धोनी: 'पल दो पल का शायर' कुछ अनहोनी करने लौटा है टीम इंडिया में

    • Author, भूमिका राय
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

''ज़िंदगी में कई बार ऐसे मौक़े आते हैं, जब शब्द कम पड़ जाते हैं, और आज वैसा ही एक मौक़ा है. मैं यही कहूँगा कि आप हमेशा वो शख़्स रहोगे, जो बस की आख़िरी सीट पर मौजूद रहता था. मैंने पहले भी ये कहा है और आगे भी कहूँगा कि आप हमेशा मेरे कप्तान रहोगे.''

ये शब्द भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली के थे, तारीख़ थी 16 अगस्त 2020 और आख़िरी सीट पर बैठने वाले, विराट के हमेशा कप्तान रहने वाले शख़्स का नाम है महेंद्र सिंह धोनी.

टीम इंडिया की बस की वो आख़िरी सीट एक बार फिर भरने वाली है क्योंकि महेंद्र सिंह धोनी की टीम इंडिया में वापसी हुई है. लेकिन एक खिलाड़ी के तौर पर नहीं, बल्कि टीम के मेंटॉर यानी मार्गदर्शक के तौर पर.

आईसीसी टी-20 विश्व कप के लिए भारतीय टीम का एलान हो चुका है. टीम की कमान विराट कोहली के हाथों में है. बुधवार देर शाम हुई टीम की घोषणा में यूं तो अमूमन वही सारे खिलाड़ी थे जो पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय मैच खेलते आ रहे हैं लेकिन तीन बदलावों ने लोगों को सबसे अधिक चौंकाया.

  • शिखर धवन इस टीम का हिस्सा नहीं हैं.
  • आर अश्विन को टीम में जगह दी गई है.
  • भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी मार्गदर्शक की भूमिका में टीम के साथ होंगे.

शिखर धवन के ना खेलने के पीछे जहाँ उनके व्यक्तिगत कारणों को माना जा रहा है, वहीं आर अश्विन की चार साल बाद टी-20 में हुई वापसी क्रिकेट प्रेमियों के लिए किसी ट्रीट से कम नहीं है.

लेकिन सबसे अधिक चर्चा महेंद्र सिंह धोनी की वापसी की है. महेंद्र सिंह धोनी को विश्व कप खेलने वाली टीम में बतौर मेंटर शामिल किया गया है.

बीसीसीआई के सचिव जय शाह के हवाले से बताया गया कि- महेंद्र सिंह धोनी टी-20 वर्ल्ड कप खेलने वाली टीम के मार्गदर्शक की भूमिका में रहेंगे.

इस घोषणा के साथ ही इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि आख़िर बीसीसीआई ने महेंद्र सिंह धोनी को मार्गदर्शक क्यों चुना और क्या उनके आने से टीम को फ़ायदा होगा?

धोनी का अनुभव, खिलाड़ियों का प्रदर्शन

पूर्व क्रिकेटर और चयनकर्ता रह चुके मदन लाल कहते हैं कि यह एक अच्छा फ़ैसला है और इसे लेकर किसी तरह का विवाद नहीं होना चाहिए.

मदन लाल ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "जहाँ तक मेरी समझ है महेंद्र सिंह धोनी को मार्गदर्शक की भूमिका देना अच्छा है. इसकी वजह ये है कि महेंद्र सिंह धोनी के पास अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का काफ़ी अनुभव है और उन्होंने विश्व कप भी जिताया है, तो निश्चित तौर पर उनका अनुभव काम आएगा."

मदन लाल कहते हैं कि महेंद्र सिंह धोनी को रिटायरमेंट लिए भी ज़्यादा समय नहीं हुआ है तो ऐसा भी नहीं है कि उन्हें खेल के नए फॉर्मेट या दूसरी चीज़ों की जानकारी ना हो, ऐसे में उनका चयन सही है.

हालाँकि मदन लाल ये भी कहते हैं कि मार्गदर्शक, बूस्ट कर सकता है, सलाह दे सकता है लेकिन इस बात से इनक़ार नहीं किया जा सकता है कि प्रदर्शन तो खिलाड़ियों की होती है.

वह कहते हैं, "महेंद्र सिंह धोनी के पास अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का अच्छा अनुभव है. वो अपने अनुभव के आधार पर मार्गदर्शन कर सकते हैं लेकिन किसी भी खेल का नतीजा तो खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस पर ही निर्भर करता है."

