पाकिस्तान में जनगणना: हिंदुओं को लेकर क्या है विवाद और प्रक्रिया पर क्यों उठ रहे हैं सवाल

पाकिस्तान में जनगणना

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    • Author, शुमाइला जाफ़री & शादाब नज़्मी
    • पदनाम, बीबीसी, इस्लामाबाद और दिल्ली

पाकिस्तान की सातवीं जनगणना इस साल शुरू हो चुकी है.

पाकिस्तान के इतिहास में ये पहला मौका है जब देश की आबादी और इससे संबंधित दूसरे रुझानों को जानने के लिए डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है.

वैसे ऐतिहासिक तौर पर पाकिस्तान में जनगणना हमेशा विवादों में रहा है. सातवीं जनगणना भी कोई अपवाद नहीं है.

मौजूदा जनगणना में अन्य चीज़ों से जुड़े विवाद तो हैं ही, साथ ही इसने देश की हिंदू आबादी के बीच एक बहस छेड़ दी है.

पाकिस्तान में जनगणना का काम पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो के अधीन है.

सांख्यिकी ब्यूरो ने जो फॉर्म बांटे हैं उसमें हिंदू और अनुसूचित जातियों को अलग अलग समूह के तौर पर दर्ज किया गया है.

पाकिस्तान में पहले भी हिंदुओं की जनगणना इसी आधार पर होती रही है. लेकिन इस बार हिंदुओं की ओर से मांग की जा रही है कि सभी जाति के लोगों की गिनती एक साथ होनी चाहिए.

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को आबादी के आधार पर सुविधाएं और आरक्षण मिलता है, जिसमें संसद की आरक्षित सीटें एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण शामिल है. यही वजह है कि पाकिस्तान के सवर्ण हिंदुओं की मांग है कि अनुसूचित जाति के साथ गिनती से समुदाय को फ़ायदा होगा.

अनुसूचित जाति के हिंदुओं की आबादी दूसरे समुदायों की तुलना में ज़्यादा है. ऐसे में सवर्ण हिंदुओं का मानना है कि सामूहिक आवाज़ कहीं ज़्यादा दमदार और मजबूत होगी. इन दोनों को अलग अलग वर्गों में रखना पाकिस्तान के हिंदुओं के लिए फ़ायदेमंद नहीं है.

पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के चेयरमैन रमेश वांकवानी ने बीबीसी को बताया कि वे ना केवल हिंदुओं बल्कि सभी अल्पसंख्यक समुदाय की एकजुटता की वकालत कर रहे हैं.

इससे पहले 2017 में पाकिस्तान की जनगणना हुई थी, तब देश भर में हिंदुओं की आबादी 45 लाख थी.

हालांकि वांकवानी का दावा है कि वास्तविक संख्या 80 लाख के करीब होगी. उनका ये भी कहना है कि बड़ी संख्या में लोगों की गिनती नहीं हो पाई है क्योंकि लोगों का पंजीयन नहीं हुआ है.

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हिंदुओं के बीच मतभेद

उन्होंने कहा, "हमलोग जागरुकता अभियान चला रहे हैं ताकि हिंदू सामूहिक तौर पर एकजुट होकर अपना पंजीयन कराएं, इससे उनकी ताक़त और आवाज़ बुलंद होगी."

लेकिन हिंदुओं के दूसरे समुदायों के साथ मिलाकर गणना किए जाने का अनुसूचित जाति के कुछ लोग विरोध कर रहे हैं.

हिंदुओं की पिछड़ी और शोषित जातियों का यह वर्ग ब्रिटिश राज के समय अस्तित्व में आया था. इस समूह को मुख्य धारा में लाने के लिए कहीं ज़्यादा अवसर मुहैया कराए गए. अनुसूचित जाति में मेघवार, कोली, भील, उड, बागरी और वाल्मिकी इत्यादि शामिल हैं.

यह समूह अपनी अलग पहचान चाहता है ताकि उनकी अपनी हिस्सेदारी क़ायम रहे और आरक्षण में भागीदारी भी.

सामूहिक जनगणना का विरोध करने वाले अनुसूचित जाति के लोगों का मनना है कि बहुसंख्यक होने के बाद भी अतीत में उन पर ब्राह्मण और ठाकुरों का शासन रहा और उनको अछूत माना गया.

