सऊदी अरब, चीन जैसे मित्र देश पाकिस्तान की मदद क्यों नहीं कर पा रहे हैं

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- Author, आज़म ख़ान
- पदनाम, बीबीसी उर्दू, इस्लामाबाद
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति के बारे में एक सवाल बार-बार उठाया जा रहा है कि इस बार पाकिस्तान को पहले की तरह सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और चीन जैसे मित्र देशों से तत्काल और अल्पकालीन सहायता क्यों नहीं मिल रही है.
हाल ही में पाकिस्तान के गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह के एक बयान ने इसी बहस से जुड़े एक और सवाल को जन्म दे दिया है कि क्या मित्र देश आईएमएफ़ की वजह से पाकिस्तान की मदद करने से हिचक रहे हैं?
ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान के वित्त मंत्री इसहाक़ डार ने पिछले कुछ दिनों में कई बार मीडिया के सामने बयान दिया है कि एक दो हफ्तों के अंदर पाकिस्तान को क़रीबी मित्र देशों से सहायता मिल जाएगी जिससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ सकेगा.
पिछले सप्ताह राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, उन्होंने कहा, "सऊदी अरब से तीन बिलियन डॉलर के बेल आउट पैकेज को मंज़ूरी मिलने की संभावना है."
उन्होंने कहा, "इस संदर्भ में आज यानी मंगलवार की सुबह सऊदी अरब की सरकारी समाचार एजेंसी ने ख़बर दी कि सऊदी क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान ने पाकिस्तान में सऊदी अरब की चल रही निवेश परियोजनाओं को एक अरब से बढ़ाकर दस अरब डॉलर तक करने पर विचार करने के निर्देश जारी किए हैं."
ख़बर में यह भी बताया गया है कि क्राउन प्रिंस ने स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान में सऊदी जमा राशि को पांच अरब डॉलर तक बढ़ाने पर 'विचार' करने के निर्देश भी जारी किए हैं.
हालांकि, ये घोषणाएं अभी सऊदी अरब के संबंधित विभागों को इस बारे में "विचार" करने के बारे में हैं. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक़, जैसे ही पाकिस्तान के आईएमएफ़ से क़र्ज़ हासिल करने के मामले तय हो जायेंगे, सऊदी अरब की तरफ़ से घोषित किये गए ये उपाय ठोस शक्ल में सामने आ जायेंगे.
ग़ौरतलब है कि पिछले हफ्ते पाकिस्तान ने संयुक्त अरब अमीरात को एक अरब से ज़्यादा क़र्ज़ अदा किया है जिससे विदेशी मुद्रा और कम हुई है और आर्थिक चुनौतियां पहले से ज़्यादा बढ़ती दिख रही हैं.

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इस क़र्ज़ की अदायगी के बाद पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार ख़तरनाक स्तर तक कम हो गया, जिसके बाद डिफ़ॉल्ट होने की बात फिर से ज़ोर पकड़ने लगी है.
विशेषज्ञों के अनुसार, इस समय पाकिस्तान के पास पाँच अरब डॉलर से कम का भंडार है, जिससे केवल तीन सप्ताह के आयात के लिए भुगतान किया जा सकता है और अगर जल्दी ही बाहरी सहायता या क़र्ज़ नहीं मिला, तो ऐसी स्थिति में देश के डिफ़ॉल्ट होने का ख़तरा बढ़ सकता है.
विदेशी मुद्रा बढ़ाने के लिए ख़ुद वित्त मंत्री इसहाक़ डार मूल्यवान संपत्तियों को सीधे मित्र देशों को बेचने की योजना पर बात कर चुके हैं, लेकिन इस संबंध में अभी तक कोई अंतिम फ़ैसला नहीं हो सका है.
इस पर यह सवाल भी उठता है कि क्या आईएमएफ़ से मामला तय न होने के कारण मित्र देश पाकिस्तान की मदद करने से कतरा रहे हैं? इस सवाल का जवाब जानने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि आईएमएफ़ के साथ मामले क्यों नहीं सुलझ पा रहे हैं?
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पाकिस्तान और आईएमएफ़
इसहाक़ डार ने अभी तक यह तो नहीं बताया कि जिन क़रीबी मित्र देशों से जल्द मदद मिलने की संभावना थी, वह मदद अभी तक क्यों नहीं मिल पाई है.
हालांकि सुरक्षा मामलों पर नज़र रखने वाले गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह ने पंजाब के औद्योगिक शहर फ़ैसलाबाद में कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि मित्र देशों ने हमसे कहा है कि पहले आईएमएफ़ से अपने मामले सुलझाओ और उसके बाद हमारे पास आओ.
अब सवाल यह पैदा होता है कि कहीं मित्र देशों को आईएमएफ़ की अनुमति की ज़रूरत तो नहीं है?
