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महेंद्र सिंह धोनी को किसी से डर क्यों नहीं लगता था?
- Author, आदेश कुमार गुप्त
- पदनाम, वरिष्ठ खेल पत्रकार
पिछले कुछ दिनों से यूट्यूब पर भारत के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का एक विडियो वायरल हो रहा था, जिसमें वह अपनी कप्तानी में जीते गए दो विश्व कप को अपनी ज़िंदगी के कभी ना भूलने वाले पल बता रहे थे.
उनमें एक पल था साल 2007 में दक्षिण अफ़्रीका में जीता गया पहला आईसीसी टी-20 विश्व कप और दूसरा साल 2011 में अपनी ही ज़मीन पर जीता गया विश्व कप.
धोनी ने माना कि जब टीम टी-20 विश्व कप जीतकर स्वदेश लौटी तब मुंबई में जिस तरह एयरपोर्ट से लेकर कई मील तक सड़क के दोनों किनारे लोगों की भीड़ थी, वह दृश्य अद्भुत था. दूसरा पल जब साल 2011 में आईसीसी विश्व कप के फ़ाइनल में भारत ख़िताबी जीत के क़रीब था तब अचानक स्टेडियम वंदे मातरम के शोर से गूंज उठा.
उन्हीं महेंद्र सिंह धोनी ने अचानक हमेशा की तरह सबको हैरान करते हुए 15 अगस्त की शाम को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया.
महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में भारत ने आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफ़ी भी अपने नाम की. उनकी कप्तानी में ही भारतीय क्रिकेट टीम पहली बार टेस्ट क्रिकेट में भी आईसीसी की नंबर एक रैंकिंग वाली टीम भी बनी.
महेंद्र सिंह धोनी के नाम टेस्ट, एकदिवसीय और टी-20 अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में ढ़ेरो रिकॉर्ड हैं लेकिन उन्हें भारत के सबसे कामयाब कप्तान के तौर पर भी जाना जाएगा.
महेंद्र सिंह धोनी आईपीएल यानी इंडियन प्रीमियर लीग के भी सबसे कामयाब कप्तान रहे. उनकी कप्तानी में चेन्नई सुपर किंग्स सबसे अधिक बार सुपर फ़ोर में पहुँची और तीन बार चैंपियन भी रही. साल 2018 में तो महेंद्र सिंह धोनी ने अपने ही दम पर चेन्नई सुपर किंग्स को चैंपियन बनाकर दम लिया.
आख़िरकार महेंद्र सिंह धोनी के खेल और कप्तानी में ऐसा क्या था जो उन्हें दुनिया के दूसरे खिलाड़ियों और कप्तान से अलग करता है और कैसे वह भारत के सबसे कामयाब कप्तान साबित हुए.
इसे लेकर क्रिकेट समीक्षक विजय लोकपल्ली ने कहा कि पहले तो उनके अंतराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने की टाइमिंग देखें जो बहुत शानदार है.
आमतौर पर बीसीसीआई से सबको किसी खिलाड़ी के ऐसे एलान का पता चलता है, लेकिन यहं किसी को कुछ पता नही चला. जैसे उन्होंने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लिया वैसे ही उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया. वह भी अपने दम पर.
उनकी कप्तानी को लेकर विजय लोकपल्ली कहते हैं कि वह सबसे अलग और निडर कप्तान थे. सभी कहते हैं कि वह जीत के लिए खेलते हैं लेकिन धोनी वाक़ई जीत के लिए खेलते थे. हारने का डर समाप्त करने का ट्रेंड या रिवाज उन्होंने ही शुरू किया.
धोनी अपनी कप्तानी में कई नए प्रयोग करते थे. नए खिलाड़ियों को मौक़ा देने में पीछे नहीं हटते थे. विजय लोकपल्ली मानते हैं कि भारतीय इतिहास में टाइगर मंसूर अली ख़ान पटौदी, सौरव गांगुली और महेंद्र सिंह धोनी इनमें कप्तान के तौर पर धोनी की जगह सबसे अलग है.
