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सोमवार, 01 दिसंबर, 2008 को 04:26 GMT तक के समाचार
 
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मौत से सामना करने का अनुभव
 

 
 
डॉ प्रशांत मंगेशीकर
डॉक्टर होने के नाते उन्होंने घायल व्यक्ति का इलाज़ किया और वो अब ठीक है.
ताज पैलेस में हुई मुठभेड़ में बच निकले डॉ प्रशांत मंगेशीकर कहते हैं कि उन्हें एकबारगी लगा कि यमदूत कभी भी आ सकते हैं.

मंगेशीकर अपनी पत्नी और बेटी के साथ बुधवार की रात क़रीब सवा नौ बजे ताज पैलेस पहुंचे एक शादी की पार्टी में.

उन्होंने तब सोचा नहीं था कि उन्हें होटल से निकलने में बारह घंटे लग जाएंगे.

वो पूरी घटना को याद करके कहते हैं, "नौ बजकर चालीस मिनट पर गोलियाँ चलनी शुरु हुईं. थोड़ी देर लगा कि पटाखे हैं लेकिन जब मैं दरवाज़े की तरफ आया तो वेटर ने कहा गोलियां चल रही हैं भागिए. मैं आगे बढ़ा तो गोलियों की बौछार होने लगी."

गोलियों से बचने के लिए डॉक्टर प्रशांत अपनी पत्नी और बच्ची के साथ टेबल के नीचे छुप गए. प्रशांत बताते हैं कि कुछ देर के बाद क़रीब 30 लोगों को होटल का स्टॉफ होटल में ही एक कमरे में ले गया.

संगीन हालात

प्रशांत बताते हैं, "सब लोग डरे हुए थे लेकिन कोई चिल्ला नहीं रहा था. असल में लोग सदमे में थे. टीवी चल रहा था तो हमें पता चला कि ओबेराय में भी गोलीबारी हो रही है. मैंने अपने दोस्तों को फोन किया. इस बीच गोलियां चलती रहीं."

टीवी के ज़रिए ख़बर मिल रही थी और सभी फंसे हुए लोगों को पता चल रहा था कि पुलिस के साथ मुठभेड़ शुरु हो गई है लेकिन तब तक वो समझ चुके थे कि मामला बहुत संगीन है.

हमलों के बाद ताज होटल
ताज होटल में 58 घंटों तक कार्रवाई चलती रही

लेकिन कभी उन्हें ऐसा लगा कि उनकी जान जा सकती है, प्रशांत कहते हैं, "रात में क़रीब ड़ेढ़ बजे हमसे कहा गया कि आप लोग बाहर निकल जाइए. तब हमसे आगे कई लोग दौड़ कर भागने लगे. जैसे ही लोग भागे गोलियों की बौछार आई और उसमें कई लोगों को गोलियां लगीं. मैं अपनी बीवी के साथ वापस कमरे में आने लगा तो हमारे पीछे आ रहे व्यक्ति को गोली लग गई."

वो कहते हैं, "जब मैंने उस व्यक्ति को देखा तो मुझे लगा कि मेरे साथ भी ऐसा हो सकता था. मुझे तनाव हो गया था क्योंकि मुझे लगा कि मैं कभी भी मर सकता हूं. यमदूत कभी भी मेरे दरवाज़े पर दस्तक दे सकते हैं."

उम्मीद जगी

प्रशांत जिस कमरे में छुपे हुए थे वहां एक घायल को भी लाया गया जिसके पेट में गोली लगी थी. डॉक्टर होने के नाते उन्होंने उस व्यक्ति का इलाज किया और वो अब ठीक हैं.

लेकिन फंसे हुए लोगों को कब लगा कि उनकी जान बच सकती है, प्रशांत कहते हैं, "जब रात में टीवी चैनलों पर यह ख़बर आई कि राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के कमांडो आ रहे हैं तो मुझे उम्मीद जगी और लगा कि जान बच सकती है."

एनएसजी के कमांडो ने गुरुवार की सुबह साढ़े नौ बजे के क़रीब इन बंधकों को सुरक्षित बाहर निकाला.

प्रशांत एनएसजी कमांडो के आपरेशन से खुश हैं लेकिन पूरे प्रकरण से बेहद दुखी.

वो कहते हैं कि पुलिस में सुधार होने चाहिए और भारत में भी अनिवार्य सैनिक सेवा का प्रावधान होना चाहिए.

 
 
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