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हथियारों की होड़ की चिंता-कितनी जायज़? | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अमरीका में एक वैज्ञानिक निगरानी संस्थान की यह जानकारी सामने आने के बाद अमरीका और भारत में बहुत से विश्लेषकों को हैरानी में डाल दिया है कि पाकिस्तान एक नया शक्तिशाली परमाणु रिएक्टर बना रहा है. वाशिंगटन स्थित इंस्टीट्यूट फ़ॉर साइंस एंड इंटरनेशनल सिक्योरिकी (आईसिस) की इस रिपोर्ट के बारे में यह भी सवाल उठे हैं कि क्या इससे भारत और अमरीका के बीच परमाणु सहयोग के समझौते पर असर पड़ सकता है. ग़ौरतलब है कि भारत और अमरीका के बीच परमाणु सहयोग का समझौता जुलाई 2005 में हुआ था जिसे राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने मार्च में अपने भारत दौरे के दौरान काफ़ी हिमायत की थी. बुश प्रशासन इसे अमरीकी संसद कांग्रेस में मंज़ूरी कराने की कोशिश कर रहा है क्योंकि उस मंज़ूरी के बाद ही यह लागू हो सकता है. संभावना जताई जा रही है कि इस सप्ताह के अंत तक अमरीकी कांग्रेस इस समझौते को मंज़ूरी दे देगी. इस समझौते के तहत अमरीका भारत को असैनिक परमाणु तकनीक बेच सकेगा और अगर यह हो जाता है तो लगभग तीस साल के बाद ऐसा होगा. अमरीका और भारत के बीच इस परमाणु सहयोग समझौते के समर्थक आईसिस की रिपोर्ट से ख़ासे परेशान हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान इस नए रिएक्टर में पर्याप्त मात्रा में प्लूटोनियम का उत्पादन कर सकता है जिससे एक साल में 40 से 50 परमाणु हथियार बनाए जा सकते हैं. विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि परमाणु अप्रसार की हिमायत करने वाली लॉबी इस रिपोर्ट को भारत-अमरीका परमाणु सहयोग समझौते का विरोध करने के लिए अपने आख़िरी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है.
जानकारों का कहना है कि ताज़ा रिपोर्ट इस लॉबी का ताज़ा हथियार है जिसके ज़रिए अमरीकी सांसदों को भारत-अमरीका परमाणु सहयोग समझौते के कुछ प्रावधानों को बदलने या फिर इसे सिरे से ही नामंज़ूर कराने का माहौल बनाया जा सके. ध्यान रखने की बात है कि आईसिस एक ऐसा संस्थान है जो परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए समर्पित है. अब से पहले यह संस्थान ईरान, उत्तर कोरिया, भारत और पाकिस्तान की परमाणु गतिविधियों के बारे में खोजपरक रिपोर्टें प्रकाशित कर चुका है. पाकिस्तान पर अपनी ताज़ा रिपोर्ट में आईसिस ने सेटेलाइट तस्वीरों और अन्य प्रकार के डाटा के ज़रिए दुनिया भर का ध्यान पाकिस्तान के ख़ुशाब परमाणु रिएक्टर की तरफ़ आकर्षित किया है. इस रिपोर्ट के लेखक डेविड अलब्राइट और पॉल ब्रेन्नान ने विश्वास व्यक्त किया है कि एक हज़ार मेगावाट या इससे ज़्यादा क्षमता वाले इस भारी पानी रिएक्टर में दक्षिण एशिया में हथियारों की नई दौड़ शुरू करने की क्षमता नज़र आती है. लेकिन इस रिपोर्ट में दिए गए कुछ तर्कों को नकारा जा सकता है. आश्चर्य रिपोर्ट में कहा गया है कि ख़ुशाब रिएक्टर का निर्माण मार्च 2000 में शुरू हुआ था और वह ऐसा समय था जब अमरीका-भारत परमाणु सहयोग समझौते का आसार बहुत कम थे. दक्षिण एशिया में सुरक्षा मामलों के विश्लेषक नईम सालिक का कहना है का कहना है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपने परमाणु हथियारों का आधुनिकीकरण करने में लगे हैं और ऐसा वे भारत-अमरीका परमाणु सहयोग के बिना या उसके साथ कर सकते हैं. नईम सालिक के अनुसार, "इससे