धोनी की कप्तानी की ख़ासियत को लेकर विजय लोकपल्ली कहते हैं कि वह ज़िम्मेदारी लेते थे. कठिन समय में वह गेंदबाज़ का साथ देते थे जैसे साल 2007 के टी-20 विश्व कप के फ़ाइनल में उन्होंने जोगिंदर शर्मा को आख़िरी ओवर में गेंद दी तो उन्हें आश्वासन दिया कि जो भी होगा उसकी ज़िम्मेदार वो लेंगे.
हालांकि हर कप्तान ऐसा कहता है लेकिन धोनी हर बार खिलाड़ी का साथ देते थे, तभी खिलाड़ियों को भी लगता था कि यह कप्तान मुझे धोखा नहीं देगा, दबाव में नहीं डालेगा.
धोनी ख़ुद छोटी जगह जगह से आए थे इसलिए उन्हें इस बात का बख़ूबी अहसास भी था. उन्हें पता था कि नए खिलाड़ी पर दबाव होता है.
वह एकदिवसीय क्रिकेट में ख़ुद शुरुआती चार पारियों में नाकाम रहे लेकिन पाकिस्तान के ख़िलाफ विशाखापट्टनम में पाँचवीं पारी में ज़बर्दस्त बल्लेबाज़ी कर उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि अपने करियर में वह क्या करेंगे.
आईपीएल में उनकी कामयाब कप्तानी को लेकर विजय लोकपल्ली कहते हैं कि आईपीएल क्योंकि बीसीसीआई का घरेलू टूर्नामेंट है इसलिए उसे वह ज़्यादा तवज्जो नही देंगे क्योंकि धोनी ने दो विश्व कप जिताए इससे बड़ा और क्या हो सकता है.
आईपीएल चाहे कोई दस बार जीते लेकिन विश्व कप जीतने का मतलब आपने पूरे विश्व को हराया है. साल 1983 के बाद हर बार भारत सोचता था कि वह विश्व कप जीत जाएगा लेकिन भारत साल 2011 में धोनी की कप्तानी में जीत पाया और वह भी उनके बेहद शानदार शॉट्स छक्के की बदौलत.
ख़ुद धोनी द्वारा 2007 के टी-20 और 2011 के विश्व कप को महत्वपूर्ण माने जाने को लेकर विजय लोकपल्ली कहते हैं कि क्योंकि धोनी भी तो वैसे ही थे. धोनी पहले अंडर-19 खेले फ़िर ज़ोनल क्रिकेट और फ़िर भारत की टीम में आए. वह जब भी भारत के लिए खेले वह अपना हुनर अपनी क़ाबिलियत सब कुछ मैदान पर लेकर जाते थे.
बाकि खिलाड़ी भी देश के लिए खेलते हैं लेकिन धोनी का जज़्बा अलग था. जिस तरह धोनी फ़ौज के साथ जुड़े, पुलिस और फ़ौजियों के साथ समय बीताना उन्हें अच्छा लगता था, साहसी आदमी, यह सब लोगों को याद रहेगा. क्रिकेट के मैदान में अब धोनी दिखाई नहीं देंगे लेकिन आईपीएल में बेशक वह दिखेंगे, लेकिन उनकी कमी हमेशा खलेगी.
क्या बात धोनी को दूसरों से अलग करती है इसे लेकर विजय लोकपल्ली कहते हैं कि वह अपने दम पर खेले.
पाकिस्तान के ख़िलाफ शतक बनाने के बाद टीम में रहने के लिए एक बार भी उन्हें चयनकर्ता या कप्तान के सहयोग की ज़रूरत नहीं पड़ी. हर कप्तान चाहता था कि धोनी टीम में हो. चयनकर्ता पहले उनका नाम लिखते थे उसके बाद बाकि चौदह नाम चुने जाते थे, यह उनकी ख़ासियत थी.
