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बुधवार, 10 सितंबर, 2008 को 22:42 GMT तक के समाचार
 
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अमरीका का ध्यान अब पाक सीमा पर
 

 
 
अमरीकी सैनिक
हाल के दिनों में पाकिस्तान सीमा के भीतर अमरीकी कार्रवाइयों की संख्या बढ़ी है
अमरीकी सेना तालेबान के ख़िलाफ़ एक नई रणनीति अपनाने की बात कर रही है जिसमें अफ़ग़ानिस्तान के साथ साथ अब पाकिस्तान के कबायली इलाकों पर भी हमले तेज़ किए जाएँगे.

फ़ौज के सबसे बड़े अधिकारी एडमिरल माइक मलेन ने अमरीकी कांग्रेस के सामने ये एलान करते हुए कहा कि कबायली इलाकों में तालिबान के अड्डों को ख़त्म करने के लिए ज़रूरी है कि पाकिस्तानी और अमरीकी फ़ौज मिलकर काम करें.

पिछले हफ़्तों और महीनों में जब भी पाकिस्तान के क़बायली इलाकों पर मिसाइल हमले हुए हैं, उंगली अमरीका पर ही उठी है लेकिन अमरीकी अधिकारी इस पर बयान देने से बचते रहे हैं.

एडमिरल माइक मलेन ने कांग्रेस के सामने स्पष्ट रूप से कहा है कि कबायली इलाकों के पनाहगाहों में तालेबान पर हमला अमरीकी फ़ौज की नई रणनीति का हिस्सा है.

पाकिस्तान कहता रहा है कि वह अपनी सीमा के भीतर किसी विदेशी फ़ौज को काम नहीं करने देगा.

पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख जनरल अशफ़ाक परवेज़ कयानी ने कहा, "अमरीकी नेतृत्व वाली संयुक्त फ़ौज के साथ किसी समझौते या सहमति का सवाल ही नहीं है क्योंकि उन्हें हमारी सीमा में आकर कार्रवाई करने की अनुमति ही नहीं है."

पिछले कुछ समय में पाकिस्तान की सीमा में बढ़ी अमरीकी कार्रवाई को लेकर पाकिस्तान सरकार और सेना ने तीखा विरोध जताया है.

विद्रोहियों में संबंध

एडमिरल मलेन ने यह बात अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की घोषणा के एक दिन बाद कही है जिसमें उन्होंने फ़रवरी 2009 तक अफ़ग़ानिस्तान में सैनिकों की संख्या 4,500 बढ़ा दी जाएगी.

 ऐसा नहीं हो सकता कि हम चरमपंथियों के पाकिस्तान सीमा से अफ़ग़ानिस्तान की सीमा में आने का इंतज़ार करें और तब उसे मारें...जब तक हम पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर उनके पनाहगाह को ख़त्म नहीं करेंगे दुश्मन तो आते ही रहेंगे
 
एडमिरल माइक मलेन

इस समय वहाँ 33 हज़ार अमरीकी सैनिक तैनात हैं.

संसद की सैन्य मामलों की समिति में एडमिरल मलेन ने कहा कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के चरमपंथी साझा लड़ाई लड़ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान दोनों ही एक ऐसे 'आतंकवाद' से जुड़े हुए हैं जो उनके सरहदों के आरपार फैली हुई है.

उनका कहना था कि सीमा पार मौजूद इन पनाहगाहों की वजह से तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में हमले तेज़ कर रहे है.

एडमिरल मलेन ने कहा, "मेरी राय में अफ़ग़ानिस्तान में चल रही लड़ाई अभी भी हम जीत नहीं रहे हैं लेकिन मुझे यक़ीन है कि हम जीत सकते हैं."

उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में हमलों में तेज़ी को देखते हुए अमरीका को मजबूरन अपना रवैया सख़्त करना पड़ रहा है और एक ऐसी रणनीति बनानी पड़ रही है जो सरहद के दोनों तरफ़ लागू हो.

पिछले दिनों में पाकिस्तान फ़ौज के साथ हुई बातचीत में उन्होने इस बात पर काफ़ी दबाव डाला है कि वो क़बायली इलाकों में और सख़्त कदम उठाएं और अमरीकी फ़ौज को भी उसमें शामिल करें.

उनका कहना था कि जब तक दोनों फ़ौजें मिलकर इन पनाहगाहों को ख़त्म करने के लिए काम नहीं करेंगी, तबतक दुश्मन को रोक नहीं पाएंगे.

उनका कहना था, "ऐसा नहीं हो सकता कि हम चरमपंथियों के पाकिस्तान सीमा से अफ़ग़ानिस्तान की सीमा में आने का इंतज़ार करें और तब उसे मारें...जब तक हम पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर उनके पनाहगाह को ख़त्म नहीं करेंगे दुश्मन तो आते ही रहेंगे."

समय का चुनाव

पाकिस्तान का क़बायली इलाक़ा
पाकिस्तान के क़बायली इलाक़े में अमरीकी सैन्य कार्रवाइयाँ तेज़ हुई हैं

ग़ौरतलब है कि इस नई अमरीकी रणनीति का ऐलान ठीक उस वक्त हुआ है जब अमरीका में ग्यारह सितंबर को हुए हमले को सात साल पूरे हुए हैं.

और जब ज़िक्र आता है ग्यारह सितंबर का तो ज़िक्र होता है अफ़ग़ानिस्तान का और बात होती है पाकिस्तान की भी. सवाल उठते हैं आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में पाकिस्तान की भूमिका पर.

राजनीतिक माहौल भी गर्म है. राष्ट्रपति पद के दोनों ही उम्मीदवार बराक ओबामा और जॉन मैकेन गुरुवार को इकठ्ठे होंगे न्यूयॉर्क में ग्राउंड जीरो पर ग्यारह सितंबर को मारे गए लोगों की याद में.

वैसे दोनों कहते रहे हैं कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ जीत के लिए अफ़ग़ानिस्तान पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है. लेकिन अब फ़ौज कह रही है कि अफ़गानिस्तान में कामयाबी का रास्ता पाकिस्तान के क़बायली इलाकों से गुज़रता है.

और इस चुनावी मौसम में कोई उम्मीदवार फ़ौज की सोच को ग़लत ठहराएगा इसके आसार कम ही हैं.

 
 
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