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टोक्यो ओलंपिक में हारने के बाद लवलीना बोलीं, 'खुश नहीं हूं, बेहतर कर सकती थी'
टोक्यो ओलंपिक के वेल्टरवेट महिला मुक्केबाज़ी के सेमी फ़ाइनल मुक़ाबले में बुधवार को भारतीय मुक्केबाज़ लवलीना बोरगोहाईं को दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी तुर्की की बुसेनाज़ सुर्मेनेली ने हरा दिया.
लवलीना ने भारत के लिए दूसरा ओलंपिक मेडल पीवी सिंधु के कांस्य पदक जीतने से पहले ही 30 जुलाई को सुनिश्चित कर लिया था.
सेमीफ़ाइनल में जीतकर उनके पास कांस्य को रजत पदक में बदलने का मौक़ा था लेकिन तुर्की की शीर्ष वरीयता खिलाड़ी के आगे लवलीना टिक नहीं पाईं. पहले ही राउंड में सुर्मेनेली ने उन्हें हरा दिया और आगे का मैच बहुत आसानी से तुर्की की खिलाड़ी ने जीत लिया.
सेमी फ़ाइनल में हार के बाद क्या बोलीं
सेमी फ़ाइनल में मिली हार के बाद उन्होंने कहा कि वो ख़ुश नहीं हैं क्योंकि वो और बेहतर कर सकती थीं.
बीबीसी संवाददाता जाह्नवी मूले से बातचीत में उन्होंने कहा कि उन्होंने बड़ी प्रतियोगिताओं में कांस्य पदक जीता है, लेकिन इस बार उनकी नज़र स्वर्ण पदक पर थी.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "हारकर आई हूँ, अच्छा तो बिल्कुल नहीं लग रहा है. हर बार ब्रॉन्ज़ मेडल पर रुकना पड़ता है मुझे. मेडल तो मेडल होता है, ओलंपिक का हो या कोई और. अच्छी बात है की मेडल आया."
"मेहनत गोल्ड मेडल के लिए किया था. इस बार हंड्रेड पर्सेंट श्योर थी कि गोल्ड मेडल जीतेंगे. तो ख़राब लग रहा है. मुझे पता था कि वो स्ट्रॉन्ग है, जंप कर के आती है, तो आगे जाके खेलेगी, लेकिन मै पीछे जाऊंगी तो और मार खानी पड़ती. तो मैंने सोचा था आगे जाके खेलूंगी डिस्टेंस रखकर मार पाऊंगी, पर नहीं कर पाई मैं. वो भी पीछे नहीं हट रही थी."
जब उनसे पूछा गया कि ओलंपिक के अनुभव पर उनका क्या कहना है तो उन्होंने कहा, "ओलंपिक से बहुत कुछ सीखने को मिला, पहले खुद पर विश्वास नहीं होता था, रिंग में उतरने से पहले डरी होती थी. लेकिन अभी वो नहीं होता है, क्योंकि काफी कॉम्पटीशन में खेली हूँ. अगला टार्गेट वर्ल्ड चैम्पियनशिप, कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स हैं."
महिला खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर उनका क्या कहना है तो उन्होंने कहा कि यह कई लड़कियों को प्रेरित करेगा.
उन्होंने कहा, "अभी भी भारत में कहीं-कहीं लड़का और लड़कियों के बीच अंतर किया जाता है, तो काफ़ी सारी लड़कियां बाहर निकल कर नहीं आती हैं. इस बार लड़कियों ने जो प्रदर्शन किया है उससे बहुत सारी लड़कियां आगे आएंगी. सभी लड़कियां अब सोचेंगी कि वो भी अच्छा कर सकती हैं."
लवलीना ने कहा कि वो इस मेडल को देश को समर्पित करना चाहती हैं.
साथ ही उन्होंने कहा कि अब वो घर जाएंगी और वहां नया रास्ता बना है तो उन्हें बहुत अच्छा लगेगा.
उन्होंने अपनी कोच संध्या गुरुंग को द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित करने की भी मांग की.
कैसा रहा टोक्यो ओलंपिक का सफ़र
बीते शुक्रवार को उन्होंने वेल्टरवेट क्वार्टर फ़ाइनल मुकाबले में चीनी ताइपे की निएन-चिन चेन को हराकर सेमीफ़ाइनल में जगह बनाई थी. ओलंपिक के प्री क्वार्टर फ़ाइनल में उन्हें बाई मिला था जबकि राउंड-16 में जर्मनी की खिलाड़ी को हराकर वो क्वार्टर फ़ाइनल में पहुँची थीं.
राउंड-16 में उन्होंने जर्मनी की नडीन अपेत्ज़ को 3-2 से हराया था.
क्वार्टर फ़ाइनल मुक़ाबले में उन्होंने निएन-चिन चेन नाम की जिस खिलाड़ी के ख़िलाफ़ जीत हासिल की थी, वो पूर्व विश्व चैम्पियन हैं और अब तक के कई मुक़ाबलों में लवलीना उनसे हारती आई थीं. लवलीना 2018 के वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भी उनसे हार गई थीं.
लेकिन शुक्रवार की लवलीना की जीत कोई मामूली जीत नहीं थी उन्होंने अपनी विरोधी खिलाड़ी को 4-1 से मात दी थी जो कि बहुत बड़ी जीत थी.
बुधवार को हुए सेमी फ़ाइनल के उनके मैच को असम में गोलाघाट ज़िले के उनके गांव में भी देखा गया.
यह मैच लोगों ने मोबाइल फ़ोन पर देखा. हालांकि उनके घर पर कोई मैच नहीं देख रहा था और उनके पिता ने ख़ुद को एक कमरे में बंद कर लिया था.