इन हिंदुओं का मानना है कि वे सिंधु सभ्यता के असली वारिस हैं और इन लोगों के मुताबिक सवर्ण हिंदू एक बार फिर जनगणना में अनुसूचित जाति के अलग गिनती को लेकर विवाद पैदा कर रहे हैं ताकि उनका अपना प्रभुत्व क़ायम रहे.

उनका मानना है कि दोनों वर्गों को साथ मिलाने से उन्हें किसी तरह का लाभ नहीं होगा.

लाजपत भेल, थारपारकर के एक सामुदायिक कार्यकर्ता है. वे पाकिस्तान के अनुसूचित जाति के हिंदुओं के बीच जागरुकता अभियान चला रहे हैं और उन्हें समझा रहे कि वो अपनी पहचान सवर्ण हिंदुओं से अलग बताएं.

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'हक़ मारने की कोशिश'

उन्होंने बीबीसी को बताया, "सवर्ण हिंदू सरकार में शामिल हैं. वे आरक्षण का लाभ ले रहे हैं. दूसरी ओर हम अनुसूचित जाति के लोगों की ना तो नौकरी, ना शिक्षा और ना ही दूसरे संसाधनों तक पहुंच है. हमारा मानना है कि एकसाथ जनगणना करवाकर अनुसूचित जाति का हक़ मारने की कोशिश की जा रही है. अनुसूचति जाति के लोगों की संख्या अधिक है. लेकिन सवर्णों में ज़मींदार, सांसद, मंत्री और सलाहकारों का दबदबा यहां ज़्यादा है."

पाकिस्तान में ग़ैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को सरकारी नौकरियों में पांच प्रतिशत आरक्षण हासिल है. जबकि पाकिस्तान की संसद में दस सीटें आरक्षित हैं. संसद के ऊपरी सदन में चार सीटें आरक्षित हैं और पाकिस्तान के प्रांतों की विधानसभाओं में कुल मिलाकर 23 सीटें आरक्षित हैं.

हालांकि पूरे अनुसूचित जाति के लोगों की राय लाजपत भेल की राय से मेल नहीं खाती.

थारपारकर के एक दूसरे कार्यकर्ता नंद लाल ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि "अनुसूचित जाति के कई हिंदू अलग-अलग पहचान से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते."

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सरकार ने दिया विकल्प

इन लोगों का मानना कि शिक्षा और जागरुकता के चलते अनुसूचित समुदाय अब समाज की मुख्यधारा से बहुत दूर नहीं रह गया है, ऐसे में जातिगत पहचान का कोई मतलब नहीं है. इन लोगों के मुताबिक़ ऐसी पहचान एक हद तक अपमानजनक भी है, इसलिए ये लोग ख़ुद को हिंदू के तौर पर पंजीकृत करना चाहते हैं.

पाकिस्तान सरकार ने अपनी ओर से दोनों समुदायों को विकल्प दिया है कि वे ख़ुद अपनी इच्छानुसार अपना वर्ग चुन सकते हैं.

ऐतिहासिक तौर पर आज़ादी से पहले, दोनों वर्गों की गिनती अलग-अलग होती थी, इसलिए जनगणना वाले फ़ॉर्म में दो वर्ग बने हुए हैं, लेकिन हिंदूओं को अपनी पसंद के मुताबिक़ विकल्प चुनने की आज़ादी है.

पाकिस्तान की पिछली जनगणना 2017 में हुई थी, तब देश भर में मुस्लिमों की आबादी 96.2 प्रतिशत थी. हिंदू पाकिस्तान में सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी हैं.

हिंदुओं की संख्या कुल आबादी का 1.6 प्रतिशत है और अगर इनमें अनुसूचित जनजाति की आबादी को मिला दिया जाए तो यह कुल आबादी का दो प्रतिशत से ज़्यादा होगा.

दूसरे लोग भी उठा रहे हैं सवाल

सिंध प्रांत के राजनेताओं ने इस मुद्दे पर सवाल उठाए हैं. अहम शहर कराची इसी सूबे में हैं

पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) के मुखिया बिलावल भुट्टो ज़रदारी पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाने वालों में सबसे प्रमुख हैं. उनकी पार्टी दशकों से सिंध प्रांत पर शासन कर रही है.

