नेपाल में हिंदुओं के बीच पीएम मोदी की कैसी है छवि?

- Author, रजनीश कुमार
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, काठमांडू से
नेपाल की राजधानी काठमांडू के बाग बाज़ार में 42 साल के पुष्पराज पौडेल एक किताब की दुकान चलाते हैं. पुष्पराज नेपाल के चितवन शहर के हैं.
पौडेल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक रहे हैं लेकिन अब वह नाराज़गी जताते हैं. पौडेल कहते हैं कि 2014 के अगस्त महीने में जब नरेंद्र मोदी नेपाल आए थे तो यहाँ के लोगों ने उन्हें राजा समझा था लेकिन 2015 में नाकाबंदी लगाकर उन्होंने अपनी छवि ख़राब कर ली.
पौडेल कहते हैं, "मोदी ने हिमालय में ध्यान किया था. वह योगी और ज्ञानी हैं. उनमें एक किस्म की सादगी है. ये चीज़ें अब भी हैं लेकिन नेपाल में अब वह उतने लोकप्रिय नहीं हैं. उनकी लोकप्रियता नाकेबंदी के कारण कम हुई है."
पुष्पराज पौडेल को भारत के सबसे अच्छे प्रधानमंत्री कौन लगते हैं? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी बेहतरीन प्रधानमंत्री थीं. वह बहुत हिम्मती थीं. उतनी हिम्मत पीएम मोदी में नहीं है. इंदिरा गांधी ने दक्षिण एशिया का माथा ऊंचा किया था. पहाड़ियों के बीच अब भी इंदिरा गांधी लोकप्रिय हैं. मोदी को मधेसी अब भी पसंद करते हैं लेकिन पसंद करने वाला सच्चा नेपाली नहीं है. जिन मधेसियों ने नाकेबंदी का समर्थन किया था, वही मधेसी अब भी मोदी को पसंद करते हैं."
पुष्पराज पौडेल की दुकान के बगल में ही 35 साल की धना पोखरेल पिछले 10 सालों से चाय की दुकान चला रही हैं. पीएम मोदी के बारे में पूछने पर धना पोखरेल कहती हैं, "मोदी भारत के लिए अच्छे हैं लेकिन नेपाल के लिए नहीं. नाकाबंदी के कारण हमने बहुत दुख उठाया था. लेकिन एक चीज़ अच्छी लगती है कि मोदी के बाल बच्चे नहीं हैं, इसलिए वह देश के बारे में ज़्यादा सोचते हैं. हमारे केपी ओली के भी बाल बच्चे नहीं हैं और वह भी नेपाल के बारे में ज़्यादा चिंता करते हैं."

मोदी और ओली की तुलना
धना पोखरेल के मन में भारत का नाम सुनते ही कौन सी तस्वीर उभरती है? धना कहती हैं, "ऐसा लगता है कि भारत एक विकसित देश है. नेपाल से बहुत आगे है." हालाँकि धना कभी भारत नहीं आई हैं.
धना पोखरेल को मोदी और ओली दोनों क्यों ठीक लगते हैं? रमेश पराजुली समाज विज्ञानी हैं और वह काठमांडू स्थित मार्टिन चौतारी रिसर्च सेंटर में सीनियर रिसर्चर हैं. रमेश पराजुली से पूछा कि मोदी और ओली की अपनी संतान नहीं हैं, केवल इसलिए धना पोखरेल दोनों को पसंद करती हैं?
इस सवाल के जवाब में पराजुली कहते हैं, "ओली और मोदी की राजनीति में बहुत समानता है. ओली भले ख़ुद को कम्युनिस्ट कहते हैं और मोदी तो घोषित दक्षिणपंथी हैं ही लेकिन दोनों में काफ़ी समानता है. मोदी भारत में जिस राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं, उसमें एकरूपता, बहुसंख्यकवाद और पाकिस्तान के विरोध प्रमुखता से आते हैं. वैसा ही ओली का राष्ट्रवाद में है. ओली भी भारत विरोधी भावना का दोहन करते हैं और नेपाली भाषा के ज़रिए भाषाई राष्ट्रवाद तो भी हवा देते हैं. ओली की पार्टी में उनके सामने कोई नहीं है. उसी तरह से बीजेपी भी मोदी की मुट्ठी में है. यह दक्षिणपंथी मोदी और वामपंथी ओली के बीच ग़ज़ब की समानता है."
