|
एएमयू में मुसलमानों को आरक्षण नहीं | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा देना ग़लत है और इसके आधार पर मुसलमानों को आरक्षण भी नहीं दिया जा सकता. इससे पहले पिछले साल चार अक्तूबर को एक फ़ैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यही फ़ैसला सुनाया था जिस पर एएमयू, केंद्र सरकार और कुछ अन्य लोगों ने एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी. इस पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एएन रे और न्यायमूर्ति अशोक भूषण के दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि जिस तरह मुसलमानों को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है वह असंवैधानिक और ग़लत है. एएमयू के छात्रसंघ ने कहा है कि वे इसके ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय जाएँगे. इससे पहले का फ़ैसला एक सदस्यीय पीठ ने सुनाया था और इसके बाद एएमयू को लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था. दो सदस्यीय पीठ ने फ़ैसला सुनाते हुए पिछले फ़ैसले में कुछ सुधार करते हुए कहा है कि पहले जो फ़ैसला दिया गया था वह आमतौर पर सही था. अपने नए फ़ैसले में पीठ ने कहा कि इस आरक्षण सुविधा का लाभ लेकर जो छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं उनकी पढ़ाई में बाधा न पहुँचाई जाए लेकिन वर्ष 2006-07 में आरक्षण लागू नहीं होगा. उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2004 में 25 फ़रवरी को एक अधिसूचना जारी करके एएमयू में मुसलमानों को 50 प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला किया था. सबसे पहले केंद्र सरकार की इसी अधिसूचना के ख़िलाफ़ एक याचिका दायर की गई थी. प्रतिक्रिया इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फ़ैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एएमयू छात्रसंघ ने कहा है कि वो इस निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट जाएगा. छात्रसंघ के महासचिव फ़रुक़ ख़ान ने बीबीसी से हुई बातचीत में कहा, "याचिका दायर करने के अलावा हम उन राजनीतिक दलों से बात करेंगे जो धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करते हैं और मुस्लिम वोटों के तलबगार हैं." उनका कहना था कि केंद्र की यूपीए सरकार उनके समर्थन में दिखती है और वे राजनीतिक दलों से कहेंगे कि वे संसद में एक नया विधेयक लाकर एएमयू को मुस्लिम यूनिवर्सिटी का दर्जा दिए जाने का रास्ता बनाएँ. उधर भारतीय जनता पार्टी ने हाईकोर्ट के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा है कि मुससमानों के तुष्टिकरण की राजनीति नहीं होनी चाहिए. पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि यदि सरकार गंभीर है तो उसे बाक़ायदा क़ानून बनाकर मुसलमानों को आरक्षण देने का कोई रास्ता निकालना चाहिए. विवाद उल्लेखनीय है कि यह मामला पहले भी अदालत में आया था. अज़ीज़ बाशा का यह मामला 1968 में सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुँचा था. तब सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फ़ैसले में कहा था कि विश्वविद्यालय केंद्रीय विधायिका द्वारा स्थापित किया गया है और इसे अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं दिया जा सकता लिहाज़ा यहाँ धर्म के आधार पर आरक्षण भी नहीं दिया जा सकता. लेकिन सरकार ने इस फ़ैसले को प्रभावहीन करने के लिए 1981 में संविधान संशोधन विधेयक लाकर एएमयू को मुस्लिम यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया था. लेकिन यह मामला यूँ ही चलता रहा लेकिन जब केंद्र सरकार ने 50 फ़ीसदी सीटें मुसलमानों के लिए आरक्षित करने की माँग की तो इसका विरोध शुरु हुआ और इसके ख़िलाफ़ याचिका दायर की गई. |
इससे जुड़ी ख़बरें आँध्र में मुसलमानों को आरक्षण 06 अक्तूबर, 2005 | भारत और पड़ोस एएमयू पर बड़ा राजनीतिक विवाद05 अक्तूबर, 2005 | भारत और पड़ोस सरकार का फ़ैसला राजनीति से प्रेरित: नक़वी05 अक्तूबर, 2005 | भारत और पड़ोस आरक्षण राजनीतिक फ़ैसला नहीं था: फ़ातमी05 अक्तूबर, 2005 | भारत और पड़ोस अलीगढ़ विश्वविद्यालय पर राजनीति तेज़21 मई, 2005 | भारत और पड़ोस अनूठी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी17 अक्तूबर, 2004 | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||