बिलावल भुट्टो

बिलावल भुट्टो ने कहा, "जनगणना में जानकारियां ख़ुद से भरनी हैं, लेकिन अगर लोगों को मालूम नहीं कि इसे किस तरह करना है और इससे संबंधित जानकारी अगर देश के दूर दराज़ के ग्रामीण हिस्सों तक नहीं पहुंच रही है तो वो जनगणना में किस तरह शामिल हो पाएंगे?"

ऐतिहासिक तौर पर कराची में सबसे ज़्यादा सीटें जीतने वाली मुताहिदा क़ौमी मूवमेंट भी इस साल जनगणना की प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं है.

हालांकि पार्टी की ओर से अब तक किसी मुद्दे पर आलोचना नहीं की गई है लेकिन आशंका जताई है कि कराची की आबादी को कम करके दिखाया जाएगा, ताकि इसे संसाधनों में कम हिस्सेदारी मिल पाए.

सिंध नेशनलिस्ट पार्टी ने भी आशंका जताते हुए कहा है कि ग्रामीण इलाक़ों की आबादी के आंकड़ों में गड़बड़ी हो सकती है.

पिछली जनगणनाओं के दौरान कराची में बसे बंगाली और अफ़ग़ान शरणार्थियों को गिनती में शामिल नहीं किया गया था. इन लोगों के पास कोई राष्ट्रीय पहचान पत्र भी नहीं है. हालांकि इस बार की जनगणना में पाकिस्तान में रह रहे बंगाली, अफ़ग़ानी और चीनी लोगों को ग़ैर-पाकिस्तानी के तौर पर गिना जाएगा.

कुछ लोगों का मानना है कि इससे कराची की आबादी कम गिने जाने की आशंका कुछ हद तक दूर हो सकती है.

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जनगणना से जुड़े तथ्य और आंकड़े

पाकिस्तान दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी आबादी वाला देश है.

2017 में हुई जनगणना के मुताबिक़ पाकिस्तान की आबादी 20.7 करोड़ है. हालांकि वास्तविक आबादी इससे ज़्यादा होने की उम्मीद है.

देश में सातवीं जनगणना की प्रक्रिया चल रही है. यह प्रक्रिया एक मार्च, 2023 से शुरू हुई है.

पाकिस्तान की जनगणना में पहली बार डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसमें टैबलेट और ऑनलाइन आवेदन के ज़रिए आंकड़े एकत्रित किए जा रहे हैं.

सातवीं जनगणना का अनुमानित ख़र्च 34 अरब पाकिस्तानी रुपये हैं.

इसके 10 अप्रैल तक पूरा होने की उम्मीद जताई गई थी.

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पाकिस्तानी सांख्यिकी ब्यूरो ने घोषणा की है कि जनगणना से संबंधित आंकड़े 30 अप्रैल तक जारी किए जाएंगे.

देश भर में आंकड़े एकत्रित करने के काम में 95 हज़ार कर्मचारियों को तैनात किया गया है.

2017 में पाकिस्तान की जनगणना में जनसंख्या वृद्धि दर 2.4% दर्ज की गई थी.

जनगणना के दौरान पूछे जाने वाले सवाल

  • घर की पहचान से जुड़े सवाल- कमरों की संख्या, निर्माण का सामान, पीने के पानी का स्रोत, शौचालय एवं दूसरी सुविधाएं.
  • सूचना एवं संचार के साधन- घर में मौजूद रेडियो, टीवी, मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप और कंप्यूटर की संख्या.
  • पेशे और रोज़गार के बारे में जानकारी.
  • शिक्षा, वैवाहिक स्थिति, उम्र, राष्ट्रीयता, जेंडर, परिवार में लोगों की संख्या और 18 साल से अधिक उम्र के लोगों की राष्ट्रीय पहचान कार्ड संख्या के बारे में जानकारी एकत्रित करना.
  • जनगणना में लोगों की मातृभाषा के बारे में जानकारी एकत्रित की जा रही है.
  • धर्म के बारे में जानकारी देना अनिवार्य है. यह जानकारी मुस्लिम, ईसाई, हिंदू, अहमदी, अनुसूचित जाति एवं अन्य वर्ग के आधार पर देनी है.
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इस बार ख़ास क्या है

यह पाकिस्तान की पहली डिजिटल जनगणना है. आंकड़े एकत्रित करने के लिए टैबलेट और ऐप का इस्तेमाल किया जा रहा है.

