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जनगणना आयोग बनाने का सुझाव | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भारत के प्रमुख जनसंख्या विश्लेषक डॉक्टर आशीष बोस ने निर्वाचन आयोग की तर्ज़ पर एक जनगणना आयोग बनाए जाने की हिमायत की है ताकि जनसंख्या आँकड़ों में किसी भूल की गुंजाइश न रहे. बोस का मानना है कि इससे जनसंख्या अधिकारियों पर दबाव भी कम होगा और जैसा कि हाल ही में मुसलमानों में जनसंख्या वृद्धि के आँकड़ों में कुछ त्रुटियाँ नज़र आईं, उनसे बचा जा सकेगा. ग़ौरतलब है कि मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि को लेकर हाल ही में कुछ विरोधाभासी ख़बरें आई थीं जिससे इस मसले ने काफ़ी तूल पकड़ा. सरकार ने इस मामले के बाद पूरी जनसंख्या रिपोर्ट की जाँच के लिए एक समिति गठित की जिसके अध्यक्ष डॉक्टर आशीष बोस ही हैं और वह दो महीने में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देंगे. डॉक्टर आशीष बोस बीबीसी हिंदी के साप्ताहिक कार्यक्रम - 'आपकी बात-बीबीसी के साथ' में श्रोताओं के सवालों के जवाब दे रहे थे. बोस ने कहा, "मैंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर माँग की है कि निर्वाचन आयोग की तर्ज़ पर ही एक जनसंख्या आयोग बनाया जाए क्योंकि जनसंख्या का काम बहुत ही महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ संवेदनशील भी है." "हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 1947 में देश का बँटवारा जनसंख्या के आँकड़ों के आधार पर ही हुआ था और 1956 में भाषाई आधार पर जो राज्यों का पुनर्गठन हुआ उसमें भी जनसंख्या आँकड़ों का ही सहारा लिया गया था." आँकड़े संवेदनशील बोस का कहना था कि देश में चुनाव भी जनसंख्या आँकड़ों के आधार पर ही होते हैं. बोस ने कहा कि मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर के बारे में उठा विवाद चाय के प्याले में तूफ़ान की तरह है. "यह पहला मौक़ा नहीं है कि जनगणना में धर्म का सवाल भी पूछा गया था. यह 1871 में हुई पहली जनगणना से ही चला आ रहा है. मैं मानता हूँ कि जनगणना आयुक्त से कुछ भूल हुई है लेकिन यह ग़लत प्रक्रिया अपनाए जाने की वजह से हुई."
बोस ने कहा कि मुसलमानों में जनसंख्या वृद्धि दर को ग़लत तरीक़े से 36 प्रतिशत बता दिया गया. इस भूल को सुधारा गया और अब सही आँकड़े जो पेश किए गए हैं उनमें यह 29 प्रतिशत है. "कुछ नेताओं सहित ज़्यादातर लोग इस पूरे मुद्दे को सही तरीक़े से नहीं समझ पाए और समझ बैठे कि मुसलमानों की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है और हिंदुओं की जनसंख्या घट रही है, जोकि बिल्कुल भी सच नहीं है." बोस का कहना था कि कुछ नेताओं ने इस पूरे विषय को उलझा दिया और अनुपात और प्रतिशत में भ्रम पैदा कर दिया. बोस ने सुझाव दिया कि सरकार चाहे तो 2011 में प्रस्तावित अगली जनगणना में धर्म संबंधी सवाल को हटा सकती है लेकिन इससे बहुत से नए विवाद भी शुरू हो सकते हैं. मसलन, बहुत से लोग आरक्षण की माँग करेंगे और कुछ अन्य पूरी जानकारी हासिल करना चाहेंगे. "इससे अच्छा है कि इस तरह के विवादों से बचने के लिए जनगणना का पूरा काम स्वतंत्र और पेशेवर तरीक़े से होना चाहिए." डॉक्टर बोस ने कहा कि दरअसल बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदायों में परिवार नियोजन असरदार तरीक़े से लागू नहीं हो पाया है. "इसकी वजह ये है कि दोनों ही समुदाय परंपरावादी हैं. निरक्षरता और जागरूकता के अभाव ने मसले को और नाज़ुक बना दिया है." डॉक्टर आशीष बोस ने सुझाव दिया कि इस संवेदनशील मुद्दे से धार्मिक कट्टरपंथियों को अलग रखा जाए और मुसलमानों सहित अन्य समुदायों को भी बेरोज़गारी और पिछड़ेपन से बचने के लिए परिवार नियोजन में बढ़चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए. |
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