बूम-बूम बुमराह ने दिखाया कप्तानी के पहले ही मुक़ाबले में दम

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- Author, सी. शेखर लूथरा
- पदनाम, वरिष्ठ खेल पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए
ये 2012-2013 की बात है, सैयद मुश्ताक अली टी-20 ट्रॉफ़ी के मुक़ाबले खेले जा रहे थे. गुजरात की ओर से लंबे दुबले-पतले तेज़ गेंदबाज़ ने अपना डेब्यू किया था. लोगों की नज़रें इस गेंदबाज़ के एक्शन पर टिक जा रही थी.
इस गेंदबाज़ ने पंजाब के ख़िलाफ़ फ़ाइनल मुक़ाबले में 14 रन देकर तीन विकेट चटका कर अपनी टीम को ना केवल चैंपियन बनाया, बल्कि दूसरे लोगों को भी आकर्षित किया.
ये गेंदबाज़ जसप्रीत बुमराह थे. अहमदाबाद में रह रहे सिख पंजाबी परिवार में जन्मे बुमराह जब पांच साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया. उनका पालन-पोषण स्कूल शिक्षिका मां ने किया और वे धीरे धीरे तेज़ गेंदबाज़ी में दक्ष होते गए.
सैयद मुश्ताक अली ट्ऱ़ॉफ़ी के फ़ाइनल में मैन ऑफ़ द मैच आँके जाने का फ़ायदा बुमराह को हुआ.
मुंबई इंडियंस के टीम प्रबंधन ने उन्हें उसी सीज़न के लिए टीम में शामिल कर लिया. 19 साल का ये गेंदबाज़ अचानक से क्रिकेट फैंस में काफ़ी पॉपुलर हो गया. हालांकि इसमें बुमराह के एक्शन का योगदान भी कम नहीं था.
पहले सीज़न में बुमराह को बहुत ज़्यादा मौक़ा नहीं मिला लेकिन रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के ख़िलाफ़ 32 रन पर तीन विकेट लेकर उन्होंने अगले सीज़न के लिए टीम में जगह पक्की कर ली थी.

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आईपीएल से चमका सितारा
आईपीएल के अगले दो सीज़न में बुमराह का प्रदर्शन ऐसा चमकदार रहा है कि उन्हें 2016 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ खेलने वाली वनडे टीम में चुन लिया गया. इसके बाद बुमराह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
पांच साल बाद, 2021 में वे भारत की ओर से सबसे तेज़ी से 100 विकेट लेने वाले तेज़ गेंदबाज़ बने. उन्होंने सर्वकालिक क्रिकेट के महान ऑलराउंडरों में शुमार कपिल देव को पछाड़ते हुए ये कारनामा अपने नाम किया.
27 साल के बुमराह ने 24वें टेस्ट मैच में 100वां विकेट हासिल किया. जबकि कपिल देव ने 21 साल की उम्र में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ 1980 में अपने 25वें टेस्ट में इस मुकाम को हासिल किया था.
उम्र को लेकर चौंकिए नहीं, कपिल देव ने महज 19 साल की उम्र में अपना टेस्ट करियर शुरू किया था. जबकि बुमराह ने टेस्ट करियर जनवरी, 2018 में 24 साल की उम्र में शुरू किया था.
लेकिन बुमराह के करियर में एक अहम मोड़ तब आया जब भारतीय क्रिकेट टीम सिरीज़ की बची हुई आख़िरी टेस्ट खेलने के लिए इंग्लैंड पहुंची. कोविड की वजह से यह सिरीज़ पहले पूरी नहीं हो सकी थी.
इस बार टीम के नियमित कप्तान रोहित शर्मा के कोविड संक्रमण की चपेट में आने के बाद बुमराह को टेस्ट मैच में कप्तानी का मौक़ा मिला और उस मौक़े को बुमराह ने दोनों हाथों से लपक लिया.