पाकिस्तान में पहली बार ट्रांसजेंडरों की गिनती हो रही है.

पहली बार लोगों को अपनी जानकारी पोर्टल पर भरने की सुविधा दी गई है.

जिन लोगों के पास राष्ट्रीय पहचान कार्ड नहीं है, उनकी गिनती भी हो रही है.

पहली बार सभी इमारतों में जियो टैगिंग की जा रही है ताकि भविष्य में आर्थिक जनगणना संबंधी फ़्रेमवर्क तैयार किया जा सके. पाकिस्तान में इससे पहले आर्थिक जनगणना नहीं हुई है.

ऐसा पहली बार है जब आंकड़े एकत्रित करने वालों के साथ सेना के जवान नहीं है. हालांकि संवेदनशील इलाक़ों में आंकड़े एकत्रित करने वालों के साथ पुलिस बल तैनात किया गया है.

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डिजिटल जनगणना की प्रक्रिया

देश भर को 185,509 ब्लॉक में बांटा गया है. जनगणना के दौरान 200 से 250 घरों को एक ब्लॉक में रखा गया है.

आंकड़े एकत्रित करने वाले प्रत्येक कर्मचारी को दो ब्लॉक से आंकड़े जुटाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी.

आंकड़े एकत्रित करने वाली टीम ने घर-घर जाकर आंकड़े एकत्रित करके टैबलेट में दर्ज किया और लोगों से पोर्टल में जानकारी भरने के लिए कहा.

लोगों के द्वारा जानकारी भरने के बाद एक कोड जेनरेट होता है.

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लोगों से ये कोड जानकारी एकत्रित करने वालों के दोबारा आने पर साझा करना था.

कई इलाक़ों में इंटरनेट के चलते समस्या भी देखने को मिली. कई टैबलेट मेन सिस्टम से कनेक्ट नहीं हो पाया. पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो ने इस्लामाबाद में एक कंट्रोल रूम स्थापित किया, जहां ऑफ़लाइन टैबलेट में दर्ज आंकड़ों को स्थानांतरित किया गया.

पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो ने 30 अप्रैल तक नतीजे जारी करने की उम्मीद जताई है, हालांकि इसमें देरी होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.

जनगणना में शामिल कर्मचारियों की चुनौतियां

कई जगहों पर जनगणना में शामिल कर्मचारियों को लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा है. लोगों में इनको लेकर काफ़ी अविश्वास दिखा. जनगणना में शामिल कर्मचारियों को कई बार लोगों को समझाना पड़ा कि वे क्या कर रहे हैं और क्यों लोगों को उनकी मदद करनी चाहिए.

सुरक्षा को लेकर भी काफ़ी चुनौतियां देखने को मिली है. ख़ैबर पख़्तून प्रांत में जनगणना कर्मचारियों की सुरक्षा में तैनात दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई.

इंटरनेट कनेक्टेविटी को लेकर भी काफ़ी समस्याएं दिखीं. देश के कुछ हिस्सों में इंटरनेट की कनेक्टिविटी नहीं होने से जनगणना कर्मचारियों को काफ़ी मुश्किलें हुईं.

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कुछ कर्मचारियों ने पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो के सिस्टम के धीमे होने की शिकायत दर्ज करायी.

आम लोग भी कर्मचारियों के साथ फ़ोन नंबर शेयर करने को लेकर असहज दिखे. कई लोगों ने जनगणना करने वाले कर्मचारियों को मार्केटिंग करने वाला समझ कर अपने घरों के दरवाज़े नहीं खोले.

छोटे-मोटे कारोबारियों और दुकानदारों ने भविष्य में कर अदा करने के डर से सरकारी आंकड़ों में पंजीकृत होने का विरोध भी किया.

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