अग्निपथ को लेकर नेपाल में बढ़ा संकट, अग्निवीर भर्ती रैली टालनी पड़ सकती है

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- Author, रजनीश कुमार
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, काठमांडू, नेपाल से
भारतीय सेना में जवानों की नई भर्ती योजना अग्निपथ को लेकर नेपाल की सरकार ऊहापोह में है.
इसी साल नेपाल में नवंबर महीने के आख़िर में चुनाव होने वाले हैं और इस बीच अग्निपथ का मुद्दा शेर बहादुर देउबा सरकार के लिए सिर दर्द बना हुआ है.
सरकार कोई भी ऐसा क़दम नहीं उठाना चाहती है, जिससे चुनाव में नुक़सान उठाना पड़े.
दरअसल, अग्निपथ योजना के तहत ही नेपाल के गोरखा नौजवानों को भारतीय सेना में भर्ती किया जाना है. इसके लिए गोरखा रिक्रूटमेंट डिपो गोरखपुर और दार्जिलिंग ने नेपाल के बुटवल और धरान में भर्ती रैली की तारीख़ की भी घोषणा कर दी है.
बुटवल में 25 अगस्त से सात सितंबर तक नेपाली गोरखाओं के लिए भर्ती रैली होनी थी और धरान में 19 से 28 सितंबर तक. लेकिन अब यह तारीख़ टलने जा रही है.
काठमांडू में भारतीय दूतावास के अनुसार, भारत ने नेपाल की सरकार से इन तारीख़ों पर अनुमति मांगी थी. नेपाल की सरकार ही भर्ती रैली स्थल पर सुरक्षा मुहैया कराती है.

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नेपाल की चिंताएं
भारत की ओर से इसे लेकर नेपाल के विदेश मंत्रालय को एक पत्र भेजा गया था लेकिन नेपाल की ओर से अब तक कोई जवाब नहीं आया है. दूसरी तरफ़ भर्ती रैली की तारीख़ क़रीब आ गई है. ऐसे में नेपाल सरकार पर भी दबाव है कि वह जल्दी कोई फ़ैसला ले.
मंगलवार को नेपाल के विदेश मंत्रालय की प्रधानमंत्री देउबा के साथ इस मुद्दे पर बैठक हुई. बीबीसी हिन्दी से प्रधानमंत्री देउबा के विदेश मामलों के सलाहकार अरुण कुमार सुबेदी ने कहा है कि इसे लेकर नेपाल सरकार भारत को औपचारिक जवाब देने जा रही है.
सुबेदी ने कहा, ''भारतीय सेना में नेपाली गोरखा 1947 में ब्रिटेन, भारत और नेपाल के बीच हुई त्रिपक्षीय संधि के तहत भर्ती होते हैं. अभी भारत सरकार ने अपनी सेना में भर्ती नीति में जो बदलाव किया है, उससे संधि का कोई उल्लंघन नहीं होता है लेकिन हमारी कुछ चिंताएं हैं. यह बात सही है कि संधि में सेवा अवधि का ज़िक्र नहीं है. लेकिन हमारी चिंता है कि चार साल भारतीय सेना में रहने के बाद जो नौजवान वापस आएंगे, वे क्या करेंगे? उनके पास फौज की आधुनिक ट्रेनिंग होगी और ऐसे में इस बात की आशंका है कि उनकी ट्रेनिंग का कोई दुरुपयोग ना कर ले.''
सुबेदी ने कहा, ''चार साल बाद भारतीय सेना से ये नौजवान वापस आएंगे तो यहाँ के हिंसक गुट इनका दुरुपयोग कर सकते हैं. ऐसे में नेपाल के लिए एक नई मुश्किल खड़ी हो सकती है. हम भारत सरकार से अनुरोध करने जा रहे हैं कि नेपाल की चिंताओं को देखने की ज़रूरत है.''
भारतीय सेना ने जो भर्ती रैली की तारीख़ निकाली है, उसका क्या होगा? इस सवाल के जवाब में सुबेदी ने कहा कि यह तारीख़ टल सकती है. काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास से इस बारे में पूछा तो दूतावास ने कहा कि अभी तक उन्हें कोई औपचारिक जवाब नहीं मिला है.

