अंडा सेहत के लिए कितना भला, कितना बुरा

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- Author, जेसिका ब्राउन
- पदनाम, बीबीसी फ़्यूचर
बचपन से हम सब सुनते आए हैं-संडे हो या मंडे, रोज़ खाओ अंडे!
और, अगर सबसे परफ़ेक्ट खाने की बात होती है, तो यक़ीनन इस रेस में अंडा बाज़ी मार ले जाता.
अमरीका की कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी में पोषण विज्ञान के एसोसिएट प्रोफ़ेसर क्रिस्टोफ़र ब्लेसो कहते हैं, 'अंडा वो चीज़ है, जिसमें एक जीव के पनपने के लिए ज़रूरी हर तत्व मौजूद हैं. तो, ज़ाहिर है कि ये इसमें पोषक तत्वों की मात्रा ज़्यादा है.'
अन्य चीज़ों के साथ अंडा खाने से आपके शरीर को ज़्यादा विटामिन मिलता है. सलाद में अंडा मिलाने से हमें विटामिन ई की मात्रा ज़्यादा मिल जाती है.
लेकिन, कई दशकों से अंडे खाने को लेकर जानकारों में विवाद भी चला आ रहा है. क्योंकि अंडे में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा ज़्यादा होती है.
कुछ शोद अंडे को दिल की बीमारी से जोड़ कर देखते हैं. एक अंडे की ज़र्दी में 185 मिलीग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है, जो तय अमरीकी मानक यानी 300 मिलीग्राम प्रति दिन से कमोबेश दोगुना है.
तो, इसका क्या मतलब हुआ, क्या अंडा आदर्श भोजन नहीं है? क्या अंडे खाने से हमें फ़ायदा कम और नुक़सान ज़्यादा होता है?

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कोलेस्ट्रॉल की ज़रूरत
कोलेस्ट्रॉल, एक पीले रंग का फैट होता है, जो हमारे जिगर और आंतों में भी बनता है. कोलेस्ट्रॉल हमारे शरीर की हर कोशिका में पाया जाता है.
आम तौर पर हम इसे ख़राब मानते हैं. लेकिन, कोशिकाओं के निर्माण में कोलेस्ट्रॉल का बहुत महत्वपूर्ण काम होता है. हमारे शरीर को इसकी ज़रूरत विटामिन डी बनाने के लिए भी होती है और टेस्टोस्टेरॉन और ओस्ट्रोजेन हारमोन बनाने में भी कोलेस्ट्रॉल काम आता है.
हमारा शरीर अपनी ज़रूरत भर का कोलेस्ट्रॉल ख़ुद बना लेता है लेकिन, बहुत से जैविक उत्पादों जैसे बीफ़, अंडों और प्रॉन के साथ-साथ चीज़ और बटर में भी ये काफ़ी तादाद में होता है.
कोलेस्ट्रॉल को हमारे ख़ून में पायी जाने वाली लिपोप्रोटीन पूरे शरीर में पहुंचाती है. हर इंसान की बनावट के हिसाब से यही लिपोप्रोटीन, दिल की बीमारियों की वजह बन सकती है.
लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन यानी एलडीएल को बैड कोलेस्ट्रॉल कहा जाता है. ये जिगर से धमनियों और पेशियों तक ले जाया जाता है.

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रिसर्च से पता चला है कि लंबे वक़्त तक ये प्रक्रिया जारी रहने से ये कोलेस्ट्रॉल कुछ ख़ास रगों में जमा होने और इससे दिल की बीमारियां होने का ख़तरा होता है.
पर, दिक़्क़त ये है कि अब तक कोई भी रिसर्च पक्के तौर पर कोलेस्ट्रॉल का ताल्लुक़ दिल की बीमारी से स्थापित नहीं कर सकी है. आज अमरीका और ब्रिटेन की सेहत से जुड़ी गाइडलाइऩ में कोलेस्ट्रॉल को लेकर कोई पाबंदी नहीं है. बस लोगों को सैचुरेटेड और अनसैचुरेटेड फैट को लेकर सावधानी बरतने को ज़रूर कहा जाता है.
खाने की जिन चीज़ों में ट्रांस फैट होता है, उनसे एलडीएल की मात्रा हमारे शरीर में बढ़ जाती है. हालांकि, कुछ ट्रांस फैट कुछ मांस उत्पादों में ख़ुद ही बन जाते हैं. लेकिन, ज़्यादातर ट्रांस फैट, तेल या घी को बार-बार गर्म करने और इस्तेमाल करने से बनता है. इसके अलावा ये बेक्ड फूड, जैसे केक, पेस्ट्री और डोनट में और मार्जरीन में भी मिलता है.
वहीं, प्रॉन और अंडों में कोलेस्ट्रॉल ज़्यादा होता है, लेकिन, सैचुरेटेड फैट की मात्रा कम होती है.
कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी में पोषण विज्ञान की प्रोफ़ेसर मारिया लुज़ फर्नांडेज़ कहती हैं, ''अंडो में मांस से बहुत ज़्यादा कोलेस्ट्रॉल होता है. लेकिन सैचुरेटेड फैट से ख़ून में कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है.''
अब अंडों के पोषण देने का विवाद इस बात पर हो रहा है कि हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल को पचाने की क्षमता होती है.

