आख़िर रेड कारपेट आया कहां से?

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अक्सर हम सुनते हैं कि फ़लां समारोह में रेड कारपेट पर अमुक सितारे चमके. उस स्टार ने रेड कारपेट के लिए 'वो' वाली ख़ास ड्रेस पहनी हुई थी.

हॉलीवुड हो या बॉलीवुड, आज हर जगह अवॉर्ड समारोह में रेड कारपेट पर सितारे जगमगाते नज़र आते हैं.

रेड कारपेट पर चलना, सितारों की बुलंद शोहरत, उनके ख़ास स्टाइल और अमीरी की नुमाइश है. इसे चमक-दमक और ग्लैमर से भी जोड़कर देखा जाता है.

ऑस्कर अवॉर्ड समारोह हों या फिर बॉलीवुड फ़िल्म समारोह, रेड कारपेट पर चलते सितारे, बाक़ी दुनिया से एकदम अलग नज़र आते हैं.

मगर क्या आपके ज़ेहन में कभी ये सवाल आया है कि रेड कारपेट की शुरुआत कैसे हुई?

चलिए इस शहाना परंपरा की तारीख़ के पन्ने पलटते हैं.

रेड कारपेट, आम जनता के लिए नहीं है. ये हमेशा से ख़ास लोगों के लिए ही बिछाया जाता है. पश्चिमी कहानियों में इसका सबसे पुराना ज़िक्र मिलता है यूनानी नाटक अगामेमनॉन में.

दुख भरे क़िस्से लिखने वाले ग्रीक नाटककार 'एसकाइलस' के इस मशहूर नाटक में जब ग्रीक राजा अगामेमनॉन, ट्रॉय का युद्ध जीतकर अपने देश लौटता है, तो उसकी पत्नी महारानी क्लायटेमनेस्ट्रा अपने पति के स्वागत में रेड कारपेट बिछाती है.

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विजेता होने के बावजूद ख़ुद अगामेमनॉन के क़दम उस रेड कारपेट पर चलते हुए लड़खड़ाते हैं. वो कहता है कि ये सुर्ख़ रास्ता तो देवों के लिए होता है. वो तो महज़ एक अदना सा इंसान है, इस चमचमाते रास्ते पर कैसे चल सकता है?

आख़िर उसका डर, सही साबित होता है और अगामेमनॉन को उसकी पत्नी बहुत जल्द ही अपने आशिक़ की मदद से मौत के घाट उतार देती है.

लंदन के विक्टोरिया और अलबर्ट म्यूज़ियम की क्यूरेटर सॉनेट स्टैनफ़िल कहती है कि रेड कारपेट को राजा-महाराजों से जोड़कर देखा जाता रहा है.

वो कहती हैं कि आज की तारीख़ में फ़िल्मी सितारों की हैसियत शाही तबक़े जैसी है. इसीलिए उनके लिए रेड कारपेट बिछाया जाता है. बीसवीं सदी में हॉलीवुड में बड़े-बड़े पिक्चर हाउस की लोकप्रियता ने रेड कारपेट का चलन भी बढ़ाया.

पंद्रहवीं-सोलहवीं सदी की यूरोपियन पेंटिंग्स या कहें 'रिनेसां आर्ट' में अक्सर रेड कारपेट को दिखाया गया है. देवताओं की, संतों की और राज-परिवारों की पेटिंग्स में अक्सर एशियाई रेड कारपेट को ख़ास स्टाइल में उकेरा गया.

स्टैनफ़िल कहती हैं कि लाल रंग अक्सर शाही परंपरा से जोड़ा जाता है. इसे तैयार करना मुश्किल और महंगा था. पंद्रहीं सोलहवीं सदी में इसे किरिमदाना से तैयार किया जाता था. साथ ही एक ख़ास तरह के कीड़ों से भी ये रंग बनाया जाता था, जो मुश्किल काम था. सत्रहवीं सदी आते आते सुर्ख़ रंग का कारोबार बेहद क़ीमती माना जाने लगा था.

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रेड कारपेट को शोहरत, एक अमेरिकी राजनीतिक घटना से भी मिली. सन 1821 में अमेरिकी राष्ट्रपति जेम्स मनरो, जब कैलिफ़ोर्निया के जॉर्जटाउन शहर पहुंचे थे, तो उनके स्वागत में रेड कारपेट बिछाया गया था. तब से ही बड़े राजनीतिक समारोहों और नेताओं के स्वागत के लिए रेड कारपेट बिछाने का चलन शुरू हुआ.