विशेषज्ञों का कहना है कि आईएमएफ़ मिशन के साथ पाकिस्तान की नौवीं समीक्षा अक्टूबर में होनी थी, लेकिन इस्लामाबाद और आईएमएफ़ के बीच एक्सचेंज रेट पॉलिसीज़, आयात पर प्रतिबंध, अतिरिक्त कर लगाने की शर्त और बिजली दरों में वृद्धि करके लगभग पांच हज़ार अरब रुपये के क़र्ज़ को चुकाने जैसे उपायों पर मतभेद पैदा होने के कारण ये बातचीत अटक गई.
हालांकि, सोमवार को वित्त मंत्री इसहाक़ डार ने जेनेवा सम्मेलन के मौक़े पर पाकिस्तान के लिए आईएमएफ़ मिशन प्रमुख नाथन पोर्टर से मुलाक़ात की. वित्त मंत्रालय के अनुसार, इस मुलाक़ात में जलवायु परिवर्तन के कारण क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की गई.
वित्त मंत्री ने आईएमएफ़ के कार्यक्रम को पूरा करने की अपनी प्रतिबद्धता को भी दोहराया.
हालांकि, इस बैठक में आईएमएफ़ ने कौन-सी शर्तें गिनवाई हैं, इस पर वित्त मंत्रालय ख़ामोश है.
प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने पिछले हफ्ते एक कार्यक्रम में अपने भाषण में कहा था कि उन्हें आईएमएफ़ की एमडी का फ़ोन आया था और उन्होंने चीन और सऊदी अरब के बारे में भी पूछा था कि वे पाकिस्तान की मदद कर रहे हैं या नहीं?.
आईएमएफ़ ने बाद में मीडिया के सामने साफ़ किया कि यह कॉल पाकिस्तान की तरफ़ से आई थी और इसका उद्देश्य जेनेवा सम्मेलन पर चर्चा और वहां मिशन के साथ पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल की बैठक से संबंधित मामलों पर चर्चा करना था.
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तो क्या पाकिस्तान अब मित्रों और वित्तीय संस्थानों को सहायता या ऋण देने के लिए राज़ी करने में सफल हो गया है?
अब यह एक ऐसी स्थिति है जिसे समझने के लिए विशेषज्ञ की राय की ज़रूरत है.
आईएमएफ़ को संतुष्ट किए बिना कोई भी देश लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को सहारा नहीं देगा.
इकोनॉमिक एडवाइज़री ग्रुप के सदस्य और पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ़ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स के वाइस चांसलर डॉक्टर नदीम-उल-हक़ ने बीबीसी को बताया कि यह एक तयशुदा बात है जो अब एक वैश्विक क़ानून बन गया है कि आईएमएफ़ के हेल्थ सर्टिफ़िकेट के बिना कोई भी देश या बैंक किसी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था की मदद नहीं करेगा.
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मदद के लिए पाकिस्तान को क्या करना होगा?
उनके अनुसार, ये बात 1983, 1987 और 2008 के वैश्विक संकट से भी स्पष्ट हो गई है कि किसी भी देश को अपनी आदतों को सुधारना होगा और आईएमएफ़ का विश्वास हासिल करना होगा, उसके बाद ही अन्य संस्थान और देश उस पर भरोसा कर सकेंगे.
अर्थशास्त्री मोहम्मद सुहैल ने बीबीसी को बताया कि असल में पाकिस्तान पर क़र्ज़ इतना अधिक हो गया है कि अब हमारे देश पर विश्वास का स्तर बहुत कम हो गया है.
उनके अनुसार, अब मित्र देशों की सहायता भी आईएमएफ़ से जुड़ गई है क्योंकि द्विपक्षीय और बहुपक्षीय एजेंसियों की विश्वसनीयता भी आईएमएफ़ के रिसर्च के बाद ही बढ़ती है.
उनके अनुसार, आईएमएफ़ के हस्तक्षेप से विश्वास बढ़ने का संबंध इस वजह से है कि यह अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान किसी भी देश की मदद से पहले ये सुनिश्चित करता है कि कोई देश क़र्ज़ कैसे अदा कर पाएगा.
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कैसा है पाकिस्तान का आईएमएफ़ रिकॉर्ड?
डॉक्टर नदीमुल हक़ के मुताबिक़, पाकिस्तान का क़र्ज़ चुकाने का रिकॉर्ड बेहद ख़राब है. उनके मुताबिक़, आईएमएफ़ के साथ पाकिस्तान का यह 23वां कार्यक्रम है, लेकिन अभी तक पाकिस्तान रियायती अंकों के साथ एक दो कार्यक्रम ही पूरा कर पाया है.
नदीम-उल-हक़ के अनुसार, अब पाकिस्तान को युद्ध की स्थिति या अफ़ग़ानिस्तान जैसी परियोजना से ही रियायतें मिल सकती हैं, अन्यथा हमें ख़ुद को सुधारना होगा और अपनी आर्थिक स्थिति को ठीक करना होगा.
