चीन को घेरने के लिए अमेरिका ने इस देश के साथ किया अहम समझौता

    • Author, रूपर्ट विंगफील्ड-हेस
    • पदनाम, बीबीसी न्यूज़, मनीला

चीन को घेरने की कोशिश में जुटे अमेरिका को फ़िलीपींस में बड़ी सफलता हाथ लगी है.

फ़िलीपींस के साथ हुए अभी हुए एक अति महत्वपूर्ण समझौते के कारण अमेरिकी सेना अब फ़िलीपींस के चार और ​सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल कर सकती है.

ताइवान को लेकर चीन का रुख़ हाल में और आक्रामक हुआ है.

साथ ही दक्षिण चीन सागर में वह अपने सैन्य ठिकानों का लगातार विस्तार कर रहा है.

ऐसे में चीन को घेरने के लिए अमेरिका काफ़ी वक़्त से इन दोनों जगहों के पास ही बसे फ़िलीपींस से ऐसा समझौता करने का प्रयास कर रहा था.

अगर हम पूर्वी एशिया का मानचित्र देखें, तो अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के सैन्य ठिकाने उत्तर में दक्षिण कोरिया और जापान तो दक्षिण में ऑस्ट्रेलिया तक फैले हैं.

इस ताज़ा समझौते से अमेरिका अब ताइवान के पास और दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियों पर नज़र रख सकता है.

व्यापक हो जाएगी पहुँच

फ़िलीपींस को तो दक्षिण चीन सागर के नाम पर भी आपत्ति है. वह इसे 'वेस्ट फ़िलीपीन सी' कहता रहा है.

वैसे 'एन्हान्स्ड डिफ़ेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट' (ईडीसीए) के तहत अमेरिका को पहले से फ़िलीपींस के पाँच ठिकानों का इस्तेमाल करने का अधिकार था.

लेकिन ताज़ा करार से उसकी पहुँच अब और व्यापक हो गई है.

अमेरिका ने बिना चीन का नाम लिए इस समझौते के महत्व को समझाया है.

अमेरिका का कहना है- इस समझौते से फ़िलीपींस में मानवीय और प्राकृतिक संकट के अलावा अन्य साझा चुनौतियों में और तेज़ी से सहायता पहुँचाने में मदद मिलेगी.

अमेरिका का यह बयान उसके रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन की मनीला में फ़िलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड 'बॉन्गबॉन्ग' मार्कोस जूनियर से गुरुवार को हुई मुलाक़ात के बाद आया है.

अमेरिका ने हालाँकि यह नहीं बताया है कि नए ​सैन्य ठिकाने कहाँ होंगे, लेकिन ये ज़रूर बताया है कि ताइवान के पास स्थित फ़िलीपींस के लुज़ोन द्वीप पर तीन ठिकाने हो सकते हैं.

फ़िलीपींस 30 साल पहले तक अमेरिका का ही उपनिवेश था और इस समझौते से अमेरिका के वहाँ से निकलने की घटना उलट जाती है, जो अहम बात है.

वॉशिंगटन में सेंटर फ़ॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ में दक्षिण पूर्व एशिया कार्यक्रम के निदेशक ग्रेगरी बी पोलिंग कहते हैं, "अमेरिका स्थायी ठिकाने नहीं तलाश कर रहा है. यह समझौता ठिकाने से नहीं, बल्कि स्थान के लिहाज से अहम है."

अमेरिका को बड़ी संख्या में सैनिक तैनात करने के लिए जगह नहीं चाहिए, बल्कि उसे साजो-सामान मुहैया कराने और सर्विलांस करने के लिए ऐसी जगह चाहिए, जहाँ से छोटी कार्रवाइयाँ की जा सके.

चिंता

दूसरे शब्दों में कहें तो यह समझौता तीन दशक पुराने वाले दौर की वापसी जैसा मामला नहीं है, जब फ़िलीपींस में 15 हज़ार अमेरिकी सैनिक और एशिया के दो सबसे बड़े अमेरिकी सैन्य ठिकाने हुआ करते थे.

और फिर फ़िलीपींस के तानाशाह फर्डिनेंड मार्कोस की मौत के बाद 1992 में अमेरिका की विदाई हो गई. उसके बाद फ़िलीपींस में लोकतंत्र और स्वतंत्रता की जड़ें मज़बूत हुईं.

30 साल बाद फ़िलीपींस में एक अन्य फर्डिनेंड मार्कोस यानी फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर देश के राष्ट्रपति हैं.

सबसे अहम बात कि अब चीन कोई कमज़ोर सैन्य शक्ति नहीं रह गया है, बल्कि वह फ़िलीपींस का दरवाज़ा खटखटा रहा है.

चीन ने 2014 से इलाक़े में अब तक 10 कृत्रिम द्वीप बनाए हैं. इनमें से एक 'मिसचीफ रीफ' तो फ़िलीपींस के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन में पड़ता है.

चीन, दक्षिण चीन सागर का नक्शा नए सिरे से बना रहा है. इससे फ़िलीपींस बहुत चिंतित है, लेकिन इस मामले में हस्तक्षेप करने में वह ख़ुद को अक्षम पाता है.

फ़िलीपींस यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर हर्मन क्राफ्ट बताते हैं कि 2014 तक चीन और फ़िलीपींस के संबंधों में कोई ख़ास समस्या नहीं थी.

वे कहते हैं, ''दक्षिण चीन सागर में पहले 'जियो और जीने दो' जैसी स्थिति थी. लेकिन 2012 में उन्होंने स्कारबोरो शोल पर कब्ज़ा करने की कोशिश की. फिर 2014 में वे द्वीप बनाने लगे. ज़मीन हड़पने की चीन की नीति ने रिश्तों को बदल दिया.''

अमेरिका में फ़िलीपींस के पूर्व राजदूत जोसे क्यूज़िया जूनियर कहते हैं, ''चीन के ख़तरों से बचाव के लिए हमारी क्षमता बेहद सीमित है.''

उनके अनुसार, दक्षिण चीन सागर का सैन्यीकरण न करने का वादा चीन ने लगातार तोड़ा.

वे कहते हैं कि फ़िलीपींस अकेले उन्हें नहीं रोक सकता. उन्हें रोकने की ताक़त केवल अमेरिका में है.

लेकिन इस बार पहले की तरह फ़िलीपींस में अमेरिका के हज़ारों नौसैनिक और वायुसैनिक नहीं होंगे.

फ़िलीपींस में अमेरिकी सैनिकों की हिंसा और उत्पीड़न की कहानियाँ लोगों के ज़ेहन में बसी हैं.

बताया जाता है कि अमेरिकी सैनिकों के अपने वतन लौटने के बाद फ़िलीपींस में क़रीब 15 हज़ार बच्चे बिना बाप के अकेले अपनी माँ के साथ रहने को मजबूर हुए.

इसलिए वामपंथी दल इस नए समझौते का पुरज़ोर विरोध कर रहे हैं.

न्यू पैट्रियोटिक एलायंस के महासचिव रेनेटो रेइस ने बताया, ''हमारे रिश्तों में असमानता का एक लंबा इतिहास रहा है. उनका बलात्कार, बाल दुर्व्यवहार और ज़हरीले कचरे का इतिहास रहा है.''

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