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कोलेस्ट्रॉल पचाने की क्षमता
बोस्टन की टफ्ट्स यूनिवर्सिटी में पोषण विज्ञान की प्रोफ़ेसर एलिज़ाबेथ जॉनसन का कहना है, ''ज़्यादातर लोगों के शरीर में कोलेस्ट्रॉल से निपटने की क्षमता होती है, तो खाने से मिलने वाले कोलेस्ट्रॉल से लोगों को दिक़्क़त नहीं होती है. इंसान लंबे समय से कोलेस्ट्रॉल का सेवन कर रहा है. इसलिए अगर हम खाने में ज़्यादा कोलेस्ट्रॉल ले लेते हैं, तो हमारा शरीर ख़ुद से कम कोलेस्ट्रॉल बनाता है.''
अंडों से मिलने वाला कोलेस्ट्रॉल ज़्यादा ख़तरनाक नहीं है. क्योंकि कोलेस्ट्रॉल तभी नुक़सानदेह होता है, जब ये ऑक्सिडाइज़ हो और अंडों के कोलेस्ट्रॉल के साथ ऐसा नहीं होता. बल्कि कई कोलेस्ट्रॉल तो शरीर के लिए अच्छे होते हैं. एचडीएल यानी हाई डेंसिटि लिपोप्रोटीन लिवर तक जाता है, जहां इसे तोड़ कर शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है. ये दिल की बीमारियों से भी बचाता है.
मारिया लुज़ फर्नांडेज़ कहती हैं, ''लोगों को उस कोलेस्ट्रॉल की फिक्र करनी चाहिए, जो ख़ून में होता है. क्योंकि यही दिल की बीमारी की वजह बनता है.''

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कुछ रिसर्च में देखा गया है कि जो लोग मोटे होते हैं, उनको अंडे खाने से कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता. लेकिन, अगर आप सेहतमंद नहीं हैं और अंडे खाते हैं, तो इसका नकारात्मक असर हो सकता है.
हाल ही में हुई एक रिसर्च के ज़रिए इस बात को चुनौती दी गई कि अंडे खाने से सेहत को कोई नुक़सान नहीं होता. इस रिसर्च में 30 हज़ार से ज़्यादा लोग शामिल हुए थे. इनके 17 बरस के खान-पान का हिसाब-किताब लगाया गया. जिन लोगों ने रोज़ नाश्ते में अंडा खाया उनमें दिल की बीमारी की आशंका ज़्यादा देखी गई.
इस रिसर्च की अगुवा नॉरिना एलेन कहती हैं, ''300 मिलीग्राम कोलेस्ट्रॉल ज़्यादा लेने वालों में दिल की बीमारी की आशंका 17 फ़ीसद बढ़ी पायी गई. हम ने ये भी पाया कि हर आधे अंडे से दिल की बीमारियों की आशंका 6 प्रतिशत बढ़ गई.''
हालांकि, ये रिसर्च सीधे तौर पर अंडों का ताल्लुक़ मृत्यु दर से नहीं बताती है. फिर, इसके आंकड़े लोगों के ख़ुद के खान-पान के दावों पर आधारित थे. ऐसे में इस पर पूरी तरह विश्वास करना मुश्किल है.
वहीं, ज़्यादातर रिसर्च ये कहती हैं कि अंडे सेहत के लिए अच्छे होते हैं. चीन में 2018 में क़रीब 5 लाख लोगों पर हुई एक रिसर्च में पाया गया कि अंडे खाने वालों को दिल की बीमारी का ख़तरा कम होता है. लेकिन, ये रिसर्च भी लोगों के अपने दावों पर आधारित थी.

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अच्छे अंडे
इन रिसर्च से ये साफ़ है कि अंडों को लेकर बहस थमने वाली नहीं है. लेकिन, अंडों को लेकर कुछ बातें हमें जान लेनी चाहिए. अंडों में पाया जाने वाला एक तत्व, कोलाइन हमें अल्ज़ाइमर्स की बीमारी से बचाता है. ये लिवर की हिफ़ाज़त भी करता है.
लेकिन, इसका बुरा असर भी हो सकता है. इस तत्व को हमारी आंत में मौजूद बैक्टीरिया पचाते हैं. वो इसे तोड़ कर टीएमओ नाम के केमिकल में तब्दील करते हैं, जिसे हमारा लिवर पचाता है. लेकिन, लिवर में टीएमओ के टीएमएओ में भी तब्दील होने की आशंका रहती है, जिस का ताल्लुक़ दिल की बीमारियों से पाया गया है.
हालांकि, वैज्ञानिकों के बीच अब अंडों के फ़ायदों को लेकर समझ बढ़ी है. अंडों की ज़र्दी को लुएटिन नाम की प्रोटीन का अच्छा स्रोत माना जाता है. इस से आंखों की रोशनी बेहतर होती है और दिल की बीमारियों का ख़तरा कम होता है.
कुल मिलाकर अगर ये कहें कि अभी आप बेफिक्र होकर अंडे खाएं तो ग़लत नहीं होगा. लेकिन जैसा कि कहा गया है-अति सर्वत्र वर्जयेत. यानी रोज़ नाश्ते में अंडे ही खाना, सही विकल्प नहीं होगा. आख़िर, अंडों से जुड़ी अंग्रेज़ी की कहावत यही कहती है कि अपने सारे अंडे (यहां अंडों से मुराद है विकल्प) एक ही टोकरी में नहीं रखने चाहिए.
(यह लेख बीबीसी फ़्यूचर की कहानी का अक्षरश: अनुवाद नहीं है. मूल लेख आप यहांपढ़ सकते हैं. बीबीसी फ़्यूचर के दूसरे लेख आप यहां पढ़ सकते हैं.)
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