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जलवायु परिवर्तन से बढ़ता बाढ़ का ख़तरा | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
नए शोध से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बाढ़ का ख़तरा बढ़ गया है. 'नेचर' नामक पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने कहा है कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ने से पौधों में पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पौधे पानी को सोखते हैं और फिर उन्हें पत्तियों के माध्यम से वातावरण में छोड़ते हैं. लेकिन ग्रीन हाउस गैसें इस क्षमता को कम कर देती है. जलवायु परिवर्तन की वजह से पौधे बारिश में पानी को कम सोख पाते हैं जिसके कारण वे वातावरण में पानी कम उत्सर्जित कर पाते है. इसके कारण ज़मीन में नमी बनी रहती है और उसकी सोखने की क्षमता कम हो जाती है. ज़मीन के पानी न सोख पाने के कारण बाढ़ का ख़तरा बढ़ जाता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि जहाँ बारिश ज्यादा होती हैं, ऐसे इलाक़ों में बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है. उनका कहना है कि इसका एक फ़ायदा यह है कि सूखे वाले इलाक़ों में सूखे का असर कम हो जाता है. दरअसल, जलवायु में पौधों की अहम भूमिका होती है. एक तो वे वातवरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों को सोखकर उसे प्राण वायु मानी जानेवाली ऑक्सीजन में तब्दील कर देते हैं. दूसरे पौधे अपनी जड़ों के माध्यम से पानी को सोखते हैं और फिर उन्हें वातावरण में छोड़ देते हैं. लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड की अधिक मात्रा इन दोनों प्रक्रियाओं पर असर डालती है. डॉक्टर रिचर्ड बेट्स के दल ने इसी विषय में शोध किया था. उनका कहना है कि यह दुधारी तलवार है. जलवायु परिवर्तन के कारण पौधे सूखेवाले इलाक़ों में ज़मीन में नमी बनाए रखते हैं जिससे बारिश होने पर वहाँ बाढ़ का ख़तरा बढ़ जाता है. |
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