ब्रिटेन की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने मुसलमानों को क्यों दी सख़्त नसीहत?

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ब्रिटेन की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने कहा है कि क़ुरान की प्रति को नुक़सान पहुंचाने वाले बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा की धमकी चिंताजनक है.
ब्रितानी गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने कहा है कि इससे अभिव्यक्ति की आज़ादी का व्यापक मुद्दा उठता है.
ब्रितानी समाचार एजेंसी पीए की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर नए दिशानिर्देशों पर काम करने का वादा भी किया है.
गृह मंत्री ने कहा है कि वो ये स्पष्ट करना चाहती हैं कि "शिक्षकों को स्व-घोषित सामुदायिक कार्यकर्ताओं को जवाब देने की आवश्यकता नहीं है."
क्या है मामला?
वेस्ट यॉर्कशर के वेकफ़ील्ड स्थित केटलथोर्प हाई स्कूल में पिछले सप्ताह स्कूल का एक दस वर्षीय छात्र 'चुनौती स्वीकार करने के बाद' इस्लाम के पवित्र ग्रंथ क़ुरान को लेकर स्कूल आया था.
बाद में इस पुस्तक का कवर पेज कुछ फटा हुआ मिला था और पन्नों पर धूल थी.
इस घटना के बाद चार छात्रों को एक हफ्ते के लिए निलंबित कर दिया गया है. शिक्षा विभाग के अधिकारी इस स्कूल के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.
स्कूल के हेड टीचर टुडोर ग्रिफ़िथ के मुताबिक शुरुआती जांच में पता चला है कि इस घटना के पीछे कोई ग़लत नीयत नहीं थी.
बच्चे की मां का कहना है कि वो 14 साल का है और ऑटिज़्म से ग्रसित है. मां ने शिकायत की है कि उनके बेटे को जान से मारने की धमकी मिली है.
द टाइम्स के मुताबिक मां का कहना है कि उनके बच्चे ने मीटिंग में माफी मांगी है और बुधवार दोपहर के बाद से खाना नहीं खाया है.

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'ग्रेट ब्रिटेन में ईशनिंदा क़ानून नहीं'
द टाइम्स में प्रकाशित लेख में गृह मंत्री ने कहा है, "ग्रेट ब्रिटेन में ईशनिंदा क़ानून नहीं है और हमें इन्हें देश पर लागू करने के प्रयासों का हिस्सा नहीं होना चाहिए. किसी एक धर्म के प्रति आस्थावान होने की कोई क़ानूनी बाध्यता भी नहीं है."
ये चेताते हुए कि अभिव्यक्ति की आज़ादी ग़लत दिशा में जा रही है, गृह मंत्री ने कहा है कि इस्लाम को ये उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि अपमान के ख़िलाफ़ उसके पास कोई विशेष सुरक्षा है.
1980 के दशक में लेखक सलमान रुश्दी को मिली मौत की धमकियों का संदर्भ लेते हुए उन्होंने कहा, "इसका एक लंबा, उपेक्षित इतिहास है, जो कम से कम द सैटेनिक वर्सेज को लेकर हंगामे तक जाता है."
वो लिखती हैं, "इसकी जड़ें इस विचार में हैं, जो अपने आप में धर्मांध है कि, मुसलमानों को अगर उकसाया जाए तो वो अपने आप को नियंत्रित करने में अक्षम होते हैं. और इसकी वजह से आक्रामक लोगों को डर पैदा करके दूसरों को अपनी मांग के प्रति झुकाने का बहाना मिलता रहा है."
स्वेला ब्रेवरमैन ने अख़बार में लिखते हुए कहा है कि जिस तरह से गैर-हिंसक हेट क्राइम रिकॉर्ड किए जाते हैं वो उन्हें लेकर ख़ुश नहीं हैं. उन्होंने पुलिस के लिए जल्द ही नए दिशानिर्देश जारी करने का वादा भी किया है.
ब्रिटेन में साल 2008 में ईशनिंदा क़ानूनों को ख़ारिज कर दिया गया था.

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पहले भी हो चुकी हैं कई घटनाएं
जनवरी, 2023 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में तुर्की दूतावास के बाहर दक्षिणपंथी नेता रासमुस पैलुदान ने पवित्र कुरान की एक प्रति में आग लगा दी थी.
दरअसल रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद स्वीडन ने नेटो सदस्यता के लिए आवेदन किया था और तुर्की इसका विरोध कर रहा था.
तुर्की के विरोध के चलते दक्षिणपंथी कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. इसी विरोध प्रदर्शन के दौरान क़ुरान जलाने का मामला सामने आया था.
इस घटना के बाद तुर्की, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र और पाकिस्तान के अलावा कई देशों ने क़ुरान जलाए जाने की निंदा की थी.

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अमेरिकी सैनिकों ने जलायाक़ुरान
फरवरी, 2012 में अफगानिस्तान के बगराम हवाई अड्डे में अमेरिकी सैनिकों ने क़ुरान की प्रतियां जला दी थीं. इस घटना के बाद दंगे भड़क गए थे जिनमें दो अमेरिकी सैनिकों समेत 30 लोगों की मौत हो गई थी.
घटना की तहकीकात के बाद छपी रिपोर्ट के मुताबिक क़ुरान की 53 प्रतियां और 162 अन्य धार्मिक किताबों को एक भट्टी में जला दिया गया था.
20 मार्च 2011 को फ्लोरिडा की एक चर्च में अमेरिकी पैस्टर वेन सैप ने क़ुरान की एक प्रति को आग लगा दी थी.
अफगानिस्तान में इस घटना का विरोध हुआ और उन प्रदर्शनों के दौरान कंधार शहर में पांच लोग मारे गए और 40 से ज्यादा लोग घायल हुए थे.
साल 2005 में डेनमार्क के एक अख़बार ने पैगंबर मोहम्मद को दर्शाते कार्टून प्रकाशित किए. अख़बार युलांस पोस्टन ने 12 कार्टूनों की सिरीज़ प्रकाशित की जिनमें से कई कार्टूनों में पैगंबर को इस्लामी चरमपंथी के रूप में प्रदर्शित किया गया था.
इसका विरोध होने पर अख़बार ने कार्टून से मुसलमानों की भावनाएँ आहत होने पर माफ़ी माँग ली, लेकिन साथ ही कहा कि उसे अभिव्यक्ति की आज़ादी है और वो जो चाहे प्रकाशित कर सकता है.
फिर वर्ष 2006 में एक फ़्रांसीसी पत्रिका ने दोबारा इन कार्टूनों को छापा, जिसके बाद दुनिया भर में मुसलमानों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई.
शार्ली एब्दो नाम की इस पत्रिका में इस्लाम के अलावा दूसरे धर्मों पर भी टिप्पणी की गई.
इसके बाद भारत और पाकिस्तान समेत कई इस्लामी देशों में विरोध प्रदर्शन हुए जिनमें से कुछ हिंसक भी हुए और कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई.
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