भारत और चीन के विवाद का कारोबार पर कितना असर पड़ा?

    • Author, अरुणोदय मुखर्जी
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

भारत और चीन के बीच बिगड़ते रिश्ते इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि पिछले कुछ सालों में भले ही दोनों देशों में गर्मजोशी दिखी, लेकिन उनके बीच कुछ मूलभूत विवाद अभी भी बने हुए हैं.

ऐसे में दोनों देशों के आपसी रिश्तों के भविष्य को लेकर भारत की विदेश नीति की भूमिका काफ़ी अहम हो जाती है.

भारत की पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव कहती हैं कि "पिछले 45 सालों में एलएसी पर एक भी गोली नहीं चली, लेकिन गलवान की घटना के कारण अब सब कुछ बिखरा हुआ नज़र आ रहा है."

पिछले एक दशक में भारत का चीन के प्रति दोस्ताना रवैया रहा है. चीन ने भारत में निवेश भी किया है और दोनों देश व्यापार करते रहे हैं.

सीमा पर विवाद के बाद भारत का चीनी मोबाइल एप्स पर बैन लगाना भी एक सीमित क़दम था.

यूरेशिया समूह के अध्यक्ष इएन ब्रेमर मानते हैं कि 'भारत सीमा पर विवाद को बढ़ावा नहीं देना चाहता.'

उन्होंने बीबीसी को बताया, "ये बहुत साफ़ है कि भारत की सेना चीनी सेना की गोलीबारी की क्षमता के आसपास भी नहीं है और वह सीमा पर चीन के साथ विवाद को बढ़ाना नहीं चाहते, लेकिन भारत के पास एक बहुत लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं और चीन के ख़िलाफ बोलकर अपनी राष्ट्रवादी छवि को निखारना उन्हें राजनीतिक फ़ायदा पहुँचाता है, इससे देश में इंडस्ट्री को भी मदद मिलती है और भारतीयों के लिए चीन के ख़िलाफ अपने पसंद के क्षेत्र में वापस आने का यह एक प्रभावी तरीका है."

भारत चीन के बीच व्यापार

भारत और चीन के बीच सामानों के आपसी व्यापार के विकास की कहानी उत्साहजनक है.

साल 2001 में इसकी लागत केवल 3.6 अरब डॉलर थी. साल 2019 में द्विपक्षीय व्यापार लगभग 90 अरब डॉलर का हो गया.

चीन भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है.

ये रिश्ता एक तरफा नहीं है. अगर आज भारत सामान्य दवाओं के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है तो इसमें चीन का भी बड़ा योगदान है, क्योंकि सामान्य दवाओं के लिए कच्चा माल चीन से आता है.

व्यापार के अलावा दोनों देशों ने एक दूसरे के यहाँ निवेश भी किया है, लेकिन अपनी क्षमता से कहीं कम.

साल 1962 के युद्ध और लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल में सालों से जारी तनाव के बावजूद आपसी व्यापार बढ़ता आया है.

भारत की तरफ़ से ये शिकायत रहती है कि द्विपक्षीय व्यापार में चीन का निर्यात दो-तिहाई है.

भारत-चीन के बीच 50 बिलियन डॉलर के व्यापार घाटे को देखते हुए, इससे अधिक कठोर क़दम उठाना भारत को उल्टा पड़ सकता है.

भारत के लिए ज़रूरी है कि वो संभलकर क़दम उठाये. उसे इलाके में अपनी भू-राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के साथ-साथ आर्थिक ज़रूरतों का भी ध्यान रखना होगा.

चीन और भारत एक दूसरे के उत्पादकों के लिए बड़े बाज़ार हैं.

साथ ही अमरीका और पश्चिमी देशों के लिए भी ये दोनों देश सबसे बड़े और आकर्षक बाज़ार हैं.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के 2019 के आँकड़ों के अनुसार, विश्व की सामूहिक अर्थव्यवस्था लगभग 90 खरब अमरीकी डॉलर की है जिसमें चीन का योगदान 15.5 प्रतिशत है और भारत का योगदान 3.9 प्रतिशत.

विश्व की अर्थव्यवस्था के 22-23 प्रतिशत हिस्से पर दुनिया की 37 प्रतिशत आबादी की देखभाल की ज़िम्मेदारी है.

बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट भारत के लिए चुनौती

इसके साथ ही चीन का बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट जिसके तहत पड़ोसी देशों में भी हाइवे, रेलवे ,पोर्ट बना रहा है, भारत के लिए आने वाल वक्त में चुनौती साबित हो सकता है.

इयान ब्रेमर के मुताबिक़, "इन देशों पर चीन का बहुत प्रभाव होगा. भारतीय अपने आप को बैकफुट पर पाते हैं. चीन एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है जहाँ सरकार के इशारे पर बहुत सारे निवेश हो रहे हैं और सरकार को राजनीतिक लाभ मिल रहा है. भारत के लिए यह एक बढ़ती हुई चुनौती है."

इस इलाक़े में स्थिरता इस बात पर निर्भर करेगी कि आने वाले कुछ समय में दोनों देश आपस में कैसे काम करते हैं.

चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर या सीपेक भी चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत बनाये जा रहे व्यापारिक नेटवर्क का हिस्सा है.

सीपेक के तहत पाकिस्तान में इंफ़्रास्ट्रक्चर से जुड़े कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं जिनमें चीन का 62 अरब डॉलर का निवेश है.

चीन अपनी सभी परियोजनाओं में सीपेक को सबसे महत्वपूर्ण मानता है.

15 जून को गलवान में हुई थी हिंसक झड़प

15 जून को गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच संघर्ष में भारत के 20 सैनिकों की मौत हो गई थी.

चीन ने हताहतों के बारे में आधिकारिक रूप से अभी तक कोई जानकारी नहीं दी है.

तब से सीमावर्ती इलाक़े में दोनों देशों की ओर से सैनिकों का जमावड़ा है.

दोनों देशों में सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी है और तनाव कम करने का भी दावा किया जा रहा है.

हालाँकि पिछले महीने जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने लद्दाख़ में कहा था कि दोनों देशों में बातचीत जारी है और समस्या का हल निकल जाना चाहिए. तो साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि ये मामला कहाँ तक हल होगा, इसकी गारंटी वे नहीं दे सकते.

15 जून की घटना के बाद भारत और चीन के बीच कई स्तर पर बातचीत हुई है.

दोनों देशों की सेनाएँ कई इलाक़ों से पीछे भी हटी हैं, लेकिन अब भी कुछ इलाक़ों को लेकर दोनों देशों में बातचीत जारी है.

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