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'विधेयक नहीं आम सहमति की ज़रूरत' | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री मीरा कुमार ने कहा है कि केंद्र सरकार निजी क्षेत्रों में आरक्षण के बारे में कोई विधेयक लाने की बजाए आम सहमति बनाकर आगे बढ़ना चाहती है. आपकी बात बीबीसी के साथ कार्यक्रम में श्रोताओं के सवालों के जवाब देते हुए मीरा कुमार ने कहा कि सामाजिक संरचना में पिछड़े हुए लोग निजी क्षेत्रों में पहले से ही काम करते रहे हैं और अब उन्हें औपचारिक रूप से आरक्षण देने की बात की जा रही है. उनका कहना था कि योग्यता किसी की संपत्ति नहीं है और जहाँ तक निजी क्षेत्र का सवाल है तो विभिन्न वर्गों में ऐसे लोग काम कर ही रहे हैं. मगर अब इन लोगों को अवसर देने की ज़रूरत है जिससे वे आगे बढ़ सकें. सामाजिक कल्याण मंत्री ने कहा कि संसद के दोनों सदनों में इस बारे में बहस हो चुकी है और सभी ने एक स्वर में इसका समर्थन किया है. उन्होंने इस योजना की सफलता की उम्मीद व्यक्त करते हुए कहा कि उद्योग जगत के लोगों से उनकी बात हुई है और इस योजना को समर्थन मिल रहा है. 'मुख्य धारा में लाने की ज़रूरत' सामाजिक आधार पर दिए जा रहे आरक्षण की जगह आर्थिक आधार पर आरक्षण के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि देश में अमीरों और ग़रीबों के बीच तो अंतर है ही सामाजिक आधार पर भी एक बड़ी जनसंख्या ऐसी है जिसे दबाकर रखा गया है. मीरा कुमार का कहना था कि अब ऐसे लोगों को मुख्य धारा में लाने की ज़रूरत है. इसलिए ऐसे लोगों को मुख्य धारा में लाने के लिए आधार का सामाजिक होना ज़रूरी है. सामाजिक कल्याण मंत्री ने कहा, "मैं मानती हूँ कि कोई भी देश तभी उन्नत होगा जब उसका हर नागरिक ख़ुद को मुख्य धारा का अंग मानेगा. अगर किसी को दबाया जाए तो देश तरक्की की ओर नहीं जा सकता." उन्होंने इस बात से भी इनकार किया कि आरक्षण की वजह से उच्च वर्ग के अगर कुछ लोगों को नौकरी नहीं मिल पा रही है तो कल उनकी वजह से सामाजिक संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है. मीरा कुमार का कहना था कि शिक्षा के ज़रिए लोगों को पूर्वाग्रहों को समाप्त करने की कोशिश की गई है. |
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