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रविवार, 30 नवंबर, 2008 को 14:32 GMT तक के समाचार
 
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शांति मार्च में निकला लोगों का ग़ुस्सा
 

 
 
मुंबई

मुंबई के चरमपंथी हमलों से नाराज़ कोलाबा के लोगों ने रविवार को शांति मार्च निकाला जिसमें उनका ग़ुस्सा राजनीतिज्ञों पर निकला.

ताज पैलेस, नरीमन हाउस, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और ओबेरॉय होटल-ये सभी इलाक़े कोलाबा में पड़ते हैं और शायद इसी कारण कोलाबा के लोग काफ़ी नाराज़ हैं.

अपनी बाँहों पर काले कपड़े बांधे ये लोग बिना किसी नेता या स्वयंसेवी संगठन के ख़ुद ही घरों से निकले और जमा हुए ताज पैलेस के एक कोने में.

शांति मार्च से पहले लोगों में हताशा, निराशा और बेबसी लग रही थी. एक निवासी केनी का कहना था, "हताशा, यही एक शब्द है मेरे पास और कुछ नहीं."

36 वर्षीय गुंजन कहना था, "मुझे लगता है कि हम कुछ नहीं कर सकते. किसी को हमारी फ़िक्र नहीं है. कोई हमारे बारे में सोचता नहीं."

लेकिन क्या हुआ उस मुंबई की स्पिरिट का जो धमाकों को झेल गई थी?

ग़ुस्सा

इस सवाल से अब मुंबई के लोग भड़क उठते हैं. कोलाबा की निवासी शबनम कहती हैं, "अब अगर किसी अख़बार ने या मीडिया ने ऐसा कोई शीर्षक दिया या लिखा मुंबई स्पिरिट तो मैं उन्हें पीटूँगी. धमाके के बाद हम अगर काम करने को निकले तो हमारी ज़रूरत थी. काम नहीं करेंगे तो पैसा कहाँ से आएगा. घर कैसे चलेगा. ये थोड़ी है हमें फ़र्क नहीं पड़ता."

शांति मार्च से पहले युवकों ने ख़ुद ही पोस्टर लिखे जिनका निशाना सीधे राजनेता थे.

कुछ पोस्टरों पर लिखा था- हम तो जाग गए तुम राजनेता कब जागोगे.

इसी तरह एक पोस्टर पर लिखा था-हम हारेंगे नहीं आगे बढ़ेंगे. एक पोस्टर मात्र इतना कह रहा था- राजनीतिज्ञों, प्लीज ठीक से काम करो.

मार्च कर रहे विकास खट्टर से जब मैंने पूछा कि राजनेताओं का इतना विरोध क्या उन्हें काम करने देगा तो उनका जवाब था, "मैं ये नहीं चाहता कि राजनेता राजनीति छोड़ दें लेकिन मैं चाहता हूँ कि वो अपना काम संजीदगी से करें. जो वो नहीं कर रहे हैं."

जैसे-जैसे शांति या विरोध मार्च शुरू हुआ नारेबाज़ी होने लगी और लोगों की हताशा और निराशा ने मानों आवाज़ का रूप ले लिया.

मात्र 200 लोगों की भीड़ के नारे पूरे क्षेत्र को गुंजायमान करने लगे. जिसके मन में जो ग़ुस्सा और जो भी भड़ास थी उसे उन्होंने शायद चिल्ला कर निकाला.

नारेबाज़ी

सिस्टम को बदलना होगा से लेकर राजनेता मुर्दाबाद और आतंकवाद मुर्दाबाद के नारे लगे, लेकिन विरोध मार्च ख़त्म होते-होते इसने राष्ट्रवाद का रूप ले लिया.

 अब अगर किसी अख़बार ने या मीडिया ने ऐसा कोई शीर्षक दिया या लिखा मुंबई स्पिरिट तो मैं उन्हें पीटूँगी. धमाके के बाद हम अगर काम करने को निकले तो हमारी ज़रूरत थी. काम नहीं करेंगे तो पैसा कहाँ से आएगा. घर कैसे चलेगा. ये थोड़ी है हमें फ़र्क नहीं पड़ता
 
शबनम

मार्च ख़त्म किया गया राष्ट्रगान से लेकिन इसकी कोई योजना नहीं थी.

किसी ने कहा राष्ट्रगान गाना चाहिए बस सब खड़े हो गए और जन गण मण गाया गया और फिर भारत माता की जय के नारे लगे.

पूरे शांति या विरोध मार्च में मैंने लोगों के बदलते हुए भाव देखे. जो पहले थोड़े दुखी, उदास और परेशान से थे, उनके चेहरों पर ग़ुस्सा और नाराज़गी दिखने लगी. भावनाओं का सागर हिलोरें लेने लगा.

मुझे कहीं न कहीं एहसास हुआ कि अगर राजनेताओं ने इस तरह की चरमपंथी घटनाओं को न रोका तो ये ही घटनाएँ उग्र राष्ट्रवाद को हवा देती हैं और फिर समाज और बँट जाता है.

 
 
मुंबई आक्रोश और संवेदना
मुंबई घटना को लेकर आक्रोश और संवेदना.
 
 
ताज होटल ताज होटल की तबाही
ताज होटल में तबाही और उसके बाद की तस्वीरें.
 
 
नम आँखों से विदाई
मारे गए सुरक्षाकर्मियों का अंतिम संस्कार
 
 
मुंबई में कार्रवाई
मुंबई में कार्रवाई की नई तस्वीरें.
 
 
निशाने पर मुंबई
मुंबई की स्थिति पर ताज़ा तस्वीरें.
 
 
त्रासदी के बाद मुंबई त्रासदी के बाद मुंबई
मुंबई चरमपंथी त्रासदी के बाद हताशा और दहशत के माहौल में है.
 
 
ताज ताज मुठभेड़ ख़त्म
मुंबई पर हमलों के 58 घंटे बाद ताज मुठभेड़ में तीन चरमपंथी मारे गए.
 
 
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