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नंदगाँव और बरसाने की लठमार होली | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
‘बरसाने में आई जइयो बुलाए गई राधा प्यारी’ इस गीत के साथ ही ब्रज की होली की मस्ती शुरू होती है. वैसे तो होली पूरे भारत में मनाई जाती है लेकिन ब्रज की होली ख़ास मस्ती भरी होती है. वजह ये कि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है. होता ये है कि होली की टोलियों में नंदगाँव के पुरूष होते हैं क्योंकि कृष्ण यहीं के थे और बरसाने की महिलाएं क्योंकि राधा बरसाने की थीं. दिलचस्प बात ये होती है कि ये होली बाकी भारत में खेली जाने वाली होली से पहले खेली जाती है. दिन शुरू होते ही नंदगाँव के हुरियारों की टोलियाँ बरसाने पहुँचने लगती हैं. साथ ही पहुँचने लगती हैं कीर्तन मंडलियाँ. इस दौरान भाँग-ठंढई का ख़ूब इंतज़ाम होता है. ब्रजवासी लोगों की चिरौंटा जैसी आखों को देखकर भाँग ठंढई की व्यवस्था का अंदाज़ लगा लेते हैं. बरसाने में टेसू के फूलों के भगोने तैयार रहते हैं. दोपहर तक घमासान लठमार होली का समाँ बंध चुका होता है. मुक़ाबला नंदगाँव के लोगों के हाथ में पिचकारियाँ होती हैं और बरसाने की महिलाओं के हाथ में लाठियाँ. और शुरू हो जाती है होली.
पुरूषों को बरसाने वालियों की टोली की लाठियों से बचना होता है और नंदगाँव के हुरियारे लाठियों की मार से बचने के साथ साथ उन्हें रंगों से भिगोने का पूरा प्रयास करते हैं. इस दौरान होरियों का गायन भी साथ-साथ चलता रहता है. आसपास की कीर्तन मंडलियाँ वहाँ जमा हो जाती हैं. इसे एक धार्मिक परंपरा के रूप में देखा जाता है. ‘कान्हा बरसाने में आई जइयो बुलाए गई राधा प्यारी’ ‘फाग खेलन आए हैं नटवर नंद किशोर’ और ‘उड़त गुलाल लाल भए बदरा’ जैसे गीतों की मस्ती से पूरा माहौल झूम उठता है. लोग मृदंग और ढोल ताशों की थाप पर थिरकने लगते हैं. कहा जाता है कि ‘सब जग होरी, जा ब्रज होरा’ इसका आशय यही है कि ब्रज की होली और जगहों से बिल्कुल अलग होती है. | इससे जुड़ी ख़बरें कृष्ण-राधा से लेकर अकबर-जोधाबाई तक06 मार्च, 2004 | भारत और पड़ोस कुमाऊँ की बैठक होली05 मार्च, 2004 | भारत और पड़ोस कुएँ में भांग और बौराए हुए लोग06 मार्च, 2004 | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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