चीन: 'उम्र भर ग़ुलामी करूंगा, मेरी बच्ची को बचा लो'

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    • Author, सीलिया हैटन
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, बीजिंग

मार्च के महीने में जब लिऊ ने अपनी बेटी मियाओमियाओ को जन्म दिया, तो उन्हें प्रसव पीड़ा के एक घंटे के भीतर ही अस्पताल छोड़ना पड़ा. लिऊ और उनके पति, दोनों ही ग़रीब प्रवासी मज़दूर हैं और उनके पास इतने पैसे नहीं कि अस्पताल का अतिरिक्त ख़र्च उठा पाते.

लिऊ और उनके पति अपनी बेटी को घर ले आए पर वो जानते थे कि उनकी बच्ची बेहद बीमार है.

मियाओमियाओ के कूल्हों और टांगों में गंभीर विकृति थी. उसके मुंह में एक बड़ा छेद था जिसकी वजह से उसे निगलने में दिक़्क़त आती थी. अब वह छह हफ़्ते की हो चुकी है और उसका वज़न लगातार कम हो रहा है.

आंखों में आंसू लिए लिऊ चियाओमेई कहती हैं, “मैं ख़ुद मियाओमियाओ की देखभाल करना चाहती हूं. लेकिन मेरे पति ने कहा- अगर हमारी बेटी मर गई तो क्या होगा.”

इन लोगों के पास न तो पैसा था और न सरकार से किसी तरह की स्वास्थ सुविधा की आस. ऐसे में, उनके सामने बस एक ही कष्टदायक विकल्प था- या तो वो अपनी बेटी को अपने पास रखें या फिर उसे सरकार के हवाले कर दें जहां सैद्धांतिक रूप से- उसकी देखभाल की जाएगी.

'टूटती उम्मीद'

मियाओमियाओ के पिता लाई त्सपाओ का कहना है, “कोई अपने बच्चे को नहीं छोड़ना चाहता, लेकिन अगर हम उसे दे दें तो कम से कम उसके जीने की थोड़ी बहुत संभावना होगी.”

वो अपनी बच्ची को ‘सुरक्षित पालना घर’ ले गए, जो उनके घर से ज़्यादा दूर नहीं था. जनवरी में स्थानीय अनाथालय के पास ही इस पालना घर को खोला गया था, जिसमें वो माता-पिता अपने बच्चों को छोड़कर जा सकते हैं जो उनकी देखभाल नहीं कर सकते.

यह दंपत्ति 16 मार्च को अपनी बच्ची को एक कपड़े में लपेटकर उस अनाथालय के दरवाज़े पर पहुंचा.

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मगर यहां भी भाग्य ने साथ नहीं दिया. इससे पहले कि ये दंपत्ति वहां पहुंचता, उससे चंद घंटे पहले ही उस पालना घर ने बच्चों को लेने पर रोक लगा दी. इस तरह मियाओमियाओ अपने माता-पिता की ही गोद में रही.

लिऊ चियाओमेई कहती हैं, “मैं तो चोरी-छिपे यही आशा कर रही थी कि वो मेरी बच्ची को न लें. हालांकि मैं ये नहीं जानती थी कि हम उसे जीवित भी रख पाएंगे या नहीं. मैं टूट गई थी.”

सड़क किनारे बने एक गैराज में रहने वाला यह परिवार बच्ची की दवाओं के ख़र्च के अलावा उसकी नेपी और अन्य चीज़ों के लिए बड़ी मुश्किल से पैसों का इंतज़ाम कर पा रहा है.

मार्च में जब कुआंगचोऊ बाल पालना घर बंद कर दिया गया, तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इसकी चर्चा हुई थी. छह हफ़्तों के दौरान जब ये पालना घर खुला रहा था, तब हर दिन औसत पांच बच्चों को उनके माता-पिता छोड़ जाते थे.

अधिकारियों का कहना है कि कुल मिलाकर 262 बच्चे इस तरह सरकार के हवाले किए गए. इन सभी को गंभीर स्वास्थ समस्याएं थीं, जिनमें जन्मजात हृदय विकार और गंभीर मानसिक लकवा शामिल हैं. इनमें से कुछ बच्चे पांच या छह हफ़्ते के थे.

