चीन-ताइवान के बीच ऐतिहासिक समझौता

चीन और ताइवान ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. ताइवान के अधिकारियों ने इसे 60 साल के चीन-ताइवान रिश्तों में सबसे अहम क़दम बताया है.
इस समझौते के बाद दोनों देश एक दूसरे के बाज़ार में लगभग 800 वस्तुओं को कम कर या बिना कर के बेच पाएँगे.
ताइवान और चीन के बीच 110 अरब डॉलर मुल्य की वस्तुओं का व्यापार होता है. ताइवान चीन को 80 अरब डॉलर का निर्यात करता है, वहीं चीन सिर्फ़ 30 अरब डॉलर की वस्तुएँ ताइवान को निर्यात करता है. आर्थिक तौर पर ताइवान को ही इस समझौते से ज़्यादा फ़ायदा होगा.
ताइवान में विरोध
ताइवान में इस व्यापार समझौते का कुछ विरोध भी हो रहा है. इसके विरोधियों का मानना है कि इस समझौते के बाद चीन का ताइवान पर नियंत्रण बढ़ेगा.
चीन के लिए ये समझौता आर्थिक से ज्यादा राजनितिक मायने रखता है.
चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने इस बारे में कहा, "हम अपने मुनाफ़े को छोड़ सकते हैं क्योकि ताइवान के लोग हमवतन लोग हैं और हमारे भाई हैं."
चीन ताइवान को अपने साथ जोड़े रखने के लिए प्रयास जारी रखना चाहता है.
ताइवान में जो लोग इस समझौते का विरोध कर रहे हैं वो चीन की उदारता के पीछे इसी मंशा को देखते हैं.
विरोधी कहते हैं कि चीन इस क़दम के सहारे बडे व्यापारिक घरानों से अपने ऐजेडे के लिए राजनितिक समर्थन हासिल करना चाहता है.
क्या है असल मामला?
मुख्य मुद्दा यह है कि ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है लेकिन ताईवान चुपचाप औपचारिक रुप से स्वतंत्र होने की दिशा में बढ़ता जा रहा है.
चीन-ताइवान का विवाद एशिया की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है. पिछले दिनों दोनों देशों के बीच विवाद बढ़ा गया था जब अमरीका ने ताईवान को हथियार उपलब्ध करवाने का समझौता किया.
चीन और ताइवान के बीच इस दूरी की शुरुआत 1949 में हुई जब चीन के गृह युद्ध में कम्युनिस्टों के हाथों राष्ट्रवादियों की हार हुई थी.
हारे हुए राष्ट्रवादी च्यांग काई शेक के नेतृत्व में ताइवान चले गए थे. बीबीसी संवाददाता क्रिस हॉग के अनुसार चीन ताइवान को अपने से अलग हुए प्रांत से अधिक नहीं समझता और यह भी चाहता है कि उसका बाक़ी के देश के साथ विलय होना चाहिए, फिर ये चाहे ताक़त का इस्तेमाल करके ही क्यों न हो.












