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कुछ यूँ गुज़रता है सीमा पर सैनिकों का दिन | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
जम्मू-कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर 720 किलोमीटर लंबी बाड़ लगी हुई है. सेना का कहना है कि यह पाकिस्तान की ओर होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए है. जम्मू स्थित बीबीसी संवाददाता बीनू जोशी ने रजौरी ज़िले के दौरा किया और यह जानने की कोशिश की कि नियंत्रण रेखा पर तैनात फ़ौजी का एक दिन कैसे गुजरता है. दिन ढल चुका है और हम इस समय पाकिस्तान के साथ लगने वाली नियंत्रण रेखा पर कलसियान इलाक़े में हैं. यह इलाक़ा पहाड़ियों और जंगलों से ढँका हुआ है और भारत की तरफ से नियंत्रण रेखा से 500 मीटर अंदर की तरफ कंटीली बाड़ लगी हुई है. आज यहाँ इस भाग की निगरानी हवलदार हरिंद्र पांडे और उनके तीन साथी करेंगे. हवलदार पांडे ड्यूटी शुरू होने से पहले अपने साथियों को निर्देश कुछ इस तरह से देते हैं. "आज हम चार लोग नियंत्रण रेखा के इस भाग की निगरानी करेंगे और रात के समय लाइट का इस्तेमाल नहीं करेंगे. आज चाँद रात 12 बजे तक रहेगा और इसके बाद अँधेरा हो जाएगा मगर अंधेरे में भी कोई जवान टॉर्च या किसी भी तरह की लाइट का इस्तेमाल नहीं करेगा." रात की ड्यूटी शुरू होने से पहले ये लोग रात के खाने के लिए चले गए. निगरानी हमने नियंत्रण रेखा पर नज़रें दौड़ाई तो दंग रह गए. नियंत्रण रेखा के साथ-साथ पहाड़ी और पथरीले रास्ते पर की गई तारबंदी की निगरानी के लिए जो रास्ता बना है, उसपर दिन में चलना भी मुश्किल है. पर हवलदार पांडे ने तो निर्देश दिया है कि रात में उसी रास्ते पर चलना है, वो भी बिना किसी लाइट के.
इस दौरान हम पहुँचे लंगर में जहाँ खाने के साथ-साथ हल्की-फ़ुल्की बातें भी हो रही थीं. हवलदार पांडे अपने जवान से पूछते हैं, "और वेद प्रकाश खाना कैसा है". "ठीक-ठाक, सर". जवान वेद प्रकाश जवाब देता है. "घर पर सब ठीक–ठाक है....कोई फोन घर से आया क्या." हवलदार पांडे के सवाल के जवाब में जवान कहता है, "सब ठीक है सर, आज ही मैडम का फ़ोन आया था." रात के खाने के बाद हवलदार पांडे नियंत्रण रेखा की निगरानी के लिए तैयार हैं, उन्होंने अपनी इनसास राइफ़ल पकड़ ली है. बुलेटप्रुफ़ जैकेट पहने और अपनी इनसास राइफ़ल उठाए इन कठिन रास्तों पर ये जवान ऐसे चल रहे हैं, मानों चलना यहीं सीखा हो. पतला-सा पथरीला रास्ता इतना ख़तरनाक है कि अगर थोड़ा-सा भी चूके तो गए काम से. कठिन चुनौती दिन में हरे-भरे और सुंदर दिखने वाले ये पहाड़ रात को ख़तरनाक दिखने लगते हैं, जहाँ कहीं-कहीं तो रोशनी है और बाक़ी जगह अँधेरा है. अब लगभग आधी रात का समय हो चुका है. एक तो पहाड़ी इलाक़ा हैं ऊपर से हवा भी चल रही है जिसकी वज़ह से गर्म कपड़े पहनने के बावजूद ठंड लग रही है. हवलदार पांडे से जब पूछा कि रात के समय नियंत्रण रेखा की निगरानी में कठिनाई नहीं होती, तो वो कहते हैं, "‘कठिनाई तो आती है मगर कठिनाइयों क दूसरा नाम ही फ़ौजी ज़िंदगी है. फिर रात के समय घुसपैठ का ख़तरा भी बढ़ जाता है जो हमारे लिए एक चुनौती है." यहाँ एक अदभुत चीज़ और भी है. पहाड़ों पर कुछ आवारा कुत्ते हैं जिन्हें ये सैनिक लंगर का बचा-खुचा खाना दे देते हैं. उसी खाने का एहसान चुकाने के लिए ये कुत्ते सैनिकों के साथ गश्त लगाते हैं और किसी भी अजनबी को देखते ही भौंकने लगते हैं. हम थक चुके थे और नींद भी आ रही थी, लिहाजा जवानों ने हमें एक खाली बंकर में विश्राम करने के लिए कहा. भोर की बयार रात की थकान मानो पल में गायब हो गई और धीमी-धीमी रोशनी भी आने लगी.
अब हवलदार पांडे की ड्यूटी समाप्त हो चुकी है और हमने उनसे जानना चाहा कि वे क्या करेंगे. हवलदार पांडे जवाब देते हैं, "हम अपने हथियारों को रखकर कुछ देर आराम करेंगे और सुबह के नाश्ते के बाद पोस्ट के काम में लग जाएंगे." नाश्ते के बाद ये लोग अपने काम में जुट गए और दोपहर के खाने के बाद शाम की ड्यूटी की तैयारी शुरू हो गई. आज शाम की इनकी आक्रमण रोकने की ड्यूटी है, जो पेट्रोलिंग से भी मुश्किल है. जब हवलदार पांडे से हमने पूछा कि क्या उन्हें थकान नहीं होती तो उन्होंने जवाब दिया, "थकान तो होती है मगर ड्यूटी है और फिर आदत भी हो गई है इसलिए ज़्यादा महसूस नहीं होती." नियंत्रण रेखा की निगरानी करते हुए सैनिक के साथ एक दिन बिताना एक नया अनुभव था. जैसा कि हवलदार पांडे ने बताया कि मुश्किल तो है मगर और भी चौकन्ना रहने की आवश्यकता होती है जब बात नियंत्रण रेखा की निगरानी की हो. | इससे जुड़ी ख़बरें राजस्थान में घुसपैठ की कोशिश नाकाम24 सितंबर, 2006 | भारत और पड़ोस भारत-पाक सीमा पर घुसपैठ पर चिंता16 सितंबर, 2006 | भारत और पड़ोस तारबंदी के बावज़ूद हो रही है घुसपैठ29 जुलाई, 2006 | भारत और पड़ोस 'नौ घुसपैठिए मारे गए, संघर्ष जारी'15 जुलाई, 2005 | भारत और पड़ोस सीमा पर पाँच लोग मारे गए | भारत और पड़ोस 'सीमा पार से घुसपैठ में तेज़ी आई'19 अगस्त, 2004 | भारत और पड़ोस 'भारतीय बाड़ में बुराई नहीं' | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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