बेटी की ख़ातिर

चीन के ज़्यादातर अनाथालयों में मौजूद बच्चे गंभीर रूप से बीमार होते हैं या ऐसी विकलांगता से पीड़ित हैं, जिसके लिए विशेष देखभाल की ज़रूरत है और उनके ग़रीब माता-पिता इसका ख़र्चा नहीं उठा सकते.

नाओमी केरविन यूं तो अमरीका से हैं, लेकिन वो चीन में कई साल से बाल अधिकारों के लिए काम कर रही हैं. वो कहती हैं, “मैंने सरकारी अनाथालय में कभी कोई सेहतमंद बच्चा नहीं देखा.”

लेकिन ये बात माननी होगी कि चीन ने हाल के वर्षों में गर्भवती माओं और शिशुओं की देखभाल के मामले में ख़ासी प्रगति की है.

गर्भावस्था या प्रसव के दौरान मांओं की मृत्युदर में वहां 1990 से 13 प्रतिशत की कमी आई है.

एक अध्ययन के मुताबिक़ चीन में पांच साल की उम्र तक पहुंचने से पहले ही मर जाने वाले बच्चों की संख्या में भी तेज़ी से गिरावट आई है लेकिन ग़रीबों के लिए इन आंकड़ों का ज़्यादा कोई मतलब नहीं.

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एक पिता ने अपनी बीमार बच्ची के इलाज के लिए धन जुटाने के लिए एक अलग तरह की मुहिम चलाई है.

चीन के सिछुआन प्रांत से पूर्व सैनिक छेंग पांगचियान नियमित तौर पर बीजिंग की सड़कों पर निकलते हैं और उनके हाथ में एक बोर्ड होता है, जिस पर लिखा है, “मैं पूरी ज़िंदगी उस आदमी के लिए काम करूंगा, जो मेरी बच्ची के इलाज का ख़र्च उठाएगा.” लेकिन उनसे कुछ लोग ही नज़र मिलाते हैं.

वह कहते हैं, "मैं अपने सारे रिश्तेदारों से कर्ज़ ले चुका हूं. कई बार सोचता हूं कि पुल से नीचे कूदकर जान दे दूं. हो सकता है तब ज़्यादा लोग मेरी बच्ची की मदद करने आगे आएं."

छेंग की नौ साल की बेटी सियी एक तरह की रक्त विकृति का शिकार है. कई साल तक चले महंगे इलाज के बाद अब अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण ही आख़िरी उम्मीद है. बेटी के लिए पूरा परिवार बीजिंग आकर रहने लगा क्योंकि वहीं इकलौता अस्पताल है, जो सियी का इलाज कर सकता है. मगर उसके माता-पिता ऑपरेशन का भारी भरकम ख़र्च 96 हज़ार डॉलर उठाने के क़ाबिल नहीं हैं.

मदद की पहल

ऐसे लोगों की मुश्किलें दूर करने के लिए कुछ पहल हो रही हैं.

कुछ संस्थान शिशुओं की सेहत से जुड़ी समस्याओं को लेकर काम कर रहे हैं. इनमें गर्भवती महिलाओं को कई तरह की मुफ़्त दवाएं बांटना भी शामिल है. वहीं कई संस्थाएं ऐसे माता-पिता तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं, जिनके बच्चे गंभीर बीमारियों के शिकार हैं.

चीनी बच्ची
इमेज कैप्शन, सियी बेहद गंभीर बीमारी से पीड़ित है

दूसरी तरफ़ चीन में 18 साल की उम्र तक बच्चों को सरकारी स्वास्थ बीमा दिलाने के लिए भी प्रयास हो रहे हैं. बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले मेलोडी चांग हर साल चीन की संसद को इस बारे में प्रस्ताव सौंपते हैं लेकिन इन प्रस्तावों का क्या होता है, यह पता लगाना मुश्किल है.

फिलहाल चीन में लाखों माता-पिता ऐसे हैं, जो अपने बच्चों की परवरिश और उन्हें स्वस्थ बनाए रखने के लिए जूझ रहे हैं.

सियी के परिवार ने हाल ही में ऊंचे ब्याज पर कर्ज़ लिया है. उन्हें बेटी के ऑपरेशन के लिए 40 हजार डॉलर की व्यवस्था करनी है.

उसके पिता का कहना है, “बस हम यही चाहते हैं कि हमारी बच्ची अच्छी हो जाए और अन्य बच्चों की तरह बढ़े और उसका विकास हो.”

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