मगर, 'रेड कारपेट वेलकम' मुहावरे का इस्तेमाल बीसवीं सदी से ही चलन में आया. न्यूयॉर्क की सेंट्रल रेलरोड कंपनी ने 1902 में एक ख़ास एक्सप्रेस ट्रेन चलाई थी. इसमें मुसाफ़िरों का स्वागत रेड कारपेट पर चलाकर किया जाता था, ताकि उन्हें ख़ास होने का एहसास हो, शाही अहसास हो.

हालांकि इस 'रेड कारपेट वेलकम' के हॉलीवुड तक पहुंचने में बीस साल और लग गए.

पहली बार सन 1922 में रॉबिन हुड फ़िल्म के प्रीमियर के लिए इजिप्शियन थिएटर के सामने एक लंबा सुर्ख़ क़ालीन बिछाया गया था. इसके बाद तो मानों सितारों के लाल गलीचे पर चहलक़दमी का सिलसिला ही चल पड़ा, जहां आप सितारों को जगमगाते देख सकते हैं.

1961 में पहली बार एकेडमी अवॉर्ड्स समारोह में रेड कारपेट का इस्तेमाल किया गया, जब सैंटा मोनिका ऑडिटोरियम के भीतर फ़िल्म स्टार्स के लिए बिछाया गया सुर्ख़ क़ालीन.

तीन साल बाद जब समारोह का प्रसारण करने वालों ने तय किया कि वो सितारों को समारोह की जगह पर दाख़िल होते दिखाएंगे, जब वो अपनी महंगी गाड़ियों से उतरते हैं, तो, कार्यक्रम की जगह के बाहर रेड कारपेट बिछाए जाने लगे.

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जहां अपनी शानदार गाड़ियों से उतरकर, सितारे, कैमरों के सामने अदा दिखाते हुए चहलक़दमी करते थे, अपनी पोशाकों की नुमाइश करते थे.

तब से ही रेड कारपेट पर सितारों का चलना चर्चा में आने लगा. अक्सर उनकी ख़ास पोशाकों की वजह से. जैसे 1969 में जब अभिनेत्री बारबरा स्ट्रेसैंड, ट्रांसपैरेंट ड्रेस पहनकर ऑस्कर समारोह में पहुंचीं, तो उनकी इस पारदर्शी पोशाक की ज़्यादा चर्चा हुई बनिस्बत उनके बेस्ट एक्ट्रेस का ऑस्कर जीतने के.

1970 में भी ऐसा ही एक रेड कारपेट क़िस्सा हुआ. ब्रितानी अभिनेत्री एलिज़ाबेथ टेलर, बेहद ग्लैमरस, भड़काऊ ड्रेस और हीरे का जड़ाऊ हार पहनकर रेड कारपेट पर चलीं, तो अवॉर्ड समारोह की सारी चर्चा टेलर तक सिमट गई. जबकि उस दिन उनके साथ अवॉर्ड समारोह में गए पति रिचर्ड बर्टन को अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट होने के बावजूद किसी ने पूछा तक नहीं.

इसी तरह 1978 में डायन कीटॉन ने जब मर्दों जैसा लिबास पहनकर बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड लिया, तो उनकी अदाकारी से ज़्यादा चर्चा पोशाक की हुई.

रेड कारपेट पर अपनी पोशाक की वजह से शोहरत बटोरने वालों में अमेरिकी गायिका-अभिनेत्री चेर का नाम भी काफ़ी चर्चा में रहा, जब 1988 में वो एक ख़ास तरह की ड्रेस पहनकर पहुंचीं, जिसमें छुपा कुछ नहीं था.

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रेड कारपेट की पोशाक ने कई अभिनेत्रियों का करियर बना दिया. ऐसा ब्रितानी अभिनेत्री लिज़ हर्ले के साथ हुआ. एक बार लिज़, अपने साथी ह्यू ग्रांट के साथ अवॉर्ड समारोह में पहुंचीं तो सारी नज़रें उन्हीं पर टिक गईं. वो पोशाक ही ऐसी पहने हुए थीं. मशहूर डिज़ाइनर वर्साचे की बनाई इस पोशाक में वो जितना अपना बदन छुपा रही थीं, उससे ज़्यादा दिखा रही थीं.

