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लेबनान में डेनमार्क का दूतावास जलाया गया | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पैगंबर मोहम्मद के कार्टूनों से नाराज़ मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने लेबनान की राजधानी बेरूत स्थित डेनमार्क के दूतावास को आग लगा दी है. बेरूत से बीबीसी संवाददाता ने बताया है कि इमारत में कोई नहीं था लेकिन इमारत को ख़ासा नुक़सान पहुँचा है. प्रदर्शनकारियों ने शनिवार को सीरिया की राजधानी दमिश्क में डेनमार्क और नॉर्वे के दूतावासों में आग लगा दी थी. रविवार को लेबनान की राजधानी बेरूत में एक सुन्नी मुसलमान संगठन ने डेनमार्क के दूतावास के बाहर प्रदर्शन आयोजित किया था जिसके लिए लेबनान के कई इलाक़ों से लोग लाए गए थे. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि सबसे पहले डेनमार्क के अख़बार “यूलाँस पोस्तेन” में ही पैगंबर मोहम्मद साहब के कार्टून प्रकाशित हुए थे और इसका वे विरोध करते हैं. शुरू में सुरक्षाकर्मी लोगों को रोक रहे थे लेकिन जब भीड़ में से कुछ लोग उग्र होकर तेज़ी से आगे बढ़ने लगे तो सुरक्षाकर्मी पीछे हट गए. फिर कई लोग डेनमार्क के दूतावास में घुस गए और इमारत में अंदर से आग लगा दी गई. चिंता राजधानी कोपेनहेगन से डेनमार्क के विदेश मंत्रालय के अधिकारी लार्स थ्युसेन ने कहा, "दूतावास शनिवार को ही खाली कर दिया गया था इसीलिए वहाँ तो कोई नहीं था लेकिन लेबनान में डेनमार्क के लगभग 400 लोग रहते हैं इसीलिए हम चिंतित हैं और इसके लिए हमारे विदेश मंत्री सीरिया के नेताओं से बात कर रहे हैं." इससे पहले शनिवार को सीरिया की राजधानी दमिश्क में डेनमार्क और नॉर्वे के दूतावासों के जलाए गए थे जिसके बाद दोनों देशों ने अपने नागरिकों को सीरिया छोड़ने के आदेश दे दिए हैं. अमरीका ने इन हमलों की कड़ी आलोचना की है. इस बीच, यूरोप में इस मसले को लेकर बहस जारी है. डेनमार्क से यूरोपीय संसद के प्रतिनिधि येन्स पीटर बॉन्ड कहते हैं कि मामला सिर्फ़ कुछ कार्टूनों का नहीं है. उन्होंने कहा, "ये कई वर्षों के अपमान का नतीजा है. हम पश्चिमी देशों ने मुस्लिम देशों को दशकों तक उपनिवेश बनाकर रखा, उनका पर्याप्त विकास नहीं होने दिया. ब्रिटेन और फ़्राँस ख़ास तौर पर इसके लिए ज़िम्मेदार हैं." उन्होंने कहा कि मध्य पूर्व में लगातार तनाव, अमरीका को इसराइल को समर्थन और फ़लस्तीनियों को अपना देश न देना, कृषि उत्पाद पश्चिम में बेचने न देना – ऐसे कई मुद्दे हैं जिनका असर ऐसे समय में प्रतिक्रिया के रूप में सामने आ रहे हैं. ब्रिटेन में चर्च ऑफ़ इंग्लैंड में रोचेस्टर के बिशप, पाकिस्तानी मूल के माइकल नज़र अली कहते हैं कि इस तरह के विवाद के तात्कालिक कारणों से आगे भी कई आयाम होते हैं. उन्होंने कहा, " यहाँ प्रश्न बोलने की, अभिव्यक्ति की आज़ादी का है और चर्च उसका पूरी तरह समर्थन करता है. मुझे लगता है कि इस वक़्त कुछ मुस्लिम देशों में बोलने की जितनी आज़ादी दी जाती है उससे ज़्यादा दी जानी चाहिए." और जब बिशप माइकल नज़ीर अली से पूछा गया कि क्या उन्हें यीशू यानी जीसस क्राइस्ट का मखौल उड़ाने पर भी आपत्ति नहीं है? तो उनका कहना था कि ये तो फ़िल्मों, नाटकों और उपन्यासों में होता आया है. |
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