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लेबनान में हिंसक प्रदर्शन, मंत्री का इस्तीफ़ा | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पैगंबर मोहम्मद साहब के कार्टूनों के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने लेबनान की राजधानी बेरूत में डेनमार्क के दूतावास को आग लगा दी जिसके लेबनान के गृह मंत्री हसन अल-सबा ने इस्तीफ़ा दे दिया. रविवार को पैगंबर मोहम्मद के कार्टूनों से नाराज़ मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने डेनमार्क के दूतावास की इमारत को नुक़सान पहुँचाया और उसे आग लगा दी. उस हिंसक प्रदर्शन में एक व्यक्ति मारा गया और तीस अन्य घायल हुए. इसके बाद दो सौ लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. बीबीसी संवाददाता का कहना है कि जब ये प्रदर्शन हुआ तो इमारत में कोई नहीं था लेकिन इमारत को ख़ासा नुक़सान पहुँचा. लेबनान के गृह मंत्री हसन अल-सबा का कहना था कि वे सैनिकों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने की इजाज़त नहीं देना चाहते थे. शनिवार को सीरिया की राजधानी दमिश्क में डेनमार्क और नॉर्वे के दूतावासों में आग लगा दी गई थी. सीरिया पर आरोप लेबनान में कई राजनीतिक नेताओं ने आरोप लगाया कि इस हिंसा के लिए सीरिया ज़िम्मेदार है क्योंकि वह लेबनान की सुरक्षा को नुक़सान पहुँचाना चाहता है.
जिस गुट ने प्रदर्शन का आयोजन किया था उसके सीरिया से क़रीबी रिश्ते बताए जाते हैं. जिन दो सौ लोगों को प्रदर्शन के बाद गिरफ़्तार किया गया उनमें से कई सीरियाई हैं. बीबीसी संवाददाता का कहना है कि इस घटना से सीरिया की विरोधी समझे जाने वाली लेबनान की सरकार को भारी धक्का लगा है और इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ा है. कई जगह से आए प्रदर्शनकारी रविवार को लेबनान की राजधानी बेरूत में एक सुन्नी मुसलमान संगठन ने डेनमार्क के दूतावास के बाहर प्रदर्शन आयोजित किया था और इसमें लेबनान के कई इलाक़ों से लोग एकत्र हुए.
प्रदर्शनकारियों का कहना था कि सबसे पहले डेनमार्क के अख़बार 'यूलाँस पोस्तेन' में ही पैगंबर मोहम्मद साहब के कार्टून प्रकाशित हुए थे और वे इसी का विरोध कर रहे थे. शुरू में सुरक्षाकर्मी लोगों को रोक रहे थे लेकिन जब भीड़ में से कुछ लोग उग्र होकर तेज़ी से आगे बढ़ने लगे तो सुरक्षाकर्मी पीछे हट गए. फिर कई लोग डेनमार्क के दूतावास में घुस गए और इमारत में अंदर से आग लगा दी गई. डेनमार्क के विदेश मंत्रालय के अधिकारी लार्स थ्युसेन ने कहा, "दूतावास शनिवार को ही ख़ाली कर दिया गया था इसीलिए वहाँ तो कोई नहीं था यूरोप में तीखी बहस इससे पहले शनिवार को सीरिया की राजधानी दमिश्क में डेनमार्क और नॉर्वे के दूतावासों के जलाए गए थे जिसके बाद दोनों देशों ने अपने नागरिकों को सीरिया छोड़ने के आदेश दे दिए. अमरीका ने इन हमलों की कड़ी आलोचना की थी. इस बीच, यूरोप में इस मसले को लेकर बहस जारी है. डेनमार्क से यूरोपीय संसद के प्रतिनिधि येन्स पीटर बॉन्ड का कहना था कि मामला सिर्फ़ कुछ कार्टूनों का नहीं है. उन्होंने कहा, "ये कई वर्षों के अपमान का नतीजा है. हम पश्चिमी देशों ने मुस्लिम देशों को दशकों तक उपनिवेश बनाकर रखा, उनका विकास नहीं होने दिया. ब्रिटेन और फ़्राँस ख़ास तौर पर इसके लिए ज़िम्मेदार हैं." उन्होंने कहा कि मध्य पूर्व में लगातार तनाव, अमरीका को इसराइल को समर्थन और फ़लस्तीनियों को अपना देश न देना, कृषि उत्पाद पश्चिम में बेचने न देने जैसे मुद्दों का असर अब प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया है. उधर ब्रिटेन में चर्च ऑफ़ इंग्लैंड में रोचेस्टर के बिशप, पाकिस्तानी मूल के माइकल नज़र अली कहते हैं कि इस तरह के विवाद के तात्कालिक कारणों से आगे भी कई आयाम होते हैं. उन्होंने कहा, "यहाँ प्रश्न बोलने की, अभिव्यक्ति की आज़ादी का है और चर्च उसका पूरी तरह समर्थन करता है. मुझे लगता है कि इस वक़्त कुछ मुस्लिम देशों में बोलने की जितनी आज़ादी दी जाती है उससे ज़्यादा दी जानी चाहिए." जब बिशप माइकल नज़ीर अली से पूछा गया कि क्या उन्हें यीशू यानी जीसस क्राइस्ट का मखौल उड़ाने पर आपत्ति नहीं है, तो उनका कहना था कि ये तो फ़िल्मों, नाटकों और उपन्यासों में होता आया है. |
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