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बीबीसी हिंदी की रेडियो डॉक्युमेंट्री पुरस्कृत | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भारत में जलवायु परिवर्तन से जुड़े कई पहलुओं पर केंद्रित बीबीसी हिंदी सेवा की एक रेडियो डॉक्युमेंट्री को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है. एशिया पैसिफ़िक ब्रॉडकास्टिंग यूनियन की ओर से प्रति वर्ष दुनिया भर में ब्रॉडकास्टिंग के क्षेत्र में हो रहे सर्वश्रेष्ठ कामों को पुरस्कृत किया जाता है. इसी क्रम में इसबार बीबीसी हिंदी सेवा की रेडियो डॉक्युमेंट्री, 'चढ़ता पारा, बढ़ता संकट' को रेडियो डॉक्युमेंट्री वर्ग का पुरस्कार दिया गया है. इस कार्यक्रम के प्रोड्यूसर थे हिंदी रेडियो सेवा के संपादक, शिवकांत और इसकी सामग्री जुटाने और प्रस्तुत करने का काम किया था बीबीसी संवाददाता मुकेश शर्मा ने. तकनीकी पक्ष संभाला स्वाति चौहान ने. बीबीसी ने इस वर्ष जलवायु परिवर्तन को अपने प्रमुख कार्यक्रमों में शामिल किया है और इसके बारे में लगातार कार्यक्रम, सर्वेक्षण और रिपोर्टें बीबीसी की ओर से की जा रही हैं. हिंदी सेवा ने भी इस दिशा में कई पैकेज, रिपोर्टें और विशेष कार्यक्रम तैयार किए हैं और यह डॉक्युमेंट्री भी इसी कड़ी में एक है. अर्थपूर्ण प्रयास बीबीसी हिंदी सेवा की प्रमुख अचला शर्मा इस डॉक्युमेंट्री को सम्मानित किए जाने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहती हैं, "निश्चित रूप से एशिया पैसिफिक ब्रॉडकास्टिंग यूनियन का पुरस्कार जीतना सम्मान का विषय है. हमारे लिए यह पुरस्कार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले कई महीनों से बीबीसी हिंदी सेवा चढ़ते पारे की वजह से बढ़ते संकट की तरफ़ श्रोताओं का ध्यान खींचती रही है." पर क्या बीबीसी हिंदी के श्रोताओं ने भी इस चुनौती को स्वीकारा है और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को समझा है, यह पूछने पर अचला कहती हैं, "हमारे श्रोताओं ने न सिर्फ़ विषय की गंभीरता को समझा बल्कि अपने अपने क्षेत्र के बदलते चेहरे के शब्दचित्र हमें भेजे. इसलिए, यह उपलब्धि बीबीसी हिंदी की ही नहीं, उसके श्रोताओं की भी है."
इस डॉक्युमेंट्री के प्रोड्यूसर, शिवकांत का कहना है, "यह डॉक्युमेंट्री उत्तर भारत के 45 करोड़ लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी. भारत में जलवायु परिवर्तन का सबसे ज़्यादा असर इनपर ही पड़ना है पर चिंता की बात यह है कि अपनी जीवन शैली के चलते ये लोग इसके चक्र को और तेज़ कर रहे हैं." शिवकांत बताते हैं, "दो ही ऐसे कारगर तरीके हैं जिससे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है. पहला लोगों के निजी स्तर पर प्रयासों से और दूसरा लोगों में जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता से. लोगों में जागरूकता आएगी तभी इसके लिए सरकारों पर दबाव बनेगा और इस दिशा में प्रभावी बदलाव किए जा सकेंगे." ख़ास कवरेज इस डॉक्युमेंट्री की सबसे ख़ास बात यह थी कि जलवायु परिवर्तन को लेकर भारत के संदर्भ में जो मुद्दे और चिंताएं हैं, उन्हें एकसाथ हिंदी सेवा के श्रोताओं तक पहुँचाया गया. जलवायु परिवर्तन के कारण समझाने के लिए कानपुर जैसे प्रदूषित शहर की टोह, इसके असर को समझाने के लिए गोमुख की स्थिति, इसकी कीमत को समझाने के लिए सुंदरवन के आसपास डूबते टापुओं की चिंता और आगे के सूखे जैसे दुष्परिणामों को समझाने के लिए आगरा में बंजर होती ज़मीन का सच लोगों के सामने लाया गया. साथ ही जलवायु परिवर्तन के संकट से उबरने के लिए परमाणु ऊर्जा सहित जो दूसरे ऊर्जा विकल्प सुझाए जा रहे हैं, उनके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं की पड़ताल भी इस डॉक्युमेंट्री में की गई है. 'गंभीरता को समझें'
इस रिपोर्ट के लिए भारत के कई क्षेत्रों में गए बीबीसी संवाददाता मुकेश शर्मा कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन को लेकर बढ़ रहे संकट के बारे में चिंताएं लगातार सामने आती रही हैं पर भारत में लोगों के बीच जाने पर ऐसा नहीं लगा कि वे इसके ख़तरे को लेकर वाकई गंभीर हैं. आम लोगों को अभी भी इसके बारे में काफ़ी कुछ बताने की ज़रूरत है." वो कहते हैं कि इसलिए भी इस दिशा में बीबीसी हिंदी की पहल महत्वपूर्ण है क्योंकि हम लगातार पर्यावरण में आ रहे बदलावों और उससे जुड़ी चिंताओं से श्रोताओं और पाठकों को अवगत कराते रहे हैं. यह पहला मौक़ा नहीं है जब एशिया पैसिफिक ब्रॉडकास्टिंग यूनियन ने बीबीसी हिंदी सेवा के किसी कार्यक्रम को पुरस्कृत किया है. इससे पहले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के तुरंत बाद प्रसारित किए गए बीबीसी हिंदी के कार्यक्रम को भी एशिया पैसिफिक ब्रॉडकास्टिंग यूनियन का पुरस्कार मिल चुका है. |
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