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टीम का बेहतरीन नेतृत्व
बुमराह परंपराओं से हटकर कमाल दिखाने वाले क्रिकेटर रहे हैं. जब वे इंटरनेशनल क्रिकेट में आए थे, तब शायद ही किसी को अंदाज़ा रहा होगा कि वे एक दिन भारतीय टीम की कप्तानी करेंगे.
इसकी एक वजह तो यह भी रही है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और चयनकर्ताओं का भरोसा तेज़ गेंदबाज़ों की जगह बल्लेबाज़ों को कप्तानी देने में ज़्यादा दिखी है.
कपिल देव इसके अपवाद रहे, उन्होंने अपनी कप्तानी में 1983 में भारत को वर्ल्ड कप दिलाकर अविश्वसनीय उपलब्धि हासिल की थी.
वे भारतीय क्रिकेटरों के माइंडसेट को बदलने वाले क्रिकेटर के तौर पर जाने गए. उन्होंने ड्रॉ के लिए खेलने वाली टीम को जीत के लिए आक्रामक खेल दिखाने वाली टीम में बदलने की शुरुआत की.
1987 में कपिल देव की कप्तानी के बाद ये पहला मौक़ा था जब भारतीय टेस्ट टीम की कमान किसी तेज़ गेंदबाज़ के पास आयी. बुमराह को करियर के शुरुआती दिनों से ही बूम-बूम कहा जाने लगा था लेकिन कभी उनकी तुलना हरियाणा हरिकेन कपिल देव की ऑलराउंड क्षमता से नहीं हुई.

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बल्लेबाज़ी का वर्ल्ड रिकॉर्ड
बुमराह ने अपने लिए एक पहचान ज़रूर बनायी, वे किसी भी फॉरमेट में टीम को ज़रूरत के तौर पर ब्रेक थ्रू दिलाने वाले गेंदबाज़ बन गए.
नयी गेंद के साथ वे ख़तरनाक गेंदबाज़ के तौर पर स्थापित हो गए लेकिन उनकी बल्लेबाज़ी की काबिलियत को बहुत मौक़े नहीं मिले.
लेकिन कप्तान के तौर पर पहले ही टेस्ट में उन्होंने बल्लेबाज़ी का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया. उन्होंने स्टुअर्ट ब्रॉड के एक ओवर में 29 रन जड़ दिए. ब्रॉड के इस ओवर में कुल 35 रन बने.
इससे पहले टेस्ट क्रिकेट में सबसे महंगा ओवर एक ओवर में 28 रन का था. लेकिन बुमराह ने अपनी बल्लेबाज़ी से कपिल देव के पुराने कारनामे की याद दिलाई. 1990 में लॉर्ड्स टेस्ट में कपिल देव ने लगातार चार छक्के लगाकर भारत को फॉलोअन से बचाया था.
दरअसल बुमराह ने बेहतरीन अंदाज़ में टीम का नेतृत्व भी किया है, हालांकि यह तय है कि फ़िट होने के बाद कप्तानी रोहित शर्मा को मिल जाएगी लेकिन बुमराह ने मौक़े को यूं ही नहीं जाने दिया.
हालांकि टेस्ट के पहले दिन वे टॉस हार गए. टीम की शुरुआत भी ख़राब रही लेकिन ऋषभ पंत और रविंद्र जडेजा ने टीम को वापस मुक़ाबले में ला दिया. दोनों ने बेहतरीन शतक बनाया और आख़िर में बुमराह ने टीम का स्कोर 400 के पार पहुंचा दिया.
बल्ले से धमाल मचाने के तुरंत बाद वे जल्दी ही गेंदबाज़ी से कमाल करते नज़र आए. शुरुआत के तीनों विकेट उन्होंने झटके और भारत को पहली पारी में बड़ी बढ़त हासिल करने में मदद की. दूसरी पारी में भी शुरुआती तीन विकेट में दो बुमराह ने ही झटके.
चार दिन के खेल में अगर भारतीय टीम मौजूदा फॉर्म में चल रही इंग्लैंड को कड़ी चुनौती देती दिख रही है तो इसमें बुमराह का अहम योगदान रहा.
चार दिन के खेल के अंतिम सत्र को छोड़ दें तो बुमराह के नेतृत्व में टीम इंडिया का पलड़ा भारी दिखा था. लेकिन जो रूट और जॉनी बेयरेस्टो ने ज़ोरदार बल्लेबाज़ी करके इंग्लैंड की वापसी करायी है.
पाँचवें दिन जीत हासिल करने के बुमराह के नेतृत्व में गेंदबाज़ों को अपना सारा दमख़म झोंकना होगा.
दोस्ताना रवैया रखने वाला कप्तान
वैसे पिछले छह साल से भारतीय क्रिकेट टीम की कामयाबी में बुमराह का अहम योगदान रहा है, इसके चलते उन्हें कप्तानी सौंपने को आप उनको मिला रिवॉर्ड भी कह सकते हैं.
बुमराह की अगुआई में भारत के तेज़ गेंदबाज़ों की एक बैटरी भी स्थापित हुई है. कभी स्पिनरों के लिए जाने जानी वाली टीम में मोहम्मद शमी, ईशांत शर्मा, उमेश यादव, भुवनेश्वर कुमार और मोहम्मद सिराज़ जैसे बेहतरीन गेंदबाज़ मौजूद हैं. बुमराह हर तरह की पिच और हर तरह की टीम के साथ कामयाब गेंदबाज़ साबित हुए हैं.
अपने छोटे रन अप के साथ वे 140 किलोमीटर प्रति घंटे की औसत रफ़्तार से गेंदबाज़ी करते हैं. उनकी गेंदबाज़ी का एक्शन ही उनकी सबसे बड़ी ताक़त है और यही सामने वाले बल्लेबाज़ को परेशानी में डालता है.
वैसे दिलचस्प ये है कि अभी ऑस्ट्रेलिया ने पैट कमिंस को अपना कप्तान बनाया है. कमिंस एक बेहतरीन गेंदबाज़ से कप्तानी के दबाव के बीच अच्छे ऑलराउंडर के तौर पर उभर कर सामने आए हैं. साथ ही टीम के साथी खिलाड़ियों के लिए वे एक सहज उपलब्ध कप्तान साबित हुए हैं.
बुमराह ने ऐसा ही दिखाया है. महज चार दिनों के खेल के दौरान, उन्होंने जिस तरह की कप्तानी दिखायी है, उसकी लोग प्रशंसा कर रहे हैं. वे टीम के साथी खिलाड़ियों के साथ दोस्ताना रवैया दिखाते नज़र आए हैं, हर से सलाह मशविरा करते नज़र आए हैं और तो और विपक्षी टीम से सम्मान हासिल करने में भी कामयाब रहे हैं.

