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एमनेस्टी की वार्षिक रिपोर्ट | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
एमनेस्टी इंटरनेशनल की वार्षिक रिपोर्ट में एशिया महाद्वीप के देशों में मानवाधिकारों उल्लंघन की काली तस्वीर खींची गई है. रिपोर्ट के अनुसार कई देशों में राजनीतिक और नागरिक अधिकार नहीं दिए जा रहे हैं और कुछ देश हथियारबंद संघर्ष से जूझ रहे हैं. रिपोर्ट में पिछले साल दुनिया भर में मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं का आकलन किया गया है. एशिया के बारे में रिपोर्ट में लंबा चौड़ा ब्यौरा है जो इस महाद्वीप के देशों की बड़ी काली तस्वीर पेश करता है. इसके अनुसार एशिया के कई देशों में मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं बड़े पैमाने पर हो रही है. चीन, लाओस, बर्मा, उत्तर कोरिया जैसे देशों में जहां राजनीतिक अधिकार नहीं दिए जाने की बात कही गई है वहीं चीन और विएतनाम में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने का भी जिक्र है. बर्मा में अंग सन सू की समेत हज़ारों राजनीतिक कैदियों को जेलों में बंद रखने की बात है और कहा गया है कि एशिया में राजनीतिक आज़ादी का ढांचा अभी भी कमज़ोर है जिससे मानवाधिकारों की रक्षा नहीं हो पाती है. रिपोर्ट में नेपाल की कड़ी आलोचना की गई है और कहा गया है कि लगातार दूसरे साल साल सबसे अधिक लोग इसी देश में गायब हुए हैं. श्रीलंका में सैनिक संघर्ष में हुई मौतों, इंडोनेशिया के आचे प्रांत की हिंसा और अफ़गानिस्तान में अमरीकी जेलों में अफ़गानी लोगों को दी जा रही यातना का भी जिक्र किया गया है. रिपोर्ट का कहना है कि चीन, भारत,मलेशिया, नेपाल और पाकिस्तान जैसे देशों में आतंकवाद निरोधक क़ानून ऐसे हैं जिनसे लोगों के मानवाधिकार का उल्लंघन हो सकता है. रिपोर्ट के अनुसार सूनामी में बेघर हुए लोगों की ओर पूरे विश्व का ध्यान गया है लेकिन अफ़गानिस्तान, श्रीलंका और ऐसे अन्य स्थानों में सशस्त्र संघर्ष के कारण बेघर हुए लोगों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. |
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