कोहली और शास्त्री की सहमति शामिल

वरिष्ठ खेल पत्रकार विजय लोकपल्ली महेंद्र सिंह धोनी के चयन पर कहते हैं कि यह एक अच्छा फ़ैसला है.

वह कहते हैं, "इस बात को ऐसे समझिए कि भारतीय टीम में इस समय बहुत से नए खिलाड़ी हैं जो अभी अंतरराष्ट्रीय प्रेशर को उस तरह से संभालना नहीं जानते हैं. उनके पास अंतरराष्ट्रीय मैचों की स्ट्रेटजी और रिक्वायरमेंट को लेकर अनुभव उतना नहीं है. हालाँकि कुछ अनुभवी खिलाड़ी हैं लेकिन ज़्यादातर खिलाड़ी नए हैं और धोनी की यह ख़ासियत रही है कि वो नए खिलाड़ीयों को आगे लाने के लिए ही जाने जाते हैं. ऐसे में नए खिलाड़ियों को उनके होने से फ़ायदा तो होगा ही."

विजय लोकपल्ली आगे कहते हैं कि धोनी कप्तान रहे हैं, विकेट-कीपर रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय मैचों में उनका अनुभव काफी अच्छा है. हर विपक्षी टीम को खेलने के लिए, हर विपक्षी खिलाड़ी को खेलने के लिए अलग स्ट्रेटजी और प्रेशर-हैंडलिंग की ज़रूरत होती है, जो धोनी बखूबी जानते हैं. ऐसे में टीम को फ़ायदा तो होगा ही.

वह कहते हैं कि कुछ लोग धोनी बनाम कोहली की बात कह रहे हैं लेकिन धोनी को मार्गदर्शक बनाए जाने के फ़ैसले में निश्चित तौर पर कोहली और रवि शास्त्री की सहमति होगी, तभी बीसीसीआई ने यह फ़ैसला लिया है.

वह कहते हैं, "भले लोग कुछ भी बोलें लेकिन धोनी और कोहली एक-दूसरे का सम्मान करते हैं. धोनी ने जब कप्तानी छोड़ी तो उन्हें यक़ीन रहा होगा कि कोहली संभालने योग्य हैं तभी उन्होंने कप्तानी छोड़ी. वहीं कोहली भी उन्हें अपना मार्गदर्शक बताते रहे हैं."

विजय लोकपल्ली का मानना है कि धोनी एक ऐसे खिलाड़ी हैं जो खेल पर फ़ोकस करते हैं ना कि खेल के नतीजे पर और यही उनके कामयाब होने की वजह भी है और यही प्रेशर हैंडलिंग सिखाने के लिए उन्हें बतौर मार्गदर्शक चुना गया है.

विजय लोकपल्ली कहते हैं, "आश्चर्य इस बात का नहीं है कि बीसीसीआई ने महेंद्र सिंह धोनी को मार्गदर्शक चुना है. आश्चर्य इस बात का अधिक है कि धोनी ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है."

पूर्व खिलाड़ी आकाश चोपड़ा महेंद्र सिंह धोनी के चयन को टीम के हक़ में लिया गया फ़ैसला बताते हैं.

वो कहते हैं कि महेंद्र सिंह धोनी को मार्गदर्शक चुनकर बोर्ड की तरफ़ से यह तो स्पष्ट कर दिया गया है कि वो इस विश्व कप का अंत पोडियम पर ट्रॉफ़ी के साथ करने की उम्मीद रखते हैं.

आकाश चोपड़ा कहते हैं, "टी-20 वर्ल्ड कप की कल्पना धोनी के बिना नहीं कर सकते हैं. उन्हीं के नेतत्व में टीम पहले भी विश्व कप जीती है और यह अच्छी बात है कि धोनी को लेकर आया गया है."

तो क्या कोहली पर भरोसा नहीं था कि वो जीत सुनिश्चित कर सकेंगे?

इस सवाल के जवाब में आकाश चोपड़ा कहते हैं कि ऐसा नहीं है. इसे ऐसे समझिए जब सौरव गांगुली कप्तान थे तो सुनील गावस्कर ने भी यह भूमिका निभाई थी तो क्या सौरव गांगुली ख़राब कप्तान थे? नहीं...बिल्कुल भी नहीं. बात बस इतनी सी है कि कोहली अच्छे कप्तान हैं लेकिन धोनी, धोनी हैं. वो किसी भी रूप में अगर टीम से जुड़ते हैं तो टीम को उनके अनुभव से फ़ायदा होगा ही. और अंत में मायने भी यही रखता है.

