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मौत की सज़ा में बढ़ोत्तरी दर्ज हुई | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दुनिया भर में मौत की सज़ा की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए कहा है कि वर्ष 2004 में दुनिया भर में जिन लोगों को मौत की सज़ा दी गई उनकी ज्ञात संख्या लगभग एक दशक में सबसे ज़्यादा रही. एमनेस्टी इंटरनेशनल की मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2004 में तक़रीबन चार हज़ार लोगों को मौत की सज़ा दी गई. इसके अलावा रिपोर्ट के अनुसार 7000 से भी अधिक लोगों को मौत की सज़ा सुनाई गई थी. साल 2004 में सबसे अधिक मौत की सज़ा चीन में दी गईं. आँकड़ों में ये बढ़ोत्तरी इसलिए दर्ज की गई है क्योंकि एमनेस्टी ने वहाँ दी जाने वाली मौत की सज़ा की संख्या के आकलन का तरीक़ा बदल दिया है. पिछले साल तक संगठन अख़बारों की रिपोर्टों का सहारा लेकर आकलन करता था कि कितने लोग मारे गए और वर्ष 2003 में ये संख्या 700 रही थी. 'चिंताजनक आँकड़े' इस बार उन्होंने इंटरनेट का सहारा लिया. देश में अदालतों में मुक़दमों के बारे में छानबीन की और जो संख्या आई वो पिछली बार से पाँच गुनी थी. एमनेस्टी के अनुसार ये आँकड़ा बहुत चिंताजनक है. रिपोर्ट में ईरान पर तीन बाल अपराधियों को मौत की सज़ा देने का आरोप भी लगाया गया है जिनमें एक 16 वर्षीया लड़की भी शामिल है जिसे सार्वजनिक रूप में मौत की सज़ा दी गई. ये तब है जबकि ईरान ने बच्चों को मौत की सज़ा नहीं देने संबंधी एक अंतरराष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर किया हुआ है. वैसे एक तरफ़ तो मौत की सज़ा देने की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है मगर वहीं दूसरी ओर मौत की सज़ा को ग़ैर क़ानूनी क़रार देने वाले देशों की संख्या भी बढ़ी है. पिछले साल पाँच और देशों ने इसे पूरी तरह बंद कर दिया. |
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