रमेश पराजुली भी इस बात को मानते हैं कि 2014 में मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद जब पहली बारे नेपाल आए थे तब काफ़ी लोकप्रिय थे. मोदी का यह नेपाल दौरा काफ़ी चर्चित हुआ था. नेपाली संसद में उन्होंने जिस तरह से नेपाल की संप्रभुता और स्वतंत्रता की बात की थी, उसका वहाँ गर्मजोशी से स्वागत किया गया था. मोदी ने नेपाल को महात्मा बुद्ध का जन्म स्थली बताया था. मोदी की इन बातों पर संसद में ख़ूब तालियां बजी थीं. कम्युनिस्ट नेताओं ने भी ख़ूब प्रशंसा की थी.
नेपाल के पत्रकार बताते हैं कि 2014 के नेपाल दौरे में पीएम मोदी को लेकर आम लोगों में भी गज़ब का उत्साह था. सड़कों पर उनसे हाथ मिलाने के लिए भारी भीड़ जुट जाती थी.

नेपाल में हिन्दुत्व
नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार किशोर नेपाल कहते हैं, "मैं नहीं मानता हूँ कि मोदी को लेकर नेपाल के हिंदुओं में क्रेज कम हुआ है. नेपाल की 85 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी हिंदू है और मोदी मुक्तिनाथ, पशुपतिनाथ, जनकपुर और हिमालय में जाकर ध्यान लगाते हैं तो यहाँ के हिंदुओं को अच्छा लगता है. नेपाल के लोगों ने ऐसा करते अपने राजनेताओं को भी नहीं देखा है. ओली और मोदी में लोग समानता खोजते हैं लेकिन मुझे समानता नहीं दिखती है. ओली एक मौकापरस्त हैं लेकिन मोदी हिंदूवाद को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं."
नेपाल किशोर कहते हैं, "मोदी ने नेपाल के हिंदूवादी सेंटिमेंट का दोहन किया है और उसमें कामयाब रहे हैं. कई लोग कहते हैं कि मोदी की लोकप्रियता पहाड़ियों और मधेसियों में विभाजित है. लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है. नेपाल में पहाड़ी हों या मधेसी, हैं तो दोनों हिंदू ही. नेपाल के कई राजनेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दरबार में जाकर हाजिरी लगाते हैं. वो चाहे पहाड़ी हों या मधेसी. इसी बार मोदी लुंबिनी गए तो उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ."
नेपाल में 2008 में लंबे आंदोलन के बाद राजशाही ख़त्म हुई और लोकतंत्र स्थापित हुआ था. सितंबर 2015 में नेपाल ने अपना नया संविधान लागू किया और नेपाल हिंदू राष्ट्र से सेक्युलर स्टेट बना. बीजेपी नेपाल की हिंदू राष्ट्र वाली पहचान को ख़त्म करने का विरोध करती थी.
26 मई, 2006 को बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था, "नेपाल की मौलिक पहचान एक हिंदू राष्ट्र की है और इस पहचान को मिटने नहीं देना चाहिए. बीजेपी इस बात से खुश नहीं होगी कि नेपाल अपनी मौलिक पहचान माओवादियों के दबाव में खो दे."
साल 2020 में बीबीसी हिंदी को दिए इंटरव्यू में नेपाल के तत्कालीन विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली ने कहा था कि भारत और नेपाल में भले बहुसंख्यक आबादी हिंदू है लेकिन द्विपक्षीय संबंधों में धर्म और संस्कृति का घालमेल नहीं किया जा सकता है.

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अखंड भारत
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के छात्र नेता शिशिर वश्याल काठमांडू में त्रिभुवन यूनिवर्सिटी के रत्न राज्यलक्ष्मी कैंपस से अर्थशास्त्र में मास्टर की पढ़ाई कर रहे हैं.
पीएम मोदी को लेकर वह कहते हैं, "नरेंद्र मोदी अपने मुल्क के लिए ही ठीक नहीं हैं तो नेपाल के लिए क्या ठीक होंगे. मुझे लगता है कि मोदी भारत की तरह नेपाल में भी धर्म की राजनीति की ज़मीन मज़बूत करना चाहते हैं. मुझे लगता है कि मजहब के मामले में नेपाल भारत से ज़्यादा सहिष्णु है. लेकिन बीजेपी और आरएसएस नेपाल में भी अपनी राजनीतिक ज़मीन ऊर्वर करने की कोशिश कर रहे हैं."
शिशिर वश्याल कहते हैं, "आरएसएस और नरेंद्र मोदी की नीति में अखंड भारत की परिकल्पना है. ये लोग नेपाल को भी अखंड का भारत ही हिस्सा मानते हैं. लेकिन नेपाल एक संप्रभु राष्ट्र है और उसकी स्वतंत्रता किसी भी बड़े मुल्क से कम नहीं है."

नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री उपेंद्र यादव इस बात से इनकार करते हैं कि नेपाल में पीएम मोदी की लोकप्रियता 2015 की नाकाबंदी के बाद कम हुई है. उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, "ऐसा बिल्कुल नहीं है. नाकाबंदी संविधान में भेदभाव के कारण लगी थी. संविधान में मधेसियों से भेदभाव को लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ख़ुश नहीं थे. मुझे लगता है कि भारत या नरेंद्र मोदी का विरोध वही लोग करते हैं तो अल्ट्रा लेफ़्ट हैं. बाक़ी पहाड़ी हों या मधेसी पीएम मोदी अब भी लोकप्रिय हैं. भारत विरोधी कम्युनिस्टों को भले नरेंद्र मोदी नहीं सुहाते हैं."
भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट से रिटायर हुए कुल बहादुर केसी नेपाल के बुटवल में रहते हैं. वह नेपाल में भारतीय सेना से रिटायर सैनिकों के संगठन संयुक्त भूतपूर्व सैनिक कल्याणकारी महासंघ के अध्यक्ष हैं. मैंने कुल बहादुर केसी से पूछा कि नेपाल में रिटायर फौजियों के बीच भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की छवि कैसी है?
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "रिटायर फौजियों के बीच नरेंद्र मोदी की छवि बहुत अच्छी है. उन्होंने भारत और हिंदुओं को एक पहचान दिलाई है. हिंदू धर्म का उन्होंने संरक्षण किया है. नेपाल में भी आते हैं तो पीएम मोदी मुक्तिनाथ, पशुपतिनाथ, जनकपुर और लुंबिनी में जाकर ध्यान लगाते हैं. नेपाल में पीएम मोदी की यह श्रद्धा भक्ति हिंदुओं को अच्छी लगती है."
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'जब पीएम मोदी ने पूछा ये हमें पसंद क्यों नहीं करते हैं?'
नेपाल में अप्रैल 2015 में जब भूकंप आया तो भारत ने तत्काल मदद पहुँचाई थी. भूकंप भयावह था. नौ हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी. छह घंटों के भीतर भारत का सैन्य एयरक्राफ़्ट मदद सामग्री लेकर नेपाल पहुँच गया था. भूकंप के कुछ हफ़्तों तक भारत ने हर स्तर पर मदद पहुँचाई थी. भारत ने नेपाल को तत्काल 6.5 करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद दी थी. इसके अलावा भारत ने भूकंप के बाद तबाही से उबरने में एक अरब डॉलर दिया था.
लेकिन इस समर्थन के बावजूद नेपाल में भारत के इरादों पर शक किया गया. 2015 में काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास में भारत के तत्कालीन राजदूत रंजित राय ने अपनी किताब 'काठमांडू डिलेमा रीसेटलिंग इंडिया-नेपाल टाइज़' में लिखा है, "काठमांडू में अफ़वाह उड़ी कि भारतीय सेना नेपाल में फँसे भारतीयों को मदद कर रही है न कि नेपालियों को. इसके अलावा यह भी कहा जाने लगा कि भारत ने जो राहत सामग्री पहुँचाई है, वो इस्तेमाल लायक नहीं है. नेपाल की सरकार भारत की मदद को लेकर चुप रही और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के बारे में सार्वजनिक रूप से कुछ भी नहीं कहा."
तब सोशल मीडिया पर हैशटैग 'इंडियन मीडिया गो बैक' और 'बैक ऑफ इंडियन मीडिया' ट्रेंड कर रहा था. रंजीत राय कहते हैं कि उस वक़्त भारतीय मीडिया की भूमिका ठीक नहीं थी. रंजीत राय ने बीबीसी से कहा, "भारतीय मीडिया में ऐसे दिखाया जा रहा था कि सब कुछ भारत ही कर रहा है और नेपाल कुछ भी नहीं कर रहा है. ऐसा बिल्कुल नहीं था. नेपाल भी अपनों के लिए जी जान से लगा था."
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नेपाल में भूकंप के बाद रंजीत राय नई दिल्ली आए और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके आवास लोक कल्याण मार्ग पर मुलाक़ात की. रंजीत राय ने अपनी किताब में लिखा है, "इस मुलाक़ात में पीएम मोदी ने पहला सवाल पूछा- हमने नेपाल में इतना कुछ किया लेकिन वहाँ से ऐसी प्रतिक्रिया आ रही है. वे हमें पसंद क्यों नहीं करते हैं?"
