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मौत बहुत कुछ अधूरा छोड़ जाती है
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दिल्ली में शुक्रवार को जामिया नगर में दिल्ली पुलिस के जिस विशेष दस्ते ने संदिग्ध चरमपंथियों को पकड़ने के लिए छापा मारा, उस
टोली की अगुवाई कर रहे थे दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा.
इस मुठभेड़ में दो संदिग्ध चरमपंथी मारे गए पर उनकी गोलियों का निशाना बने मोहन चंद शर्मा ने भी दिल्ली पुलिस और ज़िंदगी का साथ शुक्रवार की शाम को छोड़ दिया. दिल्ली के द्वारिका इलाके के ओम सत्यम अपार्टमेंट में शुक्रवार शाम से ही मातम का माहौल था. शनिवार को जब दोपहर डेढ़ बजे दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का पार्थिव शरीर वहाँ पहुँचा तो सैकड़ों आँखों से आंसू छलक पड़े. शुक्रवार को संदिग्ध चरमपंथियों की गोली का शिकार हुए दिल्ली पुलिस के इस राष्ट्रपति पदक प्राप्त इंस्पेक्टर के माँ-पिता को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनका बेटा उनसे दूर हो गया है. 14 वर्ष की बेटी हिमानी बेसुध थी. पत्नी के पास आंसुओं में भीगा आंचल था. सामने पति का शव रखा था और बगल में डेंगू बुखार से जूझ रहा 13 वर्ष का बेटा देवांशु था जिसे तीन बोतल खून चढ़ाने के बाद अस्पताल से पिता को अंतिम विदाई देने आने का मौका मिला था.
मोहन चंद शर्मा के घर पर बड़ी तादाद में उनके प्रशंसक, मीडियाकर्मी, राजनीतिक लोग, सामाजिक कार्यकर्ता और दिल्ली पुलिस के उनके सहयोग इकट्ठा थे. नारों और जयकारों के बीच शव के आगे उनका बेटा असहाय सा चल रहा था. देवांशु की हालत ऐसी हो चुकी थी कि डेंगू और इस घटना ने उसको मानसिक और शारीरिक रूप से और कमज़ोर कर दिया था. संस्कार निभाने आया बेटा एक घंटे पिता के शव के पास रहकर वापस अस्पताल चला गया. अंत्येष्टि सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में शाम साढ़े चार बजे दिल्ली के निगमबोध घाट पर मोहन चंद शर्मा का अंतिम संस्कार हुआ. यहाँ केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सहित कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे. दिल्ली पुलिस कई वीआईपी लोगों की अंत्येष्टि में मौजूद रहती है पर इस अंतिम यात्रा में महकमे के आला अधिकारियों से लेकर सिपाहियों तक की आंखें नम थीं. रौबदार और क्रूर, कठोर दिखने वाले सिपाही रोते-बिलखते हुए अपने साथी को याद कर रहे थे.
मोहन चंद शर्मा के परिवारवालों से मिलना तो शुक्रवार को ही हो गया था पर उनके कुछ रिकॉर्ड पर पूछना, कहना बहुत अमानवीय सा लगा. रोती असहाय आंखें सबकुछ साथ बोल रही थीं. वही दर्द उस परिवार की आंखों में था जो किसी भी मरनेवाले के परिजनों की आंखों में होता है. अंत्येष्टि के बाद निगमबोध घाट पर ही कुछ परिजनों से बातचीत हुई तो पता चला कि फिलहाल केंद्र या राज्य सरकार की ओर से किसी तरह की राहत या सहायता की घोषणा नहीं हुई है. विभाग कुछ करेगा पर अभी उस बारे में बताया नहीं गया है. शुक्रवार की मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस ने केवल एक सिपाही नहीं खोया है, एक पत्नी ने पति खोया है, माँ-पिता ने अंतिम दिनों का सहारा खोया है. दो बच्चों ने एक पिता खोया है जिससे उन्हें बेहद प्यार था, जिसपर उन्हें बेहद गर्व था. मुठभेड़ की चर्चा और मोहन चंद शर्मा की यादें कुछ समय तक ताज़ा रहेंगी और फिर समय का पहिया उनसे आगे निकलता चला जाएगा. पर किसी वारदात, मुठभेड़ या हिंसा में मरनेवाले कोई भी हों, पीछे बहुत कुछ अधूरा छोड़ जाते हैं. ज़िंदगी का यह सच मोहन चंद शर्मा के परिवार से भी जुड़ चुका है. |
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