फिर इस ड्रेस में लगी सोने की बड़ी बड़ी पिन्स ने भी कैमरों का ध्यान खींचा. लिज़ हर्ले की ये पोशाक मीडिया में 'दैट ड्रेस' के नाम से चर्चित हुई. ख़ास एलिज़ाबेथ के लिए बनी इस ड्रेस को बाद में वर्साचे ने अपने कलेक्शन में भी शामिल किया.

क्यूरेटर स्टैनफ़िल कहती है कि उस पोशाक के ज़रिए, लिज़ ने फ़िल्म बनाने वालों को अपनी अदाकारी को लेकर भी एक संदेश दिया. बाद में उन्हें कई फ़िल्मों में ग्लैमरस रोल मिले.

1990 का दशक आते-आते रेड कारपेट और फ़ैशन एक दूसरे की पहचान बन गए थे. दोनों को अलग करके देखना मुमकिन नहीं था. अरमानी और वैलेंटिनो जैसे डिज़ाइनर्स की ड्रेस पहनना, सितारों को अलग पहचान देने लगा. 1997 में अभिनेत्री निकोल ने डायोर की डिज़ाइनर ड्रेस में रेड कारपेट पर चहलक़दमी करके इस चलन को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया.

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अभिनेत्रियों रेनी ज़ेलवेगर और जूलिया रॉबर्ट्स ने इस चलन में नए प्रयोग किए और ख़त्म हो चुके फ़ैशन की ड्रेसेज़ पहनकर अवॉर्ड समारोह में पहुंचीं. इसी तरह आइसलैंड की अभिनेत्री ब्योर्क ने अपनी हंस वाली पोशाक से ख़ूब सु्र्ख़ियां बटोरीं.

आज ऑस्कर समारोह के रेड कारपेट का दायरा बहुत बड़ा हो गया है. इसकी लंबाई होती है क़रीब 16 हज़ार पांच सौ फ़ुट. इसे बिछाने में दो दिन लगते हैं. इस पर चलने वालों की मीडिया में कई दिनों तक चर्चा होती रहती है. समारोह से पहले लोग अटकलें लगाते हैं कि कौन सा स्टार किस डिज़ाइनर की ड्रेस पहनने वाला है.

बड़े डिज़ाइनर भी इस ख़ास मौक़े के लिए नई-नई पोशाकें तैयार करते हैं. ड्रेस पर इतना फ़ोकस होता है कि ज़रा सी भी कमी या ग़लती, सुर्ख़ियां बटोर लेती है. इसीलिए आजकल अभिनेत्रियां अपनी ड्रेस को लेकर ज़्यादा रिस्क नहीं लेतीं, लिज़ हर्ले या ब्योर्क की तरह. राजकुमारियों, महारानियों जैसे गाउन्स का चलन बढ़ा है. इस लिहाज़ से रेड कारपेट अपनी पुरानी, शाही पहचान की तरफ़ लौट रहा है.

हालांकि अब भी बहुत से ऐसे सितारे हैं जो अपनी पोशाक में नए प्रयोग से नहीं घबराते. बदनामी से नहीं डरते. आख़िर कहावत तो यही है कि बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ.

आख़िर पंद्रह साल पहले जब आइसलैंड की गायिका ब्योर्क ने अपनी स्वान ड्रेस पहनकर, रेड कारपेट पर 'अंडे' दिए थे तो भले ड्रेस की बुराई हुई हो, मगर आज उस ख़ास ड्रेस की फ़िल्मी म्यूज़ियम में नुमाइश हो रही है.

इतिहास में ब्योर्क का नाम हमेशा के लिए दर्ज हो गया है. तो तय है कि सुर्ख़ गलीचे पर सु्र्ख़ियां बटोरने के लिए सितारे कुछ भी कर सकते हैं.

(अंग्रेज़ी में मूल लेख <link type="page"><caption> यहां प</caption><url href="http://www.bbc.com/culture/story/20160222-where-does-the-red-carpet-come-from" platform="highweb"/></link>ढ़ें, जो <link type="page"><caption> बीबीसी कल्चर</caption><url href="http://www.bbc.com/culture" platform="highweb"/></link> पर उपलब्ध है.)

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