रूसी खिलाड़ी ओलंपिक में मेडल जीत रहे पर अपने मुल्क के नाम से नहीं

टोक्यो ओलंपिक में रूस के 335 खिलाड़ी शिरकत कर रहे हैं लेकिन दुनिया के बाक़ी देशों की तरह उन्हें अपने देश का नाम, झंडा और राष्ट्रगान के उपयोग की अनुमति नहीं है.

ये सभी खिलाड़ी रूसी ओलंपिक समिति यानी आरओसी के झंडे के तले इस ओलंपिक का हिस्सा हैं. इनके पदक भी टोक्यो ओलंपिक में आरओसी के नाम के आगे देखे जा सकते हैं, जिसका झंडा रूस से अलग है.

ऐतिहासिक रूप से रूस दुनिया के उन देशों में से एक है, जो खेल प्रतिस्पर्धाओं में शीर्ष पर रहा करते हैं. यह क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और 2016 रियो ओलंपिक खेलों में 56 पदकों के साथ पदक तालिका में चौथे स्थान पर था.

लेकिन वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) ने 2019 में रूस पर टोक्यो ओलंपिक 2020, फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप 2022 समेत सभी प्रमुख खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने पर चार साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया.

वर्ष 2020 में इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन फ़ॉर स्पोर्ट में रूस ने अपील की. अपील के बाद प्रतिबंध को घटा कर दो साल कर दिया गया. यानी अब ये पाबंदी दिसंबर 2022 तक रहेगी.

व्हिसिलब्लोअर्स और जाँचकर्ताओं ने रूस पर सोचे समझे तरीक़े से कई वर्षों तक डोपिंग कार्यक्रम चलाने का आरोप लगाया और यह इतना संगीन था कि अंतरराष्ट्रीय महासंघों को दुनिया भर के प्रमुख आयोजनों में रूसी खिलाड़ियों को प्रतिबंधित करने पर मजबूर होना पड़ा.

सितंबर 2018 में, कई जाँचों के बाद, वाडा ने इस शर्त पर प्रतिबंध हटा लिया कि रूस अपने मॉस्को प्रयोगशाला से एथलीटों के डेटा को डोपिंग नियामक संस्था को सौंप देगा ताकि उन सैकड़ों खिलाड़ियों के नाम का पता लगाया जा सके, जिन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में डोपिंग की हो.

लेकिन इसके बाद रूस पर इन डेटा में हेरेफेर करने का आरोप लगाया गया और फिर वाडा पैनल ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया.

रूस पर क्या आरोप हैं?

2014 की बात है, जब 800 मीटर रेस की एथलीट यूलिया स्टेपानोवा और रूसी एंटी डोपिंग एजेंसी के पूर्व कर्मचारी रहे उनके पति विटाले ने एक जर्मन डॉक्यूमेंट्री में रूस में चल रही गड़बड़ी से पर्दा उठाया, जो बाद में रूसी डोपिंग कार्यक्रम के रूप में सामने आया था.

दो साल बाद रूस की एंटी-डोपिंग लेबोरेटरी के डायरेक्टर रह चुके ग्रेगॉरी रॉडशेनकॉफ़ के एक इंटरव्यू में यह मामला सामने आया. रॉडशेनकॉफ़ 2014 सोची विंटर ओलंपिक के दौरान एंटी-डोपिंग लेबोरेटरी के डायरेक्टर थे.

ग्रीगोरी रॉडशेनकॉफ़ के मुताबिक़ उन्होंने ऐसे पदार्थ बनाए थे, जिससे रूसी ओलंपिक एथलीटों को बेहतर खेलने में मदद मिले.

साथ ही उन्होंने ये भी कबूल किया था कि वो यूरिन के नमूनों को बदल देते थे जिससे, जाँच में ड्रग का पता नहीं चलता था.

ग्रेगॉरी रॉडशेनकॉफ़ ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया कि रूसी अधिकारियों ने एक ख़ुफ़िया अधिकारी को उनके प्रयोगशाला के लिए नियुक्त किया.

इस अधिकारी से सूचना ली जाती थी कि एथलीट्स के यूरिन के नमूनों का क्या हुआ ,जिन्हें सेल्फ-लॉकिंग ग्लास बोतलों में रखा जाता था जिसे स्विस कंपनी बरलिंगर ने बनाया है.