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बुमराह में जैंटलमैन वाला भाव भी दिखता है. अपनी आक्रमकता से वे टीवी कैमरों में घुसते नज़र नहीं आते हैं, हमेशा मुस्कुराते और कामयाबी पर संयम भरा जश्न मनाते नज़र आते हैं. साफ कहें तो वे विराट कोहली से एकदम अलग कप्तान साबित हुए हैं.
पहले टेस्ट में वे अपनी टीम को जीत दिला सकते हैं लेकिन महज एक कामयाबी के आधार पर उनके बारे में किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा जा सकता. कप्तानी ऐसी ज़िम्मेदारी है जो समय के साथ बेहतर बनाती है और अलग -अलग परिस्थितियों में अभी बुमराह का इम्तिहान अभी बाक़ी है.
पहले भी कपिल देव, इमरान ख़ान, शॉन पोलक, जैसन होल्डर, वसीम अकरम और वक़ार यूनिस जैसे कप्तानों के बारे में लोगों ने तब राय बनायी जब वे थोड़े लंबे अंतराल तक टीम की कप्तानी कर चुके थे, इस लिहाज से बुमराह को अभी और मौक़े मिलने चाहिए.
हालांकि रोहित शर्मा और केएल राहुल को देखते हुए अभी बुमराह को ये मौक़ा मिले, ये संभव होता नज़र नहीं आता, लेकिन टीम प्रबंधन ज़रूरत पड़ने पर बुमराह को यह मौक़ा दे सकता है.

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बुमराह से कितनी उम्मीदें
2020 से अब तक भारत ने जो आठ टेस्ट सिरीज़ में हिस्सा लिया है, उसमें से रोहित तीन में अनुपलब्ध रहे हैं जबकि राहुल महज दो में खेल पाए. इस दौरान बुमराह महज एक बार अनुपलब्ध रहे हैं, ये बात उनके फेवर में जा सकती है.
बुमराह को यहां भी कपिल देव से सीख लेनी चाहिए. कपिल देव ने चोट या अनफिट होने के चलते कभी कोई टेस्ट मैच मिस नहीं किया था. उन्होंने 434 टेस्ट विकेट लेने के साथ साथ पांच हज़ार से ज़्यादा टेस्ट रन भी बनाए.
बुमराह अपने गेंदबाज़ी एक्शन के चलते चोटग्रस्त हो चुके हैं. वे टेस्ट मैचों में नो बॉल भी डालते रहे हैं और बल्लेबाज़ के तौर पर अभी काफ़ी कुछ साबित करना है. लेकिन इन कमियों के बावजूद वे भारत के लिए मैच जिताऊ गेंदबाज़ साबित हुए हैं.
रोहित 36 साल के हो चुके हैं और के एल राहुल चोट की वजह से नियमित तौर पर उपलब्ध नहीं हो पाते हैं, ऐसे में बुमराह को आने वाले समय की चुनौतियों के लिए पूरी तरह तैयार होना चाहिए. उम्मीद की जानी चाहिए कि वे उम्मीदों का बोझ उठाने के लिए तैयार हैं.
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