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होली के रंग नज़ीर अकबराबादी के संग | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भारत में होली को एक परंपरा के रूप में देखा जाता है. पूरा माहौल मस्ती से झूम उठता है. शायद यही वजह थी कि होली से नज़ीर अकराबादी जैसे शायर भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहे. उन्होंने कहा - वैसे तो उर्दू में एक से एक बेहतरीन शायर हुए हैं लेकिन नज़ीर अपना अलग स्थान रखते हैं. नज़ीर को सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल माना जाता है. उन्होंने होली से लेकर लगभग सभी हिंदू मुस्लिम त्योहारों पर अपनी कलम चलाई. माना जाता है कि नज़ीर के जीवन का ज़्यादातर हिस्सा आगरा में बीता. नज़ीर लिखते हैं- नज़ीर पर होली का पूरा रंग चढ़ता था. उनकी रचनाओं से ये साफ़ है. सबमें मची होली अब तुम भी ये चरचा लो नज़ीर के कलम से होली का एक और रंग देखिए. इस दम तो मियाँ हम तुम इस ऐश की ठहरावें नज़ीर की शायरी इतने रंगों में है कि उसे समेटना मुश्किल है. हम नई कविता की बात करते हैं लेकिन लगभग 150 साल पहले नज़ीर की रचनाएँ हमें इससे रूबरू कराती है. यही वजह है कि उन्हें जनकवि मियाँ नज़ीर अकबराबादी कहा जाता है. होली पर नज़ीर की एक और बानगी देखिए. तुम रंग इधर लाओ और हम भी उधर आवें |
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