प्रेम चोपड़ा को हुई दिल की बीमारी 'एक्यूट एओर्टिक स्टेनोसिस' का इलाज क्या है?

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हिंदी फ़िल्म जगत के जाने-माने अभिनेता प्रेम चोपड़ा की हृदय से जुड़ी एक बीमारी के बाद सफल वॉल्व इम्प्लांटेशन का प्रोसीजर हुआ है.
इसकी पुष्टि उनके दामाद और अभिनेता शरमन जोशी ने की है.
हाल ही में 90 साल के अभिनेता को एक्यूट एओर्टिक स्टेनोसिस का पता चला था. यह दिल से जुड़ी एक बीमारी है, जिसमें दिल के वॉल्व में ख़राबी आ जाती है.
इसकी वजह से एओर्टा में ख़ून का बहाव प्रभावित होता है, जो दिल और शरीर के अलग-अलग हिस्सों के बीच ख़ून ले जाने वाली मुख्य धमनी है.
शरमन जोशी ने इंस्टाग्राम पर बताया है कि "डैड को एक्यूट एओर्टिक स्टेनोसिस का पता चला था, जिसके बाद ओपन-हार्ट सर्जरी के बिना वॉल्व बदलकर टीएवीआई प्रोसीजर सफलतापूर्वक किया गया. अब डैड घर पर हैं और काफ़ी बेहतर महसूस कर रहे हैं."
इसके साथ ही शरमन जोशी ने डॉक्टरों का शुक्रिया अदा किया है. ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वॉल्व इम्प्लांटेशन (टीएवीआई) में बिना ओपन हार्ट सर्जरी के वॉल्व लगाया जाता है.
आइये समझते हैं कि यह बीमारी क्या है और इसका इलाज कैसे होता है?

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एओर्टिक स्टेनोसिस क्या है?
ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) के मुताबिक़, एओर्टिक स्टेनोसिस वह स्थिति है जिसमें एओर्टिक वॉल्व मोटा या सख़्त हो जाता है और पूरी तरह नहीं खुल पाता. इसकी वजह से वॉल्व के पार ख़ून का प्रवाह कम हो जाता है और दिल की जांच के दौरान स्टेथोस्कोप से हार्ट मर्मर सुनाई दे सकता है.
अब सवाल उठता है कि यह बीमारी किन वजहों से होती है. एओर्टिक स्टेनोसिस का सबसे आम कारण उम्र का बढ़ना है, इसलिए ज़्यादातर लोग जिन्हें यह समस्या होती है, उनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक होती है.
कुछ लोगों में जन्म से बाइकस्पड वॉल्व होता है. ऐसे लोगों में वॉल्व कम उम्र में ही मोटा होने लगता है और उन्हें ज़िंदगी के किसी भी मोड़ पर यह समस्या हो सकती है.
एनएचएस के मुताबिक कभी-कभी इसके सिकुड़ने के साथ-साथ एओर्टिक वॉल्व में लीक भी होता है, जिसे एओर्टिक रेगर्जिटेशन कहा जाता है. जब दोनों समस्याएं एक साथ होती हैं तो इसे मिक्सड एओर्टिक वॉल्व डिज़ीज़ कहा जाता है.

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फिर इसका इलाज क्या है?
एओर्टिक स्टेनोसिस एक लंबे समय तक चलने वाली स्थिति हो सकती है, इसलिए इसे तीन स्तरों में बांटा जाता है: हल्का, मध्यम और गंभीर.
एनएचएस के मुताबिक़, हल्के या मध्यम एओर्टिक स्टेनोसिस में आमतौर पर लक्षण नहीं होते और दिल पर भी ज़्यादा असर नहीं पड़ता.
एनएचएस की वेबसाइट पर लिखा है, "इस बीमारी की प्रगति धीरे-धीरे होती है और कई मरीज़ सालों तक बिना लक्षण के रहते हैं. फ़ॉलो-अप का अंतराल आपकी स्थिति और बीमारी की प्रगति के आधार पर डॉक्टर तय करते हैं. हल्के एओर्टिक स्टेनोसिस में आमतौर पर बहुत कम अंतराल पर जांच की ज़रूरत होती है."
"अगर आपको गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस है और लक्षण भी हैं, तो आपको एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट की सलाह दी जा सकती है. यह ओपन हार्ट सर्जरी या वॉल्व रिप्लेसमेंट (टीएवीआई) के ज़रिए किया जा सकता है."

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किन टेस्टों के ज़रिए इसका पता लग सकता है?
एओर्टिक स्टेनोसिस वाले अधिकतर लोगों का ईकोकार्डियोग्राम और ईसीजी किया जाता है.
कुछ और टेस्ट भी किए जा सकते हैं जैसे सीटी स्कैन टेस्ट के दौरान आप सीधा लेटकर एक बड़े रिंगनुमा स्कैनर से गुज़रते हैं, जो दिल की विस्तृत एक्स-रे तस्वीरें लेता है. इसमें इंजेक्शन दिया जाता है और यह टेस्ट कुछ मिनटों में पूरा हो जाता है.
वहीं ईकोकार्डियोग्राम (ईको या कार्डियक अल्ट्रासाउंड) टेस्ट में एक अल्ट्रासाउंड प्रोब को छाती पर रखा जाता है और दिल की चलती हुई तस्वीरें ली जाती हैं. यह टेस्ट लगभग 30 मिनट का होता है.
इसके अलावा एंजियोग्राम टेस्ट भी होता है जिसमें हृदय की धमनियों का एक्स-रे होता है.
कार्डियोपल्मनरी एक्सरसाइज़ टेस्ट से भी हृदय की सेहत का पता लगाया जा सकता है. इसमें मरीज़ को ट्रेडमिल पर या साइकल चलवाकर यह देखा जाता है कि उसका हृदय और लिवर एक्सरसाइज़ पर किस तरह रिस्पॉन्स कर रहा है.
साथ ही डॉक्टर इस बीमारी में हेल्दी लाइफ़स्टाइल पर ध्यान देने की बात कहते हैं. साथ ही वज़न को नॉर्मल रेंज में रखने के लिए कहा जाता है.
अगर कोई धूम्रपान करता है तो उसे तुरंत बंद कर देना चाहिए, साथ ही अधिकतर मरीज़ों के एक्सरसाइज़ करने पर कोई पाबंदी नहीं होती है. लेकिन फिर भी इस पर डॉक्टर से सलाह लेना ज़रूरी है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.