यही पता चलता है कि भारत के ख़िलाफ़ न्यूनतम लेकिन भरोसेमंद रक्षा कवच बनाने के पाकिस्तानी निश्चय को कम करके नहीं देखा जा सकता है." बहरहाल, यह तो सही है कि आईसिस की इस रिपोर्ट ने भारत और अमरीका में बहुत से सामरिक चिंतकों का ध्यान आकर्षित किया है और दोनों देशों में बहुत से सांसदों को अचरज में डाल दिया है. लेकिन बुश प्रशासन इस रिपोर्ट से अविचलित नज़र आया और उसने भारत के साथ परमाणु सहयोग के समझौते को अपना समर्थन फिर दोहराया. व्हाइट हाउस के प्रवक्ता टोनी स्नो ने कहा, "हमें इस तरह की योजनाओं की कुछ समय से जानकारी रही है." टोनी स्नो ने कहा कि भारत की ही तरह पाकिस्तान ने भी परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तख़त नहीं किए हैं, "फिर भी हम भारत और पाकिस्तान दोनों को ही अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम के विस्तार को हतोत्साहित करने के लिए काम करते हैं." सैन्य साझेदारी भारत के साथ परमाणु सहयोग के समझौते के पक्ष में दलीलें देते समय बुश प्रशासन के अधिकारियों ने लगातार यह कहा है कि इस समझौते के तहत भारत को परमाणु हथियार कार्यक्रम को सहायता नहीं दी जाएगी और न ही इससे दक्षिण एशिया क्षेत्र में हथियारों की कोई दौड़ शुरू होगी.
सुरक्षा विश्लेषकों के अनुसार यही वजह है कि व्हाइट हाउस इस समझौते पर अपने रुख़ में ज़रा भी नहीं हिला है. व्हाइट हाउस का मानना है कि अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम का विस्तार करने की पाकिस्तान की इच्छा का भारत के साथ अमरीकी परमाणु सहयोग समझौते से कोई संबंध नहीं है. अमरीकी शांति संस्थान में दक्षिण एशिया मामलों की विशेषज्ञ क्रिस्टीन फेयर का कहना है, "मैं नहीं समझती कि जब भारत-अमरीका परमाणु सहयोग के समझौते पर कांग्रेस में विचार होगा या फिर पाकिस्तान को एफ़-16 लड़ाकू विमान बेचे जाने के मामले पर दक्षिण एशिया में हथियारों की दौड़ शुरू होने की आशंका जताने वाली इस रिपोर्ट का कोई असर होगा." इसलिए आईसिस की रिपोर्ट कितनी ही महत्वपूर्ण जानकारी देने वाली हो लेकिन ऐसा नहीं लगता कि उससे दक्षिण एशिया में अमरीकी सामरिक नीति पर कोई दीर्घकालीन असर पड़ेगा. बुश प्रशासन दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के साथ आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य भागीदारी बनाने के लिए दृढ़ संकल्प नज़र आता है साथ ही बुश प्रशासन यह भी चाहता है कि दुनिया का एक मात्र परमाणु शक्ति संपन्न मुस्लिम देश भी 'आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमरीकी लड़ाई' में उसके साथ रहे. | इससे जुड़ी ख़बरें परमाणु सहमति पर अमरीकी निर्णय आज26 जुलाई, 2006 | भारत और पड़ोस 'पाकिस्तान परमाणु रिएक्टर बना रहा है'24 जुलाई, 2006 | भारत और पड़ोस प्रधानमंत्री को नाम बताएँगे जसवंत सिंह24 जुलाई, 2006 | भारत और पड़ोस त्रिशूल मिसाइल का सफल परीक्षण23 जुलाई, 2006 | भारत और पड़ोस 'साहस है तो जसवंत मुख़बिर का नाम लें'23 जुलाई, 2006 | भारत और पड़ोस 'संसद अंतरराष्ट्रीय संधियों की पुष्टि करे'22 जुलाई, 2006 | भारत और पड़ोस 'विस्फोटों का संबंधों पर असर पड़ा है'18 जुलाई, 2006 | भारत और पड़ोस परमाणु समझौते का एक साल पूरा18 जुलाई, 2006 | भारत और पड़ोस इंटरनेट लिंक्स बीबीसी बाहरी वेबसाइट की विषय सामग्री के लिए ज़िम्मेदार नहीं है. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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