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'सरकार टकराव नहीं चाहती है' | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
निजी कॉलेजों में आरक्षण के मामले पर सुप्रीम की टिप्पणी के जवाब में लोक सभा ने सर्वसम्मति से कहा कि क़ानून बनाने का अधिकार संसद के पास है और जब भी ज़रूरत होगी वह ऐसा करेगी. साथ ही सरकार की ओर से प्रणब मुखर्जी ने स्पष्ट किया कि सरकार इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के साथ कोई टकराव नहीं चाहती. उनका कहना था कि यह संवेदनशील मुद्दा है और इस मामले में संयम बरतने की ज़रूरत है. हालांकि संसद में इस बात पर भी सहमति हुई कि आरक्षण के मामले में जल्द ही क़ानून बनाया जाए. प्रणव मुखर्जी का कहना था कि हमें इस बात पर गर्व है कि हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है. उन्हें क़ानून की व्याख्या का अधिकार है और संसद को क़ानून बनाने का अधिकार है. लेकिन अनेक सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताया और कहा कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका स्वतंत्र हैं और उनके काम बंटे हुए हैं. टकराव नहीं लोक सभा में बुधवार को इस विषय पर विशेष चर्चा के दौरान भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा ने कहा कि कोई भी न्यायपालिका के साथ टकराव नहीं चाहता. लेकिन संसद की अलग भूमिका है. सीपीएम के वासुदेव आचार्य ने कहा कि यह सही है कि न्यापालिका के साथ कोई टकराव नहीं चाहता लेकिन कमज़ोर तबको को आरक्षण दिए जाने के लिए क़ानून बनाया जाना चाहिए. जनता दल-यू के नीतिश कुमार ने कहा कि धर्म बदलने से जात नहीं बदलती इसलिए जब भी क़ानून बनाया जाए तो इस बात का ध्यान रखा जाए कि इसमें दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों के भी आरक्षण की व्यवस्था हो. सीपीआई के गुरुदास दासगुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर जिंता जताई. उनका कहना था कि सामाजिक न्याय हमारे संविधान का आधार है. समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव का कहना था कि निजी कॉलेजों में आरक्षण की समाप्ति देश के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. आरजेडी के देवेंद्र यादव ने निजी कॉलेजों में आरक्षण के विषय पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने निजी उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण के उसके फ़ैसले पर सरकार के रवैये पर आपत्ति जताते हुए केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश ने यहाँ तक कहा कि न्यायालय के फ़ैसलों पर यदि सरकार का यही रुख़ है तो अदालतों को बंद कर दिया जाना चाहिए. पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट की एक सात सदस्यीय खंडपीठ ने सरकारी अनुदान न लेने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण ख़त्म करने का फ़ैसला दिया था. इस फ़ैसले पर संसद के दोनों सदनों में हंगामा हुआ था. |
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