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सूनी कलाइयों पर फिर सजी राखी | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
राजस्थान में देवड़ा गाँव में एक दौर वो था लड़कियों के न होने से भाई की कलाई राखी के लिए तरस जाती थी, लेकिन बदलाव के बयार से भाइयों की कलाई राखियों से अटी पड़ी है. भारत पाकिस्तान सीमा से लगे इस गाँव में मंगलवार को रक्षा बंधन के दिन ख़ास धूमधाम थी. बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बाँध रही थी और भाई उन्हें उपहार दे रहे थे. दरअसल, देवड़ा गाँव उस वक्त सुर्खियों में आया था, जब ऐसी ख़बरें आईं थीं कि कोई एक सौ बरस के बाद इस राजपूत बहुल गाँव में कोई बारात आई थी. नौ साल पहले इंद्र सिंह ने अपनी लाडली बेटी जयंत कंवर की शादी धूमधाम से की थी जो एक सदी में गाँव की किसी लड़की पहली शादी थी. इस गाँव मे लड़कियों को पैदा होते ही मार देना बहुत आम बात थी. देवड़ा गाँव में राजपूत परिवारों में अब लगभग दस कन्याएँ हैं. जयंत कंवर के चाचा पन्ने सिंह की बेटी सुगन कंवर भी अब सयानी हो गई है और जैसलमेर के कॉलेज में पढ़ रही है. पन्ने सिंह कहते हैं, “अतीत में मत झाँकिए, वर्तमान देखिए. सुगन कंवर ने जैसलमेर से कोई 150 राखियाँ अपने भाइयों के लिए देवड़ा भेजी हैं. पूरे दिन गाँव में उत्सव का माहौल है.” इतिहासकार नंदकिशोर शर्मा कहते हैं, “थार मरुस्थल का यह क्षेत्र कन्या वध के लिए चर्चित रहा है. रियासती दौर में सिंध क्षेत्र से हमले होते थे, ऐसे में राजपूत अपनी बेटियों के साथ दुर्व्यवहार की आशंका में जन्मते ही कन्या का वध कर देते थे.” अब देवड़ा की तस्वीर एकदम बदल गई है. गाँव सड़क से जुड़ गया है. गाँव में बिजली है, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है और दो स्कूल हैं. इन स्कूलों में गाँव की लड़कियाँ भी तालीम हासिल करती हैं. सीमावर्ती जैसलमेर ज़िले में स्त्री-पुरुष अनुपात वैसे भी बहुत कम है. पिछली जनगणना में यहाँ एक हज़ार पुरुषों के अनुपात में 821 महिलाएँ थी. | इससे जुड़ी ख़बरें भारतीय कलाइयों पर चीनी राखियाँ30 अगस्त, 2004 | भारत और पड़ोस जहाँ रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता08 अगस्त, 2006 | भारत और पड़ोस क्लिंटन से एक राखी बहन की शिकायत09 अगस्त, 2006 | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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