कम पाई गई हैं.

2014 में स्पलेज़ और उनके साथियों ने पांच साल की रिसर्च प्रकाशित की थी. इसके मुताबिक़ स्कूल में की जाने वाली बुली और बाद की उम्र में किए जाने वाले यौन उत्पीड़न में गहरा संबंध है.

कम उम्र बच्चों में बुली करने की प्रवृत्ति में समलैंगिकों के प्रति प्रबल घृणा शामिल होती है. जो आगे चलकर यौन उत्पीड़न में बदल जाती है. यहां यौन उत्पीड़न करने वाले और पीड़ित होने वाले दोनों ही बच्चों को नहीं पता होता कि वो कितना संगीन अपराध कर रहे हैं.

शायद इसलिए भी कि स्कूल में टीचर्स उन्हें इसकी जानकारी नहीं देते. या जो बच्चे ऐसा बर्ताव करते हैं उन्हें रोकते नहीं. नज़रअंदाज़ कर देते हैं.

रिसर्च तो ये भी बताती है कि जो बच्चे स्कूल में बुली करते हैं, आगे चलकर वो पेशा भी कुछ ऐसा ही चुनते हैं जहां उनका ये बर्ताव काम आ सके. जैसे पुलिस, वक़ील या यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर आदि बन जाते हैं.

वहीं जो बच्चे बुली होते हैं, वो ऐसा पेशे चुनते हैं जहां वो दूसरों को ऐसे बर्ताव से बचाने में मदद कर सकें. लेकिन बुली होने का अनुभव ताउम्र उनके साथ साये की तरह रहता है.

(मूल लेख आप यहांपढ़ सकते हैं. बीबीसी फ़्यूचर के दूसरे लेख आप यहां पढ़ सकते हैं.)

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)