एक दिन ख़ुफ़िया अधिकारी ने रॉडशेनकॉफ़ को खुला बोतल दिया, जो उनके मुताबिक़ सोची खेलों में हुए डोपिंग का एक अहम हिस्सा था.

उन्होंने बताया कि प्लान के मुताबिक़ रूसी एथलीट्स ने अपने यूरिन के साथ ग्लास कंटेनरों के सीरियल नंबरों के फोटो खींचे और उसे रूसी खेल मंत्रालय को भेज दिया.

रात को रॉडशेनकॉफ़ एक रूम में गए, जहाँ सैंपल के कंटेनर्स रखे गए थे. एक सहकर्मी ने दीवार में बने एक छोटे से छेद से उन्हें ये सौंप दिए.

उन्होंने यूरिन के इन नमूनों को फेंककर, जिनमें स्टेरॉयड के अंश मिलते, उसमें महीनों पहले लिए गए एथलीटों के साफ़ यूरिन से बदल दिया.

उनका कहना था कि क़रीब यूरिन के 100 नमूनों को इस तरफ़ से बदला गया.

वाडा को लिखी अपनी चिट्ठी में रॉडशेनकॉफ़ ने कहा कि सोची ऑपरेशन ये दिखाता है कि कैसे पूरी दुनिया में एंटी-डोपिंग सिस्टम पूरी तरह से चरमरा गया है.

जाँच में क्या निकला?

इसके बाद अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति, वाडा और अन्य महासंघों ने इस पर जाँच बिठाई.

विश्व एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) ने कनाडा के क़ानून के प्रोफ़ेसर और वकील डॉ रिचर्ड मैकलॉरेन को इसकी जाँच करने का ज़िम्मा सौंपा.

मैकलॉरेन की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2012 से 2015 के बीच 30 खेलों में क़रीब 1000 एथलीटों को इस डोपिंग प्रोग्राम से फ़ायदा पहुँचा है.

इस रिपोर्ट में उदाहरण के साथ बताया गया है कि किस तरह अलग-अलग खेलों के खिलाड़ियों ने टेस्ट टाले और डोपिंग नियंत्रण अधिकारियों को चकमा देने की कोशिश की.

रिपोर्ट में बताया गया है कि एक एथलीट एक खेल इवेंट के बाद नदारद हो गया जबकि एक अन्य ने एक रेस के दौरान स्टेडियम छोड़ दिया और उसके बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं हो सकी.

वाडा ने रूसी प्रयोगशाला के आँकड़े हासिल करने का दावा किया, जो मैकलॉरेन की रिपोर्ट से मेल खाते थे.

वाडा की रिपोर्ट में एक अन्य महिला एथलीट के बारे में बताया गया है कि उसने 'संभवत: साफ पेशाब छुपाया हुआ था.'

इसकी रिपोर्ट में बताया गया कि सोची खेलों में दो रूसी महिला आइस हॉकी खिलाड़ियों के पेशाब के नमूने की बजाए पुरुषों के नमूने रखे गए.

वाडा की जाँच के दौरान ऐसे ईमेल मिले जो रूसी खेल मंत्रालय को भेजे गए थे. इन मेलों में मंत्रालय से सैंपल पॉजिटिव पाए जाने पर निबटने के लिए निर्देश मांगे गए थे.

जाँच में यह भी बात सामने आई कि मास्को में क्लीन यूरिन बैंक स्थापित किया गया था.

इसके बाद रूसी एथलीटों के नमूनों की दोबारा जाँच हुई और खिलाड़ियों पर प्रतिबंध लगाए गए और मेडल वापस लिए गए.

इस पर बीते वर्ष दिसंबर में कोर्ट ने 2022 के अंत तक रूस को अंतरराष्ट्रीय खेलों से प्रतिबंधित कर दिया.

हालांकि रूस के जिन खिलाड़ियों पर कोई आरोप नहीं थे उन्हें टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने की अनुमति दी गई और ये ही वो खिलाड़ी हैं जो आरओसी के बैनर के तले ओलंपिक खेलों में भाग ले रहे हैं.

कॉपीः अभिजीत श्रीवास्तव

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