|
भाजपा कार्यकारिणी की बैठक टली | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भारतीय जनता पार्टी के भीतर लालकृष्ण आडवाणी के इस्तीफ़े को लेकर चल रही खींचतान के चलते 21 जुलाई से चेन्नई में होने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक टाल दी गई है. अब यह बैठक सितंबर में संसद के मानसून सत्र के बाद चेन्नई में ही होगी. माना जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के निर्देशों पर पार्टी ने बैठक टालने का निर्णय लिया है. हालांकि भाजपा ने कहा है कि 25 जुलाई से शुरु होने जा रहे संसद के सत्र की वजह से यह निर्णय लिया गया है. इससे पहले रविवार को संघ ने लालकृष्ण आडवाणी को एक पद छोड़ने के लिए कुछ मोहलत दे दी थी कि एक पद छोड़ने के लिए समय वे तय करें. अभी हालांकि यह तय नहीं है कि आडवाणी भाजपा अध्यक्ष का पद छोड़ेंगे या फिर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद. लेकिन माना जा रहा है कि वे पार्टी अध्यक्ष का ही पद छोड़ेंगे क्योंकि आरएसएस और पार्टी के भीतर दबाव उसी को छोड़ने के लिए है. अटल बिहारी वाजपेयी के निवास पर हुई भाजपा संसदीय दल की बैठक में कार्यकारिणी की बैठक स्थगित करने का फ़ैसला किया गया. इस बैठक के बाद भाजपा के प्रवक्ता वीके मलहोत्रा ने कहा है कि संसद के पूरे सत्र तक तो आडवाणी दोनों पदों पर बने रहेंगे. यानी 25 अगस्त तक की मोहलत तो आडवाणी को मिली ही है. नाटकीय घटनाक्रम उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान यात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी ने मोहम्मद अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष कहा था और इसके बाद पार्टी के भीतर और संघ परिवार में व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी. इसके चलते आडवाणी ने एक बार इस्तीफ़ा भी दे दिया था लेकिन नाटकीय घटनाक्रम के बाद वे इसे वापस लेने को भी राज़ी हो गए थे. तब माना जा रहा था कि विचारधारा को लेकर चल रही बहस एक बार टल गई है लेकिन सूरत में आरएसएस के प्रांत प्रचारकों की बैठक के बाद एक बार फिर आडवाणी को भाजपा अध्यक्ष के पद से हटाने की माँग उठने लगी. शुक्रवार, 15 जुलाई को आरएसएस ने एक बार फिर भाजपा नेताओं को बुलाकर कहा कि वे चाहते हैं कि वैचारिक भटकाव के मामले के चलते वे नहीं चाहते कि आडवाणी अपने पद पर बने रहें. इसके बाद भाजपा के दो पूर्व अध्यक्षों जना कृष्णमूर्ति और बंगारु लक्ष्मण के अलावा प्यारेलाल खंडेलवाल और मदनलाल खुराना जैसे नेताओं ने आडवाणी के ख़िलाफ़ बयान दिए थे. मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा नेता पहले से ही आडवाणी के अध्यक्ष बने रहने के ख़िलाफ़ बयान दे चुके थे. इसके बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और आरएसएस के नेताओं के बीच बैठकों का दौर चलता रहा और वेंकैया नायडू तथा सुषमा स्वराज सहित कई वरिष्ठ नेता संघ और पार्टी के बीच तालमेल बिठाने का काम करते रहे. मोहलत इस बीच अटल बिहारी वाजपेयी ने हस्तक्षेप किया और साथ ही बयान दिया कि एक नेता एक पद पार्टी की नीति है और संकेत दिए कि आडवाणी को एक पद छोड़ना होगा.
इसके बाद लालकृष्ण आडवाणी, जसवंत सिंह और संजय जोशी के साथ आरएसएस के मुख्यालय गए जहाँ उनकी मुलाक़ात मोहन भागवत और सुरेश सोनी के साथ हुई. इस मुलाक़ात के बाद संघ ने एक बयान जारी करके कहा कि वे भाजपा के मामले में कोई दखल नहीं दे रहे हैं लेकिन वे चाहते हैं कि संघ से जुड़े सभी संगठन के नेता विचारधारा पर क़ायम रहें. ख़बरें है कि इसी मुलाक़ात के बाद आडवाणी को आरएसएस की ओर से कुछ मोहलत दी गई कि वे अपने इस्तीफ़े का समय ख़ुद ही तय करें. पार्टी के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता चाहते थे कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की 21 जुलाई से होने वाली बैठक टाल दी जाए लेकिन संघ का मत था कि इसे फ़िलहाल टाल दिया जाए और वैचारिक मतभेद दूर होने के बाद ही यह बैठक हो. आख़िरकार भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद पार्टी ने तय किया है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक टाल दी जाए. |
| ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||