टीम इंडिया: एक थ्रिलर जो फिर हुई फ्लॉप

भारतीय क्रिकेट टीम जब भी किसी बड़े टूर्नामेंट या सीरीज़ में हिस्सा लेने जाती है दांव पर बहुत कुछ होता है. प्रायोजकों के करोड़ों रुपए, लाखों-करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के जज़्बात और न जाने क्या क्या.

लेकिन कई बार की तरह इस बार भी <link type="page"> <caption> टीम इंडिया</caption> <url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/sport/2012/10/121002_t20_india_safrica_sdp.shtml" platform="highweb"/> </link> एक ऐसी फिल्म निकली जो क्रिकेट नामक बॉक्स ऑफिस पर <link type="page"> <caption> औंधे मुंह गिरी</caption> <url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2012/10/121002_t20_india_lost_pix_gallery_sdp.shtml" platform="highweb"/> </link>. लेकिन सवाल है क्यों?

किसी भी हार के बाद वजह ढूंढना शायद सबसे आसान काम होता है, लेकिन फिर भी वजह तो ढूंढी ही जाती है. जिससे आगे चल कर उन गलतियों या कमियों पर काम किया जा सके.

बदकिस्मती

ऐसे में ज़हन में सबसे पहले गूंजने वाला शब्द है बदकिस्मती. जी हां, इसलिए क्योंकि अगर अभी तक के <link type="page"> <caption> टी20 विश्वकप</caption> <url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/sport/2012/09/120929_match_analysis_fma.shtml" platform="highweb"/> </link> मैचों पर ध्यान दिया जाए तो धोनी की टीम ने उतना बुरा भी नहीं खेला है.भारतीय टीमने इंग्लैंड को हराया, दक्षिण अफ्रीका को हराया और पाकिस्तान को भी मात दी.

इसके बावजूद टीम सेमी फ़ाइनल के लिए क्वालिफाई करने में नाकाम रही. लेकिन बदकिस्मती को भुलाकर थोड़ी बेहतर दूरदर्शिता की भी ज़रुरत है.

प्रतियोगिता के पहले ही से सबको पता था कि सुपर आठ में भारत सबसे मुश्किल ग्रुप में है जहां नेट रन रेट से लेकर एक-एक रन बाद में चल कर महत्त्वपूर्ण हो जाएंगे.

ऐसे में क्या भारतीय टीम को सारी गणित पर काम करने के बाद मैदान में नहीं उतरना चाहिए था. जब दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मैच में जीत पक्की हो गई थी तो टीम के उप-कप्तान विराट कोहली और युवराज को दक्षिण अफ्रीके के खिलाफ मैच में जल्दी जीत का लक्ष्य भेदना चाहिए था.

भाग्य का फेर देखिए, वेस्टइंडीज़ ने सबसे कम मैच जीते हैं और आज वो सेमीफ़ाइनल में मौजूद है.

फ़िटनेस और चयन

विराट कोहली
इमेज कैप्शन, सुपर आठ में भारत सबसे मुश्किल ग्रुप में था जहां नेट रन रेट से लेकर एक-एक रन महत्त्वपूर्ण था.

भले ही युवराज सिंह ने 'मैन ऑफ द मैच' जीता हो और भले ही उन्होंने प्रतियोगिता में अपनी जान की बाज़ी लगा दी हो लेकिन सच यही है कि युवी को अभी पूरी तरह मैच फ़िट होने में समय लगेगा.

ज़हीर खान का भी हाल वैसा ही है. अपने चार ओवर फेंकने के बाद ज़हीर मैदान पर धीमे पड़ जाते हैं. सहवाग कितने फ़िट हैं और कितनी गंभीरता से बल्लेबाज़ी कर पाते हैं इसपर भी कई सवाल उठे हैं.

अगर गंभीर का खराब फ़ॉर्म पिछले एक साल से जारी है तो क्या उन्हें कुछ दिन टीम से बाहर बैठ कर <link type="page"> <caption> घरेलू क्रिकेट</caption> <url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/sport/2012/09/120928_t20_cricket_women_sm.shtml" platform="highweb"/> </link> नहीं खेलना चाहिए. पियूष चावला के बजाय किसी और युवा स्पिनर को टीम में जगह क्यों नहीं दी गई. ऐसी क्या मजबूरी है किकप्तान धोनीका झुकाव बालाजी के प्रति हो ही जाता है. क्या इंग्लैंड के बल्लेबाजों को धाराशाई करने वालेभज्जीको भी अश्विन के बराबर मौके नहीं मिलने चाहिए थे.

कड़वा सच

कमी निकालना वाकई में बहुत आसान होता है लेकिन सच यही है कि किसी भी हार के बाद उसे निकालना भी ज़रूरी है.

सच यही है कि 2007 में पहला टी20 विश्वकप जीतने के बाद टीम इंडिया कभी भी इस प्रतियोगिता के सुपर आठ को पार नहीं कर सकी है. जबकि इन सभी में कप्तानी धोनी ने ही की है.

हालांकि उन्ही की कप्तानी में भारत ने 2011 में एकदिवसीय विश्वकप भी जीता था, लेकिन उसके बाद से नतीजे निराशाजनक रहे हैं.

इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में खेली गई टेस्ट श्रंखला में टीम को बुरी तरह रौंदा गया जबकि एशिया कप में भी बंगलादेश से हारने के बाद भारत फ़ाइनल तक में जगह नहीं बना सका.

अब टीम इंडिया टी20 विश्वकप से भी फ्लॉप होकर घर जाने की तैयारी में है. नई चुनी गई भारतीय चयनकर्ताओं की टीम को अब इस 'चलता है' वाले प्रयोग पर लगाम कसने का समय निश्चित तौर पर आ चुका है.