रूस के कब्जे वाले यूक्रेनी शहरों में खाने-पीने को तरस रहे हैं लोग

    • Author, डायना कुरिश्को
    • पदनाम, बीबीसी यूक्रेन सेवा

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक रूसी सैन्य टुकड़ियों ने कई शहरों और गाँवों पर कब्जा कर लिया है.

और इन इलाकों में फंसे लोग मदद की गुहार लगा रहे हैं.

बमबारी के साथ-साथ इन स्थानों पर रहने वाले लोग पर सर्द मौसम और खाद्य संकट का ख़तरा मंडरा रहा है.

इस वजह से यूक्रेन के मारियुपोल शहर और राजधानी कीएव के पश्चिम और उत्तर में बंसे गाँवों में एक भयानक मानवीय सकंट खड़ा होता दिख रहा है.

बीबीसी यूक्रेन सेवा से बात करते हुए यहां रह रहे लोगों ने बताया है कि उनके ऊपर इस समय क्या बीत रही है.

मारियुपोल - खाने-पीने का विकट संकट

एना तोखमखची मारियुपोल से आते हर वीडियो और तस्वीरों में अपना घर तलाशने की कोशिश कर रही हैं.

उनकी माँ अभी भी मारियुपोल शहर में फंसी हुई हैं और बीते पांच दिनों में उनसे किसी तरह का संपर्क नहीं हो सका है.

रूसी सैन्य टुकड़ियों ने एक हफ़्ते से ज़्यादा समय से इस शहर पर घेरा डाला हुआ है. और लगातार हो रही बमबारी की वजह से यह शहर तबाही की कगार पर पहुंच गया है.

इस वजह से यहां बिजली, पानी और खाने-पीने के सामान की कमी हो रही है.

बमबारी की वजह से सड़कों की हालत ये है कि लोगों का शहर से निकल पाना मुश्किल होता जा रहा है.

पिछले कुछ दिनों में इस इलाके से लोगों को निकालने की कोशिश की गयी लेकिन मानवीय गलियारों पर हमले होते रहे.

एना फेसबुक पर लिखती हैं, "मैंने वीडियो में अपना घर देखा है. अब तक यह सुरक्षित है. लेकिन मैं नये वीडियो तलाशती रहती हूं. मुझे तसल्ली है कि मेरा घर अब तक ठीक है. मैं उम्मीद करती हूं कि मेरी माँ अभी भी ज़िंदा होंगी. मैं कल्पना कर सकती हूं कि रात में जब बमबारी की आवाज़ें आती होंगी तब वहां रहना कितना डरावना होता होगा."

वह सोशल मीडिया पर मारियुपोल शहर से जुड़े चैट ग्रुप्स में आ रही जानकारी को पढ़ती रहती हैं और वॉलंटियर से अपने घर के बारे में पूछती रहती हैं. लेकिन अब तक उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली है.

हालांकि, वह मारियुपोल शहर में फंसे एक दोस्त से बात कर सकी हैं.

इस बातचीत के बारे में बताते हुए वह कहती हैं, "सिग्नल काफ़ी कमजोर था और लगातार टूट रहा था. मैं मुश्किल से उसकी आवाज़ सुन पा रही थी. वे किसी तरह सड़क पर खाना बनाकर पानी जुटाने की कोशिश करते हुए जीने की कोशिश कर रहे हैं."

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भयानक तस्वीरें

मारियुपोल से जो तस्वीरें आ रही हैं, उनमें शहर में फंसे वाले लोग पानी के लिए लाइन लगाते हुए और उस आग के पास आसपास खड़े दिख रहे हैं जहां कई फ़्लैट में रहने वालों का खाना सामूहिक रूप से बनाया जा रहा है.

इस समय शहर में बर्फ पड़ रही है और चैट रूम में लोग कह रहे हैं कि अगर बर्फ गिर रही है तो पानी मिल सकता है क्योंकि बर्फ को पिघलाया जा सकता है.

मारियुपोल में रह रहीं ओक्साना को किसी तरह फोन का सिग्नल मिल गया जिससे वो अपनी बेटी तातियाना से बात कर सकीं.

वह कहती हैं कि "हम पर लगातार बमबारी हो रही है. यहां पर बिजली और गैस नहीं हैं. लेकिन हम किसी तरह बच्चों और बुजुर्गों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं. और हम खाने के सामान से लेकर पानी सब कुछ साझा कर रहे हैं."

लेकिन वे इस बात पर नाराज़ दिखीं कि कोई भी लूटपाट करने वालों से संघर्ष करने के लिए तैयार नहीं है और यहां पर मदद करने के लिए संगठित ढंग से अभियान नहीं चलाए जा रहे हैं.

