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'समझौते पर अमल में एक साल लगेगा' | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अमरीकी विदेश विभाग का कहना है कि भारत के साथ पिछले महीने हुई असैनिक परमाणु सहमति पर अमल करने में एक साल का वक्त लगेगा. राजधानी दिल्ली में कारोबार जगत के प्रमुख लोगों को संबोधित करते हुए अमरीका के विदेश विभाग में सहायक मंत्री रिचर्ड बाउचर ने कहा कि समझौते को पूरी तरह लागू करने में एक साल तक लग सकता है. साथ ही उन्होंने भरोसा जताया कि समझौते को कुछेक महीनों में अमरीकी कांग्रेस पारित कर देगी. बीबीसी संवाददाता का कहना है कि भारत इस समझौते को जल्द लागू करने की कोशिश कर रहा है. इससे उसे अमरीकी असैनिक परमाणु तकनीक हासिल होने लगेगी जिससे उसकी ऊर्जा की ज़रूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी. मुश्किलें इस समझौते के बदले भारत अपने कुछ परमाणु संयंत्र अंतरराष्ट्रीय जाँच के लिए खोलने पर सहमत हो गया है. लेकिन इस समझौते को लेकर अमरीका में विरोध के स्वर भी उठ रहे हैं. कुछ अमरीकी सांसदों को डर है कि इससे भारत के परमाणु हथियार विकसित करने पर कोई अंकुश नहीं रहेगा. हाल में भारत के विदेश सचिव श्याम सरन इस समझौते के संबंध में अमरीकी सांसदों की आपत्तियों को दूर करने के लिए वाशिंगटन गए थे. उन्होंने इस मुददे पर कड़ा रुख़ अपनाते हुए कहा था कि अगर यह समझौता अमरीकी संसद में मंज़ूर नहीं हुआ तो दोनों देशों के रिश्तों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ सकता है. भारतीय विदेश सचिव का कहना था कि इस परमाणु समझौते को अमरीका और भारत के बीच बेहतर होते सामरिक रिश्तों से जोड़कर देखा जाना चाहिए. यह समझौता अमरीकी सीनेट और हाउस ऑफ़ रिपजेंटेटिव दोनों से पारित होने के बाद ही लागू हो पाएगा. उल्लेखनीय है कि पिछले महीने अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच परमाणु सहयोग को लेकर सहमति बनी थी. |
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