कौन हैं लवलीना बोरगोहाईं
पूर्वोत्तर राज्य असम से ओलंपिक खेलों तक जाने वाली वो पहली महिला बॉक्सर हैं. वो 69 किलोग्राम वेल्टरवेट वर्ग में खेलती हैं.
भारत के छोटे गाँवों-कस्बों से आने वाले कई दूसरे खिलाड़ियों की तरह ही 23 साल की लवलीना ने भी कई आर्थिक दिक़्क़तों के बावजूद ओलंपिक तक का रास्ता तय किया है.
लवलीना को माइक टाइसन का स्टाइल पसंद है तो मोहम्मद अली भी उन्हें उतने ही प्रिय हैं. लेकिन इन सबसे अलग उन्हें अपनी अलग पहचान भी बनानी थी.
किकबॉक्सिंग से बॉक्सर बनने का सफ़र
बोरगोहाईं असम के गोलाघाट ज़िले में 2 अक्तूबर 1997 को टिकेन और मामोनी बोरगोहाईं के घर जन्मीं थीं.
उनके पिता टिकेन एक छोटे व्यापारी थे और अपनी बेटी की आकांक्षाओं में उसका साथ देने के लिए उन्हें आर्थिक रूप से संघर्ष करना पड़ा.
लवलीना कुल तीन बहनें थीं तो आस-पड़ोस से कई बातें सुनने को मिलतीं थीं. पर इस सबको नज़रअंदाज़ कर दोनों बड़ी जुड़वां बहनें लिचा और लीमा किकबॉक्सिंग करने लगीं तो लवलीना भी किकबॉक्सिंग में जुट गईं.
बहनें किकबॉक्सिंग में नेशनल चैंपियन बनीं लेकिन लवलीना ने अपने लिए कुछ और ही सोच रखा था.
उनका ये क़िस्सा मशहूर है कि पिता एक दिन अख़बार में लपेट कर मिठाई लाए तो लवलीना को उसमें मोहम्मद अली की फ़ोटो दिखी. पिता ने तब मोहम्मद अली की दास्तां बेटी को सुनाई और फिर शुरू हुआ बॉक्सिंग का सफ़र.
पांच साल के अंदर जीती एशियन चैंपियनशिप
प्राइमरी स्कूल में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के ट्रायल हुए तो कोच पादुम बोरो की जौहरी नज़र लवलीना पर गई और 2012 से शुरू हो गया बॉक्सिंग का सफ़र.
पाँच साल के अंदर वे एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में कांस्य तक पहुँच गई थीं.
वैसे लवलीना को भारत में एक अलग तरह की दिक्कत का सामना करना पड़ता है.
उनके वर्ग में बहुत कम महिला खिलाड़ी हैं और इसलिए उन्हें प्रैक्टिस के लिए स्पारिंग पार्टनर (मुक्केबाज़ साथी) नहीं मिलते जिनके साथ वो प्रैक्टिस कर सकें. कई बार उन्हें ऐसे खिलाड़ियों के साथ प्रैक्टिस करनी पड़ती है जो 69 किलोग्राम वर्ग से नहीं होते.
ओलंपिक से पहले मां की सर्जरी
ओलंपिक से पहले के कुछ महीने लवलीना के लिए आसान नहीं थे. जहाँ हर कोई ट्रेनिंग में जुटा था वहीं लवलीना की माँ का किडनी ट्रांसप्लांट होना था और वो बॉक्सिंग से दूर माँ के साथ थीं.
सर्जरी के बाद ही लवलीना वापस ट्रेनिंग के लिए गईं.
इसके बाद कोरोना की दूसरी लहर के कारण उन्हें लंबे समय तक अपने कमरे में ही ट्रेनिंग करनी पड़ी क्योंकि कोचिंग स्टाफ़ के कुछ लोग संक्रमित थे. तब उन्होंने वीडियो के ज़रिए ट्रेनिंग जारी रखी.
तो राह में दिक्कतें तो कई थीं लेकिन लवलीना ने एक-एक कर सबको पार किया.
लवलीना के करियर में बड़ा उछाल तब आया जब उन्हें 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए चुना गया. हालांकि तब इसे लेकर विवाद ज़रूर हुआ था कि लवलीना को इस बारे में कथित तौर पर आधिकारिक सूचना नहीं दी गई और अख़बारों से उन्हें पता चला.
कॉमनवेल्थ गेम्स में वो मेडल नहीं जीत पाईं लेकिन यहाँ से उन्होंने अपने खेल के तकनीकी ही नहीं मानसिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष पर भी काम करना शुरू किया.
नतीजा सबके सामने था. 2018 और 2019 में उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में दो बार कांस्य पदक जीता.
पहले मणिपुर की मीराबाई ने भारत को सिल्वर दिलाया था तो अब पूर्वोत्तर की ही लवलीना पदक ले आई हैं.
असम में लवलीना को लेकर उत्साह इतना था कि असम के मुख्यमंत्री और विपक्षी दलों के विधायक दोनों एकसाथ लवलीना के समर्थन में कुछ दिन पहले साइकिल रैली पर निकले थे.
स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के एक वीडियो में लवलीना ने बोला था कि उन्हें कम से कम दो बार तो ओलंपिक खेलना है और फिर प्रोफ़ेशनल बॉक्सिंग करनी है. यानी अभी कम से कम एक और ओलंपिक का सफ़र और मेडल का सपना बाक़ी है.
(बीबीसी संवाददाता वंदना और टोक्यो से जाह्नवी मूले की रिपोर्ट)
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