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सोमवार, 30 अगस्त, 2004 को 06:16 GMT तक के समाचार
 
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भारतीय कलाइयों पर चीनी राखियाँ
 

 
 
चीन से आई राखी
चीन से आई राखियाँ नए डिज़ाइनों की हैं और सस्ती भी हैं
देश भर में आज रक्षाबंधन का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. भाइयों के हाथ में अपनी बहनों के लिए तोहफ़े हैं और बहनें सज-धज कर अपने भाइयों को राखी बाँध रही हैं.

पर हो सकता है कि जो राखी आपके हाथों में बाँधी जा रही हो या जो तोहफ़ा आप अपनी बहन को देने जा रहे हों, वो चीन से आया हो.

यूँ तो पिछले तीन चार साल से चीन से राखियाँ आ रही थीं लेकिन इस बार तो राखी और इस अवसर पर दिए जाने वाले तोहफ़ों के बाज़ार में मानों चीन ने धावा बोल दिया है.

दिल्ली के सदर बाज़ार से लेकर बनारस के नया चौक तक, भारतीय राखी उद्योग में चीन से आई राखी और तोहफ़ों ने अपनी जगह बना ली है और इनकी बिक्री भी ख़ूब हो रही है.

नया अंदाज़

बनारस के राखी के थोक विक्रेता मानू भाई बताते हैं, "इस बार चीन से आई राखी की भी ख़ूब बिक्री हुई है. इसकी वजह यह है कि ये राखी सस्ती हैं और पारंपरिक डिज़ाइनों से हटकर होने की वजह से ये लोगों का ध्यान भी अपनी ओर खींच रही हैं."

चीनी सामग्री से बनी राखियाँ
चीन से आई सामग्री से भारत में राखियाँ भी ख़ूब बनी हैं

मानू भाई के मुताबिक, "जो राखी अपने यहाँ बन भी रही हैं, उनमें चीन से आया मोती और सजावटी सामान भी बड़ी मात्रा में इस्तेमाल किया गया है."

इस बार बाज़ार में उपलब्ध इन राखियों में कई नई डिज़ाइनें भी हैं.

खासतौर पर टॉफ़ी वाली राखी, म्यूज़िकल राखी, घड़ी वाली राखी, मिकी माउस वाली राखी इस बार छोटे बच्चों को खूब पसंद आ रही है और इसके चलते इनकी बिक्री भी हुई है.

सबसे ज़्यादा पसंद की गई चीन की लंबी पट्टी वाली राखी, जिसका एक धागा खींचने पर वो फूल बन जाती है.

नतीजा यह है कि इस बार बाज़ार में प्लास्टिक और जरी के काम वाली राखियाँ ज़्यादा बिकी हैं जबकि बनारस के राखी निर्माताओं की पारंपरिक रेशमी राखी अपना ग्राहक खोती जा रही है.

संकट में पारंपरिक राखी

लेकिन संकट सिर्फ़ चीन से राखी आने भर से नहीं है.

बनारस की परंपरागत रेशमी राखियाँ
परंपरागत रेशमी राखियों के ख़रीददार इस बार कम ही दिखे

बनारस की विश्वनाथ गली में कई पीढ़ियों से राखी बनाने का काम कर रहे अशोक कुमार के लिए इसबार राखी बनाना घाटे का सौदा साबित हुआ है.

अशोक बताते हैं, "इस बार रक्षाबँधन के दिन कई राखी बनाने वालों के घर मिठाई तो दूर, भरपेट खाना भी नसीब नहीं होगा."

अपने कारखाने की एक अंधेरी कोठरी में पड़े उँघ रहे अशोक से जब हमने इसकी वजह जाननी चाही तो उन्होंने बताया, "इस बार कोई माल नहीं उठा रहा है. पिछले पाँच महीनों में दिन-रात लगकर राखी तैयार की गईं पर व्यापारी कह रहे हैं कि माल वापस ले जाओ. ऐसे में लागत और मजदूरी तक निकल पाना मुश्किल है. हमें त्योहार पर खाने तक के लाले पड़ गए हैं."

 इस बार कोई माल नहीं उठा रहा है. पिछले पाँच महीनों में दिन-रात लगकर राखी तैयार की गईं पर व्यापारी कह रहे हैं कि माल वापस ले जाओ. ऐसे में लागत और मजदूरी तक निकल पाना मुश्किल है. हमें त्योहार पर खाने तक के लाले पड़ गए हैं
 
अशोक, राखी निर्माता

राखी के कारीगर गुड्डू बताते हैं, "हम हमेशा अच्छे किस्म के रेशम से राखी बनाते आए हैं और ये राखी दुनिया भर में जाती थी पर इसबार सन्नाटा है. कोई ख़रीददार नहीं है. बड़े व्यापारियों ने सस्ते दामों पर राखियाँ बाज़ार में उतार दी हैं, रही सही कसर चीन की राखी ने पूरी कर दी है. लोग भी सस्ती चीज़ें चाहते हैं."

रक्षाबंधन नए रंग और ढंग में इस बार भी मनाया जा रहा है पर राखी का बंधन इस बार खुले बाज़ार और बड़े व्यापारियों के पास आ गया है.

पुराने कारीगरों की पारंपरिक राखी खुद की ही रक्षा नहीं कर पा रही हैं.

 
 
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