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बिखर सकता है भाजपा का राष्ट्रीय स्वरूप | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
महीनों पहले यह साफ़ हो गया था कि लालकृष्ण आडवाणी को भाजपा के अध्यक्ष पद से जाना होगा. जिस राजनीतिक पाखंड से उन्होंने वेंकैया नायडू को हटाकर पद संभाला था उसकी पोल खुल गई है. वे रजत जयंती अधिवेशन के लिए आए थे. भविष्य से निराश लोग ही इतिहास में दर्ज होने के लिए आतुर रहते हैं. लालकृष्ण आडवाणी ने यही रास्ता अपने लिए पिछले साल चुना. लालकृष्ण आडवाणी ने अपने गलत फ़ैसले से भाजपा को बारूद के ढेर पर ला खड़ा किया है. उनके बाद भाजपा में राजनीतिक बमबारी होगी. जो भी अध्यक्ष बनेगा उसे एक नहीं, अनेक भीषण समस्याओं से जूझना पड़ेगा. अगला अध्यक्ष भाजपा खुद कई महीनों से इस समस्या से रूबरू है कि उसका अगला अध्यक्ष कौन हो. अटल बिहारी वाजेपयी की पसंद राजनाथ सिंह हैं. आडवाणी 2007 तक अपनी जगह वेंकैया नायडू को मनोनीत करना चाहते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मुरली मनोहर जोशी को भाजपा के अध्यक्ष पद पर विराजमान देखना चाहते हैं. वे दिल्ली आए और वाजपेयी, आडवाणी से मिले पर डॉ जोशी के नाम पर उन्हें सहमत नहीं करा सके. संघ नेतृत्व इंतज़ार करता रहा कि भाजपा के नेताद्वय अध्यक्ष के नामों पर उनसे परामर्श करेंगे. ऐसा होता न देख सरसंघचालक दिल्ली आ धमके. संघ चाहे या न चाहे, पर जो भी भाजपा का अध्यक्ष बनेगा वह उनका ही माना जाएगा. चुनौतियां नए अध्यक्ष की यह कोशिश भी होगी कि वे संघ को संतुष्ट रखे ताकि उनका वह हाल न हो जो आखिरी दिनों में आडवाणी का हुआ. नए अध्यक्ष के लिए मात्र यही एक चुनौती नहीं होगी. उसे ऐसी तमाम रोजमर्रा की चुनौतियों से रोज दो-चार होना पड़ेगा. उसे वाजपेयी और आडवाणी की मूर्ति पूजा करनी होगी पर क्या ये दोनों अपने लिए भाजपा की मात्र मूर्ति का स्थान स्वीकार करेंगे?
साफ़ है कि यह उन्हें रास नहीं आएगा. नए अध्यक्ष का पहला संकट यहाँ से शुरू होता है. कोढ़ में खाज यह है कि भाजपा में मूर्तिभंजन भी शुरू हो गया है. नए अध्यक्ष को अपने खाते में उपलब्धि दिखानी होगी. यह मौजूदा भाजपा को देखते हुए वैसा ही असंभव है जैसे किसी पंगु के लिए सुमेरु पर चढ़ना. उसे भावी अध्यक्ष बनने वाले उपलब्धि हासिल करने नहीं देंगे. असली सवाल तो 2007 का है. नए अध्यक्ष को लालकृष्ण आडवाणी की बनाई पगडंडी पर चलना होगा. उनको एक वेंकैया नायडू चाहिए और दूसरा अरुण जेटली पर क्या वे ऐसे सहयोगी पा सकेंगे? लगता नहीं है. देशभर में अपनी पहचान बनाने की जल्दी में नया अध्यक्ष गलतियाँ ज़्यादा करेगा. सामूहिक नेतृत्व का वह दावा करेगा लेकिन चलाएगा अपनी. इससे भाजपा का संकट गहरा होता जाएगा. भाजपा और संघ के संबंधों का रंग रोज बदल रहा है. पहले संघ उत्साह में था. वह भाजपा को सुधारने और संचालित करने का इरादा जता रहा था. वह इरादा अब पिघल चुका है. सरसंघचालक का नया बयान सबूत है. उन्होंने कहा है कि संघ विचार देता रहेगा. यह अचानक उपजी प्रज्ञा नहीं है, इसका वस्तुस्थिति से सीधा संबंध है. इससे भ्रम अधिक फैलेगा जो नए फफोले पैदा करेगा. बिखराव उमा भारती की बगावत ने भाजपा में पलीता लगा दिया है. राजग के संयोजक जार्ज फर्नांडीस मानते हैं कि मेल नहीं हो सकता. जाहिर है कि उमा भारती खुद को भाजपा साबित करने के लिए नई पार्टी बनाएंगी. पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह मानते हैं कि उमा भारती अधिक आक्रामक हिन्दुत्व की लाइन चलाएंगी. नया अध्यक्ष इसमें पिस जाएगा.
डॉ जोशी अपने समर्थकों से जनवरी तक इंतज़ार करने के लिए कह रहे हैं. वे अध्यक्ष नहीं बनते हैं तो मदनलाल खुराना, केशु भाई पटेल, रामाराव, बाबू लाल मरांडी आदि इस भाजपा के चिथड़े उड़ा सकते हैं. राजनाथ सिंह ने तरकीब से जो न्याय यात्रा उत्तर प्रदेश में निकलवाई है उससे भाजपा से निष्क्रमण तेज होगा. वहाँ बसपा विकल्प बन रही है. उसमें जाने वाले भाजपा नेताओं की लंबी लाइन है. जहाँ विकल्प नहीं है वहाँ भाजपा से निकलकर अपनी पार्टी बनाने का सिलसिला शुरू होगा. नए अध्यक्ष के नेतृत्व में यह भाजपा सुखाड़ रोग से पीड़ित होती जाएगी क्योंकि विचार और संस्था का द्वंद्व वह झेल नहीं पाएगी. इस भाजपा से वे नेता निकल जाएंगे जो हिंदुत्ववादी धारा की राजनीति का भविष्य देख रहे हैं. उसमें नरेन्द्र मोदी भी है. विश्व हिंदू परिषद जिस वोट बैंक की बात कर रहा है वह भाजपा पूरी नहीं कर सकती. इसलिए उससे जुड़े भाजपा नेता अपनी राह खुद चुनेंगे. ज़्यादा संभावना इस बात की है कि यह भाजपा देर-सवेर एक मोर्चे का हिस्सा होकर रह जाएगी. उसका राष्ट्रीय स्वरूप बिखर जाएगा. | इससे जुड़ी ख़बरें उमा भारती भाजपा से निष्कासित05 दिसंबर, 2005 | भारत और पड़ोस देश में तीसरे मार्चे की ज़रुरत-उमा04 दिसंबर, 2005 | भारत और पड़ोस उमा बन सकती हैं 'असली भाजपा'30 नवंबर, 2005 | भारत और पड़ोस भाजपा में नेतृत्व के दावेदार14 सितंबर, 2005 | भारत और पड़ोस राह से भटक गई है भाजपा14 सितंबर, 2005 | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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