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रविवार, 21 अगस्त, 2005 को 23:30 GMT तक के समाचार
 
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जेल से लिखी सद्दाम हुसैन ने चिट्ठी
 
सद्दाम हुसैन
सद्दाम हुसैन ने अरब लोगों से उनका अनुसरण करने की अपील की
जॉर्डन के अख़बारों में इराक़ के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की एक चिट्ठी छपी है जिसमें उन्होंने इराक़ और फ़लस्तीनियों के लिए अपने को बलिदान कर देने की बात लिखी है.

जेल से लिखी सद्दाम हुसैन की इस चिट्ठी को अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसाइटी ने जारी किया है जिसका कहना है कि यह चिट्ठी सच्ची है.

इराक़ में सद्दाम हुसैन पर मुक़दमा चल रहा है और उन्हें किसी अज्ञात स्थान पर क़ैद करके रखा गया है. जल्द ही उन पर 1982 में शिया मुसलमानों की हत्या के मामले में मुक़दमा शुरू होने वाला है.

इस चिट्ठी में सद्दाम हुसैन ने लिखा है, "मैंने और मेरे परिवार ने अपने प्यारे और अभागे इराक़ के साथ-साथ फ़लस्तीन के लिए अपने को बलिदान कर दिया."

इस चिट्ठी में सद्दाम हुसैन ने लिखा है कि विश्वास, प्यार और अपने देश की परंपरा के बिना जीवन बेकार है. सद्दाम हुसैन ने अरब लोगों से अपील की है कि वे उनका अनुसरण करें.

बीबीसी संवाददाता का कहना है कि आक्रमक अंदाज़ में लिखी गई इस चिट्ठी में सद्दाम हुसैन अपने पुराने रंग में नज़र आते हैं. इराक़ के साथ-साथ फ़लस्तीनियों की बात करके उन्होंने अपने पुराने भाषणों की याद ताज़ा कर दी है.

सेंसर

अपने पत्र के अंत में सद्दाम हुसैन ने फ़लस्तीन की जयकार की है और अपने देश के प्रति अपने प्यार का ज़िक्र किया है.

रेड क्रॉस ने पत्र की प्रामाणिकता की पुष्टि की है

यह पत्र पहले सद्दाम हुसैन के एक मित्र के पास ले जाया गया. सद्दाम हुसैन के इस मित्र ने अपना नाम सार्वजनिक कराने से मना कर दिया. बाद में यह पत्र जॉर्डन के दो अख़बारों में छपा.

अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसाइटी के प्रवक्ता राना सिदानी ने कहा कि यह पत्र वास्तविक है. उन्होंने कहा, "हम जॉर्डन के अख़बारों में छपे सद्दाम हुसैन के पत्र की प्रामाणिकता की पुष्टि करते हैं. यह पत्र वास्तविक है."

उन्होंने बताया कि रेड क्रॉस को मिलने से पहले इस चिट्ठी को सेंसर भी किया गया. यानी सद्दाम हुसैन को हिरासत में रखने वाले अधिकारियों ने पत्र में काट-छाँट भी की.

क़रीब 18 महीने पहले सद्दाम हुसैन को अमरीकी सैनिकों ने गिरफ़्तार किया था. सद्दाम हुसैन पर मुक़दमा चलाने के लिए विशेष अदालत का गठन किया गया है.

उन पर कई मामले हैं जिनमें महत्वपूर्ण है 1982 में बड़ी संख्या में शिया मुसलमानों की हत्या का आरोप. इन मामलों में उन्हें मौत की सज़ा भी मिल सकती है.

 
 
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