सचिन तेंडुलकर, वीवीएस लक्ष्मण, राहुल द्रविड़, वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर को टीम से बाहर किए जाने जैसे विवादों को लेकर विजय लोकपल्ली कहते हैं कि ऐसा मानना शायद धोनी का अपमान करना है. धोनी अकेले टीम नहीं चुनते थे.
बीसीसीआई के चयनकर्ता यह काम करते हैं. सबको पता है कि राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण निर्णय ले चुके थे, सहवाग के बल्ले से रन नहीं निकल रहे थे और तेंडुलकर ने तो सोच ही लिया था कि वह दो सौ टेस्ट मैच के बाद संन्यास ले लेंगे.
इसके विपरीत धोनी ने तो बहुत से खिलाड़ियों का साथ दिया. धोनी के बारे में अब देखियेगा यह सभी खिलाड़ी खुलकर बताएँगे कि वह कितने मददगार थे.
महेंद्र सिंह धोनी को लेकर पूर्व चयनकर्ता और बल्लेबाज़ रहे अशोक मल्होत्रा कहते हैं कि यह तो दीवार पर लिखी इबारत सा था.
पिछले विश्व कप के बाद उन्हें एक बार भी भारतीय टीम में नहीं चुना गया. चयनकर्ता धोनी को छोड़कर भविष्य की टीम देख रहे थे.
सब जानते हैं कि धोनी से ज़्यादा महान कप्तान, महान खिलाड़ी, महान विकेटकीपर, एकदिवसीय क्रिकेट का चैंपियन कोई नहीं देखा लेकिन हर खिलाड़ी का वक़्त होता है.
अशोक मल्होत्रा आगे कहते हैं कि धोनी जैसा खिलाड़ी जब चाहे क्रिकेट को अलविदा कह सकता है लेकिन वह पिछले विश्व कप के बाद ऐसा करते तो बेहतर होता.
सबको मालूम था कि धोनी आईपीएल का इंतज़ार कर रहे थे और टी-20 विश्व कप में अपनी संभावना तलाश रहे थे, लेकिन कोरोना वायरस ने टी-20 विश्व कप को टाल दिया और उनकी उसे खेलने की तमन्ना अधूरी रह गई.
धोनी के संन्यास के साथ ही क्रिकेट के युग का एक इतिहास समाप्त हो गया, उस पर विराम लग गया.
एक कप्तान के रूप में उनके योगदान को लेकर अशोक मल्होत्रा कहते हैं कि वह बहुत बेहतरीन कप्तान थे. ऐसा कप्तान जिसमें पहले टी-20 और फिर साल 1983 के बाद आईसीसी विश्व कप क्रिकेट टूर्नामेंट जीता.
कोई तमग़ा ऐसा नहीं है जो उनके पास नहीं था. वह कमाल के कप्तान और ऐसे कप्तान थे जो बहुत शांत स्वभाव के खिलाड़ी थे. वह ना तो कभी तनाव में आते थे और ना ही कभी उत्तेजित होते थे.
ऐसे व्यक्तित्व वाला खिलाड़ी किसी ने नहीं देखा. खिलाड़ी और कप्तान बहुत आए और गए लेकिन मुश्किल हालात में जितने ठंडे दिमाग़ से धोनी कप्तानी करते थे उससे उनका अलग ही रूप निखरकर सामने आता था. उनके मैदान पर लिए गए निर्णय हमेशा क़ाबिलेतारीफ़ रहे.
आईपीएल में उनकी कप्तानी और कामयाबी को लेकर अशोक मल्होत्रा कहते हैं कि चेन्नई सुपर किंग्स आईपीएल में उनकी घर की टीम थी.
