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दशकों पुरानी कटुता
भारत और पाकिस्तान एक ही देश थे. लेकिन 55 साल पहले अंग्रेज़ों के भारतीय उपमहाद्वीप छोड़ने के बाद विभाजन हुआ और तब से अब तक दोनों एक-दूसरे के कट्टर विरोधी हैं. दोनों के बीच का संघर्ष अब खतरनाक हथियार दौड़ में तब्दील हो गया है. नियमित बातचीत और विवादास्पद मुद्दे सुलझाने की कई कोशिशों के बावजूद दोनो देशों के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इस बात को लेकर खासी चिंता है कि दोनों देशों की शत्रुता से कहीं इस इलाके में भयानक युद्ध न छिड़ जाए. आज़ादी और विभाजन अगस्त 1947 में अंग्रेज़ों ने भारत छोड़ा और धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ. 14 अगस्त को पाकिस्तान बनाया गया. विभाजन के बाद मुसलमानों और हिंदुओं ने नई बनी सीमा लांघी और भयानक दंगे भड़के. करीब पांच लाख लोग सांप्रदायिक हिंसा और दंगों में मारे गए. पंजाब में सबसे ज़्यादा लोग मरे. उसे दो हिस्सों में बांट दिया गया. एक भारत में रहा दूसरा पाकिस्तान में गया. सबसे ज़्यादा समस्याएं मुस्लिम बहुल कश्मीर में आईं. कश्मीर का इतिहास •अगस्त 1947: भारत और पाकिस्तान को आज़ादी मिली. कश्मीर की स्थिति तय नहीं •अक्टूबर 1947: कश्मीर के महाराजा के भारत को अपने अधिकार सौंपने के बाद भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध •जुलाई 1949: युद्ध विराम पर सहमति, पाकिस्तान को एक-तिहाई कश्मीर मिला •सितंबर 1965: पाकिस्तान पर चरमपंथ को बढ़ावा देने के भारत के आरोप के बाद फिर युद्ध •1971: बंगलादेश को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान कश्मीर में भारी लड़ाई •जुलाई 1972: 1949 की युद्ध विराम रेखा के मुताबिक नियंत्रण रेखा पर सहमति •1989: भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में चरमपंथ शुरु •जुलाई 1999: पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा लांघी, करगिल संघर्ष कश्मीर विवाद पाकिस्तानियों का कहना है कि कश्मीर को 1947 में ही पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया जाना चाहिए था क्योंकि वहां मुसलमान बहु-संख्यक हैं.
वो कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के कई प्रस्तावों में कहा गया है कि कश्मीरियों को ये फ़ैसला करने की आज़ादी होनी चाहिए कि वो भारत में रहें या फिर पाकिस्तान में मिल जाएं. भारत का कहना है कि कश्मीर उसका हिस्सा है क्योंकि कश्मीर के महाराजा ने अक्टूबर 1947 में विलय के प्रस्ताव पर दस्तख़त किए थे. इस प्रस्ताव में भारत को रक्षा, संचार और विदेशी मामलों में अधिकार दिए गए थे. 1950 में भारत के संविधान में कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया. इसके तहत इसे किसी भी अन्य भारतीय राज्यों के मुकाबले ज़्यादा स्वायत्तता दी गई है. भारत के संविधान के तहत जम्मू-कश्मीर एक राज्य है और इसमें विधानसभा के चुनाव होते हैं. भारत का कहना है कि 1972 में हुए शिमला समझौते में दोनो देशों ने कश्मीर का मसला आपसी बातचीत से सुलझाने का फ़ैसला किया था. दोनों ही देशों ने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता जैसे संयुक्त राष्ट्र के दखल से इंकार किया था. भारत का ये भी कहना है कि कश्मीर में जनमत संग्रह नहीं होना चाहिए क्योंकि वहां हुए चुनावों से ये साफ़ हुआ है कि वहां के लोग भारत के साथ रहना चाहते हैं. युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर अब तक दो बार युद्ध हो चुके हैं. पहली बार 1947-8 में और दूसरी बार 1965 में. 1971 में भारत और पाकिस्तान ने बंगलादेश की स्वतंत्रता को लेकर आपस में युद्ध किया. उस वक्त कश्मीर में भी दोनो पक्षों के बीच संघर्ष हुआ था. आज कश्मीर का करीब एक-तिहाई पश्चिमी हिस्सा पाकिस्तान के पास है. बाकी सारा भारत के पास. भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में चरमपंथी गतिविधियां 1989 में शुरु हुईं. तभी से भारत ये कहता आया है कि पाकिस्तान चरमपंथी अलगाववादियों को प्रशिक्षण और हथियार दे रहा है. जबकि पाकिस्तान कहता है कि वो सिर्फ नैतिक समर्थन देता है. परमाणु हथियारों की दौड़ 1960 में चीन के परमाणु परीक्षणों के बाद भारत ने परमाणु हथियार बनाना शुरु किए. 1974 में भारत ने पहली बार राजस्थान के रेगिस्तान में पोखरण में परमाणु परीक्षण किए.
उसके कुछ सालों बाद पाकिस्तान ने परमाणु हथियार बनाने का कार्यक्रम शुरु किया. दोनों देश छोटी और मध्यम दूरी की मिसाइल विकसित करने में भी जुटे है. अप्रैल 1998 में पाकिस्तान ने मध्यम दूरी तक मार करने वाली ग़ौरी मिसाइल का परीक्षण किया. इसका नाम 12 वीं शताब्दी के एक मुस्लिम हमलावर पर रखा गया जिसने भारत के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा किया था. माना जाता है कि पाकिस्तान के इस परीक्षण के बाद ही भारत ने अगले महीने ही परमाणु परीक्षण किए. 11 मई सोमवार को भारत ने घोषणा की कि उसने राजस्थान के पोखरण में तीन भूमिगत परमाणु परीक्षण किए. दो दिन बाद दो और परमाणु परीक्षण किए गए. भारत के इस कदम की अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तीखी आलोचना की और पाकिस्तान से अपील की कि वह ये कदम न उठाए. लेकिन 28 मई को पाकिस्तान ने एलान किया कि उसने बलूचिस्तान राज्य में पांच परमाणु परीक्षण किए हैं. इन परीक्षणों की पूरी दुनिया में आलोचना की गई. कुछ देशों ने आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए. लेकिन अमरीकी के भारी दबाव के बावजूद दोनों ही देशों ने अब तक न तो एनपीटी और न ही सीटीबीटी पर दस्तख़त किए. ये दोनों वो संधियां हैं जिनमें परमाणु परीक्षणों और परमाणु तकनीक को किसी दूसरी देश को देने पर रोक लगाई गई है. |
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