उनके मुताबिक़ इस समय यूक्रेन एक ऐसा देश है जिसे युद्ध की वजह से दुनिया रियायतें दे सकती है, लेकिन पाकिस्तान को अब मित्र देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से ऐसी कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए.
लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेज़ की डॉक्टर हादिया माजिद ने बीबीसी को बताया कि 'इस समय हमारा तात्कालिक मिशन चालू खाते के घाटे को कम करना है, लेकिन अब दीर्घकालिक योजना पर अमल करते हुए अर्थव्यवस्था को बेहतर करना होगा और इसके लिए चीन जैसे मॉडल को फ़ॉलो करना होगा.'
उनके अनुसार, चीन ने जनसंख्या, कृषि और तकनीक के सहारे अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूती से खड़ा किया है. डॉक्टर हादिया के मुताबिक़, पाकिस्तान को अपना निर्यात बढ़ाना होगा और आयात कम करना होगा.
डॉक्टर हादिया के मुताबिक़, मित्र देशों को लग रहा होगा कि पता नहीं पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था पर कंट्रोल कर पाएगा या नहीं, ऐसे में वो क़र्ज़ कैसे दें.
उनके मुताबिक़, मित्र देशों को यह देखना भी चाहिए क्योंकि बिना किसी भरोसे के लेन-देन नहीं हो सकता.
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आर्थिक संकट से निपटने में मदद मिलेगी?
दूसरी ओर, जेनेवा सम्मेलन में पाकिस्तान के लिए दस अरब डॉलर से अधिक की सहायता की घोषणा की गई है, जो पाकिस्तान को अगले तीन वर्षों में मिल सकेंगे.
अब अगर पाकिस्तान के लिए मदद के एलान की बात करें तो मिफ़्ताह इस्माइल और सूचना मंत्री मरियम औरंगज़ेब ही नहीं बल्कि इसहाक़ डार भी काफ़ी उत्साहित नज़र आ रहे हैं.
मदद के इन वादों पर जब एक यूज़र ने ट्विटर पर लिखा, 'जेनेवा डोनर्स कॉन्फ्रेंस पाकिस्तान को वेंटिलेटर से हटा देगी इंशाअल्लाह और बहुत जल्द सब कुछ बेहतर हो जाएगा', तो इस ट्वीट को इसहाक़ डार ने भी रिट्वीट किया.
पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री मिफ़्ताह इस्माइल इसे अच्छी घटना बता रहे हैं. बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह सहायता पाकिस्तान की उम्मीदों से कहीं ज़्यादा है और अब पाकिस्तान को आईएमएफ़ के साथ मामले को निपटाने में आसानी होगी.
हालांकि, उनके मुताबिक़ आईएमएफ़ के प्रोग्राम को पूरा करना अभी भी ज़रूरी होगा और कड़े फ़ैसले लेने होंगे.
वित्त मंत्री इसहाक़ डार और पूर्व वित्त मंत्री मिफ़्ताह इस्माइल की ख़ुशी अपनी जगह है, लेकिन अर्थशास्त्री अभी भी इन घोषणाओं से संतुष्ट नहीं हैं.
उनका कहना है कि ये घोषणाएं सिर्फ़ वादे हैं और इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को तुरंत कोई फ़ायदा नहीं होगा.
इन विशेषज्ञों के मुताबिक़, जब तक आईएमएफ़ पाकिस्तान के साथ समझौता नहीं करता और उसे किसी अनुशासन में नहीं लाता, तब तक यह सहायता मिलना मुश्किल होगा.
मिफ़्ताह इस्माइल के मुताबिक़, जब देश और संस्थान इतने बड़े मंच पर कोई घोषणा करते हैं तो उस पर अमल भी किया जाता है. हालांकि उनके मुताबिक़ एशियन बैंक और वर्ल्ड बैंक ये घोषणाएं पहले ही कर चुके थे जिन्हें सम्मेलन में दोहराया गया है.
डॉक्टर नदीमुल हक़ का कहना है कि 'अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के कुछ शिष्टाचार होते हैं और ऐसे मंचों पर मीठी-मीठी बातें की जाती हैं और ऐसी घोषणाएं की जाती हैं कि हां बेशक हम इतनी मदद करने को तैयार हैं. हालांकि, उनके अनुसार अमली तौर पर उन पर कम ही अमल होता है.'
अपनी बात के तर्क में, उन्होंने कहा कि साल 2010 की बाढ़ के बाद, पाकिस्तान को फ़्रेंड्स ऑफ़ पाकिस्तान से सहायता के वादे मिले, लेकिन सहायता केवल 15 मिलियन डॉलर तक ही मिल सकी थी.
उनके मुताबिक़ अब जब घोषणाओं की डिटेल सामने आएगी तो शर्तें भी पता चल जाएंगी.
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