चेन्नई पहुँचते ही उन्हें लगता है जैसे वह घर लौट आए हैं. चेन्नई सुपर किंग्स से उनका लगाव है. वह ख़ुद भी बेहतरीन खेलते हैं और जिस तरह से उन्होंने उसे उभारा, जिस तरह से मैच जितवाए वैसा सिर्फ़ धोनी ही कर सकते है.
चेन्नई सुपरकिंग्स को धोनी सुपर किंग्स के नाम से जाना जाता है. चेन्नई सुपर किंग्स चाहेगी कि धोनी पचास साल की उम्र तक उससे जुड़े रहें.
धोनी को भारत किस तरह से याद रखेगा इसे लेकर अशोक मल्होत्रा कहते हैं कि भारत के पास सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन तेंडुलकर और अनिल कुंबले आए.
हो सकता है धोनी उस स्तर के ना दिखाई दें लेकिन धोनी का जो योगदान है, जज़्बा है, उन्होंने भारत को जो जीत दिलाई, चाहे वह कप्तान के रूप में चाहे बल्लेबाज़ के तौर पर उसके आधार पर उन्हें भारत के शीर्ष चार खिलाड़ियों में जगह मिलेगी.
महेंद्र सिंह धोनी को लेकर एक और पूर्व चयनकर्ता और ऑलराउंडर रहे मदन लाल कहते हैं कि उनका क्रिकेट करियर बहुत शानदार रहा. उनकी कामयाबी को देखते हुए कहा जा सकता है कि वह भारत के सर्वश्रेष्ठ कप्तान रहे.
उन्होंने भारत को ना जाने कितने टेस्ट मैच और एकदिवसीय मैच जिताएँ. धोनी की सबसे बड़ी ख़ासियत यह थी कि वह बड़ी ख़ामोशी से अपना काम कर जाते थे. इसलिए उन्हें कैप्टन कूल कहा जाता था.
मदन लाल आगे कहते हैं कि वह निर्णय लेने में माहिर थे. टीम को संभालने की उनकी क्षमता बेजोड़ थी. धोनी का युवा खिलाड़ियों के साथ बेहतरीन तालमेल था. मीडिया को कैसे देखा जाए यह भी उन्हें आता था.
आईपीएल में उनकी कप्तानी को लेकर मदन लाल कहते हैं कि टी-20 में टीम कैसे बनानी है यह उन्हें बख़ूबी आता था. टीम पर नियंत्रण बनाना उन्हें आता है इसलिए चेन्नई सुपर किंग्स ने उन्हें पकड़ रखा है.
महेंद्र सिंह धोनी कप्तान के रूप में सबसे अलग क्यों दिखते हैं इसे लेकर मदन लाल कहते हैं कि किसी भी देश के लिए लगातार शानदार प्रदर्शन करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है.
साल 1983 के विश्व कप के बाद भी जीतना बहुत ज़रूरी था. धोनी ने पहले टी-20 का विश्व कप जीता उसके बाद 2011 का विश्व कप.
आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट में भारत बहुत मज़बूत स्थिति में है इसका पूरा श्रेय सौरव गांगुली, विराट कोहली और महेंद्र सिंह धोनी को जाता है. इन्होंने भारत को जीतना सीखाया, वैसे भी हारने वाली टीम को कोई नहीं चाहता.
मदन लाल कहते हैं कि धोनी को हर हाल में मैच जीताने वाले खिलाड़ी के अलावा कैप्टन कूल, ज़बर्दस्त बल्लेबाज़ के तौर पर याद किया जाएगा. और यही बड़े खिलाड़ी की पहचान भी है कि कैसे वह अपनी टीम को चैंपियन बनाता है.
धोनी को लेकर भारत के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर भी कई बार कह चुके हैं कि वह चाहते हैं कि उनकी आँखों के सामने हमेशा वह दृश्य रहे जब धोनी ने साल 2011 के विश्व कप में छक्का लगाकर भारत को चैंपियन बनाया.
इससे बड़ी बात किसी खिलाड़ी को क्या नसीब होगी.
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