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परमाणु समझौते पर गतिरोध कायम | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अमरीका के साथ परमाणु समझौते से उत्पन्न गतिरोध पर विचार करने के लिए वामपंथी दलों की सोमवार को बैठक हो रही है. इसमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), फोरवर्ड ब्लॉक और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) नेताओं की बैठक हो रही है. इसके पहले वामपंथी दलों के रुख़ के कारण संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार पर आए संकट को टालने के लिए रविवार शाम प्रधानमंत्री निवास पर यूपीए के घटक दलों की बैठक हुई. ख़बरें हैं कि सरकार ने वामपंथी दलों की चिंताओं को दूर करने के आश्वासन के साथ ही एक समिति का प्रस्ताव रखा है जिसमें वैज्ञानिक, राजनयिक और राजनीतिज्ञों को रखने का प्रस्ताव है. चर्चा ये है की परमाणु समझौते पर प्रधानमंत्री के विशेष दूत की भूमिका निभा रहे पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन इस समिति का नेतृत्व करेंगे. प्रेक्षकों का मानना है कि ये क़दम संकट को समाप्त करने का प्रयास कम और इसे टालने की कोशिश अधिक नज़र आता है. इसके पहले वामपंथी पार्टियों ने सरकार को इस मुद्दे पर चेतावनी देते हुए स्पष्ट कर दिया था कि भारत अमरीका परमाणु समझौते पर आगे न बढ़ा जाए. वामपंथी पार्टियां चाहती हैं कि पहले अमरीका के हाइड एक्ट के संदर्भ में इस समझौते की समीक्षा हो और तब तक के लिए अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ होने वाली चर्चा को भी रोक दिया जाए. वामपंथी पार्टियों का कहना है कि अमरीका के क़ानून के तहत ये प्रावधान है कि अगर भारत भविष्य मे परमाणु परीक्षण करता है, तो ये समझौता रद्द हो जाएगा और भारत को की जानेवाली परमाणु ईंधन की आपूर्ति पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा. ऐसी स्थिति में परमाणु ईंधन की आपूर्ति करने वाले देशों से भी भारत को परमाणु ईंधन मिलने में कठनाई आएगी. सरकार का रुख़ दूसरी ओर केंद्र सरकार का कहना है कि इस समझौते में ऐसे प्रावधान हैं जिसके कारण भारत के राष्ट्रीय हित सुरक्षित हैं और भारत की संप्रभुता पर इस समझौते का कोई असर नहीं पड़ेगा.
यूपीए की बैठक के बाद विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने संक्षिप्त बयान देते हुए कहा,'' राष्ट्रहित में वामपंथी दलों की जो उचित चिंताएँ हैं, उनका निराकरण किया जाएगा.'' यूपीए सरकार की तरफ़ से वामपंथी पार्टियों के साथ चल रहे गतिरोध को तोड़ने की ज़िम्मेदारी प्रणव मुखर्जी को सौंपी गई है. इस कोशिश में उन्होंने रविवार को एक बार फिर सीपीएम नेता सीताराम येचुरी से मंत्रणा की और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य से फ़ोन पर बातचीत की. सोमवार को वामपंथी पार्टियों की बैठक में उनके प्रस्ताव पर चर्चा हो सकती है. हालांकि वरिष्ठ वामपंथी नेताओं में उदारवादी नेता कहे जाने वाले भी अब ये कहने लगे हैं कि यूपीए और वामदलों के रिश्तों में इतनी कड़वाहट आ गई है की अब ये रिश्ता लंबा चलना मुश्किल होगा. लेकिन यूपीए सरकार बचेगी या जाएगी इस सवाल का साफ़ जवाब 22 और 23 अगस्त को सीपीएम की केंद्रीय समिति की बैठक के बाद ही मिल सकेगा. |
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