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मुस्लिम औरतें बुरक़ा क्यों पहनती हैं? | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
ब्रिटेन के कैबिनेट मंत्री जैक स्ट्रॉ के बयान से नक़ाब या बुरक़े के बारे में यह विवाद खड़ा हो गया है कि मुस्लिम महिलाओं को बुरक़ा पहनना चाहिए या सिर्फ़ हिजाब काफ़ी है. अल्लाह का पैग़ाम कही जाने वाली इस्लाम की पवित्र पुस्तक क़ुरआन में विस्तार से बताया गया है कि मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों को किस तरह का लिबास पहनना चाहिए. मुस्लिम पुरुषों के बारे में कहा गया है कि उन्हें ऐसा लिबास पहनना ज़रूरी है जिससे शरीर नाभि के कुछ ऊपर से लेकर घुटनों के नीचे तक ढका जा सके. मुस्लिम महिलाओं के बारे में कहा गया है कि वे ऐसा लिबास पहनें जिससे उनका चेहरा, हाथ और पाँवों के अलावा शरीर का कोई हिस्सा नज़र नहीं आना चाहिए और यह लिबास वे ऐसे पुरुषों की मौजूदगी में अवश्य पहनें जो उनके रिश्तेदार नहीं हैं या उनसे उनकी शादी नहीं हुई है. हालाँकि इस मुद्दे पर इस्लामी विद्वानों में भी ख़ासी बहस चलती रही है कि महिलाओं और पुरुषों के लिबास की सही परिभाषा क्या है. इसी बहस की वजह से दो शब्द चल निकले हैं - हिजाब और नक़ाब. हिजाब एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है सिर ढँकना और नक़ाब का मतलब है पूरी तरह से ढकना, जिसे बुरक़े के संदर्भ में समझा जा सकता है. बुरक़ा वह परिधान है जिसमें पूरा शरीर ढका होता है और सिर्फ़ आँखों से झाँकने के लिए एक झिल्ली या जाली लगी होती है लेकिन हिजाब में चेहरा नज़र आता है मगर बाल और गर्दन छुपे होते हैं. पश्चिमी देशों में हिजाब ज़्यादा लोकप्रिय नज़र आता है लेकिन बुरक़ा एशियाई देशों में ख़ासा प्रयोग में देखा जाता है, हालाँकि पश्चिमी देशों में भी कुछ इलाक़ों में मुस्लिम महिलाएँ बुरक़ा पहनना पसंद करती हैं. लेकिन हाल के समय में बुरक़े का चलन बढ़ता जा रहा है और इसी को लेकर ब्रितानी कैबिनेट मंत्री जैक स्ट्रॉ ने सुझाव दिया है कि अगर कोई महिला बुरक़ा पहनकर उनसे बात करने आती है तो वह उससे बात करने में सहज महसूस नहीं करते इसलिए बुरक़ा हटाने पर ग़ौर किया जाना चाहिए.
अलबत्ता जैक स्ट्रॉ ने कहा कि अगर कोई मुस्लिम महिला हिजाब पहनती है जिसमें उसका चेहरा नज़र आ सकता है तो बातचीत ज़्यादा सहज तरीके से हो सकती है क्योंकि जिस महिला से बातचीत की जा रहा है उसके चेहरे के हावभाव को समझने में आसानी हो सकती है. मुस्लिम विद्वानों में इस मुद्दे पर ख़ासी बहस होती रही है कि क्या नक़ाब या बुरक़ा पहनना अनिवार्य है या फिर इसे पहनने की सिफ़ारिश की गई लेकिन अनिवार्य नहीं बनाया गया हो. कुछ ऐसे भी सुझाव आए हैं कि सिर पर दुपट्टा या स्कार्फ़ ओढ़ना ग़ैरज़रूरी है जब तक कि कोई महिला क़ुरआन में बयान किए गए विवरण के अनुसार सिले हुए कपड़े पहनें. इन सुझावों को उदार कहा गया है. विद्वानों के मतभेद क़ुरआन में महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा गया है कि अपने अंगों को छुपाकर रखें और अपना श्रंगार या आभूषणों का दिखावा नहीं करें, "सिवाय उसके जो स्वभाविक रूप से नज़र आए." इस्लामी विद्वानों में इस वाक्य के अंतिम हिस्से पर मतभेद हैं कि आख़िर इसका क्या मतलब निकाला जाए. क्या इसका यह मतलब किसी महिला के कपड़ों की बाहरी परत से है जिसके मतलब निकलता हो कि उसे ऐसा परिधान पहनना ज़रूरी है जो उसके पूरे शरीर को ढक ले और बुरक़ा या नक़ाब इसी श्रेणी में आते हैं. या क्या यह चेहरे और हाथों के संदर्भ में कुछ छूट देता है, साथ ही काजल, अंगूठी, कंगन और श्रंगार जैसी परंपरागत महिला सुलभ चीज़ों की भी छूट देता है.
इस बाद वाली परिभाषा को इस्लामी इतिहास के अनेक प्रमुख विद्वानों ने स्वीकार कर लिया है जैसेकि अबू जाफ़र अल तबरी जो हिजाब का समर्थन करते हैं. क़ुरआन में कुछ और हिदायतें भी दी गई हैं जिन पर ख़ासी बहस हुई है. मसलन, महिलाओं को अपना वक्षस्थल ढकने की हिदायत दी गई है और अपने चारों और एक लबादा जैसा दुपट्टा या चादर भी पहनने को कहा गया है. लेकिन इन आदतों में मुस्लिम देशों में भी अंतर देखा गया है और इंडोनेशिया से लेकर मोरक्को तक मुस्लिम औरतों में इस मामले में कुछ अलग-अलग परंपराएँ देखी जाती हैं. लेकिन यह मुस्लिम महिलाओं पर ही छोड़ा जा सकता है कि वे इस बारे में क्या फ़ैसला लें, क्या वे अपने मज़हब और इस्लामी पहचान के तौर पर नक़ाब या बुरक़ा पहनना चाहें या नहीं. फ्रांस और तुर्की जैसे देशों में धार्मिक परिधानों पर कुछ क़ानूनी पाबंदियाँ हैं तो महिलाओं के मामलों में यह उनका मानवाधिकार बन गया है कि वे क्या परिधान पहनें. लेकिन इसके साथ ही नक़ाब के बारे में ख़ासतौर से विकसित समाजों में बहुत से उदारवादी मुसलमानों को अक्सर ऐतराज़ करते हुए देखा जा सकता है जहाँ महिलाओं को सदियों से चली आ रही कुछ पाबंदियों को हटाने के लिए ख़ासी लंबी लड़ाई करनी पड़ी है. | इससे जुड़ी ख़बरें हिजाब, नक़ाब, बुरक़ा...पहला पन्ना बुर्क़े पर स्ट्रॉ के बयान से विवाद06 अक्तूबर, 2006 | पहला पन्ना फ़ैशन के दौर में बदल रहा है बुर्क़ा28 जनवरी, 2006 | भारत और पड़ोस नीदरलैंड में बुर्क़ा पाबंदी पर विचार22 दिसंबर, 2005 | पहला पन्ना सदियों पुराने हैं ईरान और भारत के रिश्ते 29 जुलाई, 2005 | पहला पन्ना परदे के पीछे आज़ादी की एक बयार28 जुलाई, 2005 | पहला पन्ना बेपर्दा महिलाओं से सऊदी धार्मिक नेता नाराज़21 जनवरी, 2004 | पहला पन्ना | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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