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क्या त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन हुआ?
नेपाल की विपक्षी पार्टियां भी अग्निपथ के मुद्दे पर देउबा सरकार को घेर रही हैं. नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार में विदेश मंत्री रहे प्रदीप ज्ञवाली ने बीबीसी से कहा कि अग्निपथ योजना 1947 की त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन है.
प्रदीप ज्ञवाली ने कहा, ''भारत सरकार इस बात के लिए स्वतंत्र है कि सेना में भर्ती की नीति अपने हिसाब बनाए लेकिन हम अग्निपथ के मौजूदा स्वरूप को स्वीकार नहीं करेंगे. 1947 की त्रिपक्षीय संधि के बाद जिन सेवा शर्तों और सेवा अवधि के साथ नेपाल के नागरिकों को भारतीय सेना में भर्ती किया जा रहा था, उसे अचानक से बदलना इस संधि का उल्लंघन है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) इसे स्वीकर नहीं करेगी.''
प्रदीप ज्ञवाली ने कहा, ''हमारी पार्टी चाहती है कि भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं की भर्ती नीति की समीक्षा होनी चाहिए. हमारे नागरिक किसी दूसरे देश की सेना में जाकर किसी तीसरे देश से क्यों लड़ेंगे? हम भारत से भी अच्छा संबंध चाहते हैं और चीन से भी. पाकिस्तान से भी हमारा द्विपक्षीय संबंध है. हमारे लोग भारत के लिए चीन और पाकिस्तान से क्यों लड़ें? दूसरी तरफ़ एक सवाल यह भी है कि भारत से करोड़ों डॉलर की पेंशन और सैलरी आती है. लोगों को रोज़गार मिलता है. इन दोनों पक्षों के आधार पर त्रिपक्षीय संधि की समीक्षा की ज़रूरत है.''

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चुनाव में बन सकता है मुद्दा
नेपाल के चुनाव में अग्निपथ एक अहम मुद्दा बन सकता है. इसलिए देउबा सरकार इस मसले पर आगे बढ़ने की तुलना में इसे अभी ठंडे बस्ते में डालना चाहती है. नेपाल के पूर्व रक्षा मंत्री और केपी शर्मा ओली के पार्टी के वरिष्ठ नेता भीम रावल ने बीबीसी से कहा कि अग्निपथ को उनकी पार्टी स्वीकार नहीं करेगी.
उन्होंने कहा, ''भारत ने यह तब्दीली अचानक से कर दी और नेपाल से सहमति तक नहीं ली. यह त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन है. हम पैसों के लिए अपने नागरिकों को जोखिम में नहीं डाल सकते. हमने यह मुद्दा संसद में भी उठाया था. हम प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा कह रहे हैं कि अग्निपथ के मामले में झुकने की ज़रूरत नहीं है.''
देउबा सरकार में रक्षा मंत्री रहे मिनेंद्र रिजाल ने कहा कि ओली की पार्टी सत्ता में रहती है तो कुछ और बोलती है और सत्ता से बाहर रहने पर क्रांतिकारी बनती है. मिनेंद्र रिजाल ने बीबीसी हिन्दी से कहा, ''ओली सरकार को पास दो तिहाई बहुमत था. सत्ता में रहने के दौरान क्यों नहीं त्रिपक्षीय संधि को रद्द कर दिया था. ओली की पार्टी विपक्ष में रहकर भारत का विरोध करती है और सत्ता में आती है, भारत से कुछ और संबंध रखती है.''

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नेपाल में भारत के राजदूत रहे रंजित राय से पूछा कि क्या अग्निपथ योजना से 1947 की त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन हो रहा है? उन्होंने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं है.
रंजित राय ने कहा, ''त्रिपक्षीय संधि में इस बात पर सहमति ज़रूर थी कि जो सुविधा और सेवा शर्तें भारतीय नागरिकों को सेना में मिलेगी वही नेपालियों को भी मिलनी चाहिए. अग्निपथ योजना में भी नेपालियों से कोई भेदभाव नहीं है. ऐसे में यह कहना कि त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन है, यह बात बिल्कुल सही नहीं है.''
शेर बहादुर देउबा की सरकार पुष्प कमल दाहाल प्रचंड की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के समर्थन से चल रही है. प्रचंड की पार्टी भी अग्निपथ को लेकर सहमत नहीं है.
प्रचंड भी चाहते हैं कि अग्निपथ योजना के मौजूदा स्वरूप को नेपाल में स्वीकार नहीं किया जाए. अरुण कुमार सुबेदी ने भी इस बात से सहमति जताई है कि अग्निपथ मामले में गठबंधन के साथियों का भी दबाव है.
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