लेकिन अगर टीम जीतती है तो सेहरा किसके सिर बंधेगा?

इसके जवाब में आकाश चोपड़ा कहते हैं कि 2007 में भी मार्गदर्शक थे कुछ समय के लिए ही लेकिन थे. लेकिन विश्व कप जीत का सेहरा किसके सिर बंधा? जीत का सेहरा हमेशा खिलाड़ियों और कप्तान के सिर पर ही बंधता है लेकिन धोनी का होना (चाहे जिस रूप में) टीम इंडिया के लिए अच्छा है.

महेंद्र सिंह धोनी का क़द

वे भारतीय क्रिकेट के सबसे कामयाब कप्तान रहे हैं. जानकार और विशेषज्ञ महेंद्र सिंह धोनी के अनुभव को इस फ़ैसले की सबसे अहम वजह मानते हैं और निश्चित तौर पर धोनी का क्रिकेट करियर उनके क़द को दर्शाता है.

वर्ल्ड क्रिकेट में भी महेंद्र सिंह धोनी इकलौते ऐसे कप्तान हैं, जिन्होंने आईसीसी की तीनों बड़ी ट्रॉफ़ी पर कब्ज़ा जमाया है.

धोनी की कप्तानी में भारत आईसीसी की वर्ल्ड-टी20 (2007 में), क्रिकेट वर्ल्ड कप (2011 में) और आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफ़ी (2013 में) का ख़िताब जीत चुका है. इतना ही नहीं 2009 में उन्होंने भारतीय टीम को टेस्ट क्रिकेट में नंबर वन बनाया. इस स्थान पर भारत लगभग 600 दिनों तक बना रहा.

धोनी की कप्तानी की झलक साल 2007 में ही दुनिया को मिल गई थी. वनडे वर्ल्ड कप में बुरी तरह परास्त होने के बाद टीम इंडिया झुके हुए कंधों के साथ वेस्ट इंडीज़ से भारत लौटी थी. कुछ ही महीनों में पहला टी 20 विश्व कप खेला जाना था.

लेकिन वनडे वर्ल्ड कप की हार से खिलाड़ी इतना टूट चुके थे कि कई सीनियर प्लेयर टी20 विश्वकप का हिस्सा ही नहीं बने. ऐसे में टीम में कई सारे युवा खिलाड़ियों को शामिल किया गया और टीम की कमान युवा महेंद्र सिंह धोनी को सौंप दी गई.

उसी विश्वकप में धोनी ने अपनी चतुर-चालाक कप्तानी से विपक्षियों को हैरान किया तो क्रिकेट प्रेमियों का दिल भी जीत लिया. धोनी ने भारत को घरेलू मैदानों पर 21 टेस्ट मैचों में जीत दिलाई. यह किसी भी भारतीय का सबसे बेहतर रिकॉर्ड है.

धोनी ने सबसे ज़्यादा 332 इंटरनेशनल मैचों में टीम की कप्तानी की है. इतना ही नहीं धोनी ने विकेट के पीछे 195 खिलाड़ियों को स्टंप आउट किया है. यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है. धोनी ने भारत की ओर से 350 वनडे मैच खेले जिनमें उन्होंने 50 से ज़्यादा की औसत से 10,773 रन बनाए.

वनडे क्रिकेट में धोनी 10 शतक और 73 अर्धशतक बनाए. इसके साथ ही उन्होंने विकेटकीपर के तौर पर 321 कैच लपके और 123 खिलाड़ियों को स्टंप आउट किया. टी-20 क्रिकेट में धोनी ने भारत की ओर से 98 मैच खेले, जिसमें उन्होंने 37 से ज़्यादा की औसत से 1617 रन बनाए.

टेस्ट क्रिकेट से एमएस धोनी ने 2014 में ही संन्यास ले लिया था. 90 टेस्ट मैचों में धोनी ने 38 से ज़्यादा की औसत से 4876 रन बनाए. टेस्ट मैचों में धोनी ने विकेट के पीछे 256 कैच लपके और 38 स्टंप किए. बल्लेबाज़ के तौर पर उन्होंने छह शतक और 33 अर्धशतक जमाए.

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