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मंगलवार, 07 अक्तूबर, 2003 को 18:07 GMT तक के समाचार
 
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कश्मीर: सीमा का विवाद
भारतीय सैनिक
नियंत्रण रेखा पर दोनों तरफ़ से ग़ोलाबारी होती ही रहती है
 

भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा 740 किलोमीटर लंबी है.

यह पर्वतों और निवास के लिए प्रतिकूल इलाक़ों से गुजरती है.

कुछ जगह पर यह गाँवों को दो हिस्सों में बाँटती है तो कहीं पर्वतों को.

वहाँ तैनात भारत और पाकिस्तान के सैनिकों के बीच कुछ जगहों पर दूरी सिर्फ़ सौ मीटर है तो कुछ जगहों पर यह पाँच किलोमीटर भी है.

दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा पिछले पचास साल से विवाद का विषय बनी हुई है.

मौजूदा नियंत्रण रेखा, भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 में हुए युद्ध के वक़्त जैसी मानी गई थी, क़रीब-क़रीब वैसी ही है.

उस वक़्त कश्मीर के कई इलाकों में लड़ाई हुई थी. उत्तरी हिस्से में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को करगिल शहर से पीछे और श्रीनगर से लेह राजमार्ग तक धकेल दिया था.

1965 में फिर युद्ध छिड़ा. लेकिन तब लड़ाई में बने गतिरोध की वजह से यथास्थिति 1971 तक बहाल रही. 1971 में एक बार फिर युद्ध हुआ.

शिमला समझौता

1971 के युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान टूट कर बांग्लादेश बन गया. उस वक़्त कश्मीर में कई जगहों पर लड़ाई हुई और नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों ने एक-दूसरे की चौकियों पर नियंत्रण किया.

भारत को करीब तीन सौ वर्ग मील ज़मीन मिली. यह नियंत्रण रेखा के उत्तरी हिस्से में लद्दाख इलाक़े में थी.

1972 के शिमला समझौते और शांति बातचीत के बात नियंत्रण रेखा दोबारा स्थापित हुई. दोनो पक्षों ने यह माना कि जब तक आपसी बातचीत से मसला न सुलझ जाए तब तक यथास्थिति बहाल रखी जाए.

यह प्रक्रिया लंबी खिंची. फ़ील्ड कमांडरों ने पांच महीनों में करीब बीस नक्शे एक-दूसरे को दिए. आख़िरकार समझौता हुआ.

नियंत्रण रेखा कहाँ से कहाँ तक है उसके मतलब को समझने के लिए अब भी दोनो पक्षों में जब-तब लड़ाई होती है.

गोलाबारी

पिछले एक दशक में नियंत्रण रेखा के भारतीय हिस्से में चरमपंथी तत्वों का ज़ोर बढ़ने के साथ ही दोनों देशों के बीच गोलाबारी तेज़ हुई है.

हिंसा के शिकार आम लोग
आम लोगों को कश्मीर में चरमपंथी हिंसा का शिकार बनना पड़ता है
 

ज़्यादातर गोलाबारी ज़्यादा आबादी वाले दक्षिणी इलाकों से लेकर मुज़फ़्फ़राबाद तक होती है. ऐसा तब होता है जब घुसपैठ करवाने या उसे रोकने की कोशिश की जाती है.

लेकिन पिछले दो सालों से करगिल और द्रास इलाकों में गोलाबारी में एकाएक तेज़ी आई.

बसंत ऋतु शुरु होते ही जब बर्फ़ पिघलने लगती है तो सेनाएँ नियंत्रण रेखा पर ऊंची चोटियों की ओर बढ़ने लगती हैं.

उस वक़्त भी गोलाबारी में तेज़ी आती है. एक अंदाज़ा है कि हर महीने क़रीब चार लाख गोले दोनो तरफ़ से छोड़े जाते है.

पर्यवेक्षकों का कहना है कि गोलाबारी अब एक किस्म की परंपरा बन गई है.

हर पक्ष दूसरे पक्ष को गोलाबारी के माध्यम से यह जताने की कोशिश करता है कि वह अपनी स्थिति को मज़बूती से संभाले हुए है.

बर्फ़ में छिड़ी लडाई

अस्सी के दशक से सबसे भीषण संघर्ष सियाचीन ग्लेशियर में चल रहा है.

शिमला समझौते के समय न तो भारत ने और न ही पाकिस्तान ने ग्लेशियर की सीमाएँ तय करने के लिए आग्रह किया.

कुछ विश्लेषकों का कहना है कि शायद इसकी वजह यह थी कि दोनो ही देशों ने इस भयानक इलाक़े को अपने नियंत्रण लेने की ज़रूरत नहीं समझी.

कुछ यह भी कहते हैं कि इसका मतलब यह होता कि कश्मीर के एक हिस्से पर रेखाएँ खींचना जो चीन प्रशासित है मगर भारत उन पर दावा करता है.

1949 में पहले युद्ध विराम के बाद से ही संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि नियंत्रण रेखा पर पर्यवेक्षक तैनात किए जाने चाहिएँ.

हालाँकि भारत इनकी मौजूदगी को अब नज़र अंदाज़ करता है लेकिन उनके अधिकारों को वह महत्व नहीं देता.

भारत का कहना है कि शिमला समझौते में दोनो देश मसले को आपसी बातचीत से हल करने के लिए राज़ी हो गए थे और अब अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की आवश्यकता नहीं है.

विश्लेषकों का कहना है कि भारत और पाकिस्तान में कुछ लोग ऐसे हैं जो नियंत्रण रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा मानने के लिए तैयार हैं.

फ़िलहाल दोनों ही देशों ने इस दिशा में आधिकारिक तौर पर कोई कदम नहीं उठाया है.

कश्मीर का बिना सुलझा मुद्दा और नियंत्रण रेखा दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों को मजबूत करने में अब भी एक मज़बूत दीवार बनकर खड़े हैं.

 
 
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