रंजीत राय ने इस सवाल का जवाब अपनी किताब में बहुत विस्तार से दिया है. रंजीत राय ने अपनी किताब में लिखा है, "नेपाल के राजदूत के शुरुआती दौर में मेरी मुलाक़ात नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के सीनियर नेता माधव कुमार नेपाल से उनके आवास कोटेश्वर में हुई. हमलोग स्वादिष्ट मालदा आम खाते हुए हिंदी में बात कर रहे थे. माधव ने मेरी तरफ़ देखते हुए कहा कि भारत दो देशों के बीच भाई-भाई के रिश्ते की बात क्यों कर रहा है? ऐसे में संबंध में हमेशा कोई बड़ा भाई होता है और कोई छोटा भाई. हम भारत से दोस्ती का रिश्ता चाहते हैं. जहाँ बराबरी का रिश्ता हो. न कम और ज़्यादा."
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नेपाल में पहचान का संकट
रंजीत राय ने लिखा है, "माधव कुमार नेपाल के दिमाग़ में शायद भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बात रही होगी. सुषमा स्वराज ने कहा था कि भारत ने बिग ब्रदर की तरह नहीं बल्कि एल्डर ब्रदर की तरह मदद की थी. उन्होंने कहा था कि अंग्रेज़ी के बिग ब्रदर का मतलब हेकड़ी दिखाने वाला होता है जबकि एल्डर ब्रदर का मतलब ख़याल रखने वाला होता है. सुषमा स्वराज ने ये बात नेपाल के प्रति प्रेम और स्नेह से कही थी. लेकिन नेपालियों ने इसका ग़लत मतलब निकाला."
पीएम मोदी को दिए जवाब के बारे में रंजीत राय ने बीबीसी हिंदी से कहा कि नेपाल अपनी पहचान को लेकर संघर्ष कर रहा है. नेपाल ख़ुद को दुनिया के सामने कैसे रखे इसे लेकर अपना स्वतंत्र वजूद चाहता है.
रंजीत राय कहते हैं, "नेपाल अपनी पहचान बुद्ध से कर सकता है लेकिन बुद्ध की विरासत भारत से साझी है. नेपाल अपनी पहचान एवरेस्ट से कर सकता है लेकिन वो भी चीन से साझा है. ऐसे भारत के कोई नेता बुद्ध को भारत का बता देता है तो नेपाली चिढ़ जाते हैं."
अगस्त 2020 में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री के वेबिनार में बुद्ध को महानतम भारतीय बताया था. एस जयशंकर के इस बयान को लेकर नेपाल में भारी विरोध-प्रदर्शन हुआ था. नेपाल के बुद्धिजीवियों, ब्यूरोक्रेट से लेकर एक पूर्व प्रधानमंत्री तक ने इसका विरोध किया. नेपाल के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया और कहा कि यह सर्वविदित है कि गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी में हुआ था और लुंबिनी नेपाल में है.

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रंजीत राय कहते हैं कि नेपाल के लोग अपनी राष्ट्रीय पहचान बुद्ध से भी जोड़ते हैं. राय कहते हैं, "बुद्ध और माउंट एवरेस्ट पर कोई भारतीय दावा करता है तो नेपाली नाराज़ हो जाते हैं. नेपाल के लोगों को भारत पर निर्भरता पसंद नहीं है लेकिन नेपाल तीन तरफ़ से भारत से घिरा है. सांस्कृतिक पहचान के ममाले में भी नेपाली ख़ुद को भारत से अलग दिखाना चाहते हैं. हिंदी को लेकर भी नेपाल में इसी तरह का विरोध है. नेपाल के लगभग सभी नेता हिंदी समझते और बोलते हैं लेकिन सार्वजनिक रूप से हिंदी बोलने से परहेज करते हैं. यहां कि नेपाल के घरों में हिन्दी सिनेमा और टीवी प्रोग्राम काफ़ी लोकप्रिय हैं लेकिन लोगों को लगता है कि हिंदी उनकी अपनी पहचान को खा जाएगी."
नेपाल के पूर्व उपराष्ट्रपति परमानंद झा कहते हैं कि पहले नेपाल में नरेंद्र मोदी को लेकर उम्मीदें थीं लेकिन दोनों देशों के रिश्ते में कोई सुधार नहीं हुआ. परमानंद झा कहते हैं 2014 में जब नरेंद्र मोदी आए थे तो लगा था कि अब हालात बदल जाएंगे पर ऐसा नहीं हुआ.
भारत में नेपाल के राजदूत रहे दीप कुमार उपाध्याय कहते हैं कि नरेंद्र मोदी के आने के बाद नेपाल में माइक्रोमैनेजमेंट वाली चीज़ें रुकी हैं. दीप कुमार उपाध्याय कहते हैं कि नेपाल की वामपंथी राजनीति भारत विरोधी लहर को हवा देती है, ऐसे में वहां के शासक भी निशाने पर आ जाते हैं.
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