ओक्साना का फोन आने से एक दिन पहले मारियुपोल शहर में स्थित रेड क्रॉस के दफ़्तर पर बमबारी की गई थी.

ओक्साना के मुताबिक़, मारियुपोल शहर में सबसे विकट स्थिति मानवीय संकट से जुड़ी है. लोग लगातार बमबारी की वजह से अपने बेसमेंट में रह रहे हैं. और सूचनाओं का आदान-प्रदान और बचने के लिए रास्ता नहीं दिख रहा है.

ओक्साना कहती हैं, "हमें मदद की बहुत ज़रूरत है. हम फंसे हुए हैं. हम चार बार यहां से निकलने की कोशिश कर चुके हैं और चारों बार ये अभियान रद्द कर दिए गए हैं. हम आपसे मदद की भीख मांग रहे हैं."

इस शहर में फंसे लोग द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान लेनिनग्राड की घेराबंदी को याद करते हैं जब जर्मन सैनिकों ने 28 महीनों तक शहर को घेरकर रखा था.

स्थानीय लोग कहते हैं कि इस समय हालात लेनिनग्राड जैसे हैं.

अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन ने भी मैटरनिटी हॉस्पिटल पर बमबारी के बाद इसकी ऐसे ही तुलना की थी.

बीती 9 मार्च को एक बार फिर मारियुपोल में फंसे लोगों को शहर से बाहर निकालने की कोशिश की गयी थी. लेकिन ये अभियान भी रद्द कर दिया गया. क्योंकि बसों को शहर के अंदर घुसने नहीं दिया गया.

दोनेत्स्क क्षेत्रीय सैन्य प्रशासन के प्रमुख पावलो किरिलेंको कहते हैं, "मारियुपोल अभी भी घेरे में है. रूस आम लोगों को शहर से बाहर निकलने और रोजमर्रा की ज़रूरत की चीजों को शहर में जाने नहीं दे रहा है. यह एक नरसंहार है जो कि केंद्रीय यूरोप में 21वीं सदी में हो रहा है."

इसी दिन मारियुपोल शहर में एक मैटरनिटी अस्पताल और बच्चों के अस्पताल पर बमबारी हुई थी जिसमें 17 लोग जख्मी हुए थे और इनमें बच्चे भी शामिल हैं.

इस समय ये कहना मुश्किल है कि मारियुपोल में हुई बमबारी में कुल कितने लोग मारे गए हैं. लेकिन दर्जनों लोगों के मरने की आशंकाएं जताई जा रही हैं.

राष्ट्रपति वोल्दोमिर ज़ेलेंस्की ने इसे क्रूरता की संज्ञा दी है.

दिमित्रवका - दस दिनों से बेसमेंट में हैं लोग

दिमित्रवका यूक्रेन की राजधानी कीएव के पश्चिम में झ्योतमिर हाइवे पर स्थित है जो कि रूसी सेना द्वारा नियंत्रित क्षेत्र में आता है.

हालांकि, ये गांव बचाव अभियान के लिए बनाए जा रहे गलियारों में शामिल नहीं है. लेकिन यहां से इरपिन, बुका और वोरज़ेल तक पहुंचने के लिए लोगों को खेतों से होते हुए बमबारी के बीच कई किलोमीटर लंबा सफर करना पड़ता है और वो भी रूसी चैक प्वॉइंट से गुज़रते हुए.

कात्या कीएव में रहती हैं. कुछ दिन पहले उनके घर के गार्डन में एक बम गिरा जिसे उनके घर वाले कई सालों से बना रहे थे.

कात्या फेसबुक पर लिखती हैं, "रूसी मिसाइल के इस धमाके में घर की बाड़, गैराज़ और आंशिक रूप से घर की छत को नुकसान पहुंचा है. मेरी माँ अभी भी उसी घर में रहती हैं. उनके पास बिजली और पानी नहीं है. संपर्क करने के लिए कनेक्शन उपलब्ध नहीं है. और वह सर्दियों में खाना बनाने में सक्षम नहीं हैं."

रूसी टैंक गाँवों में घुस रहे हैं, सैनिक घर लूट रहे हैं और बाड़ के साए में खड़े होकर उनकी बातचीत सुनी जा सकती है.

वे लोग जो बाहर जाने की हिम्मत कर रहे हैं, उन्हें गोली मारी जा रही है. कात्या का परिवार और उनके पड़ोसी बीते दस दिनों से अपने बेसमेंट में छिपे हुए हैं.

पांच दिनों तक उनके पास हीटिंग और बिजली की व्यवस्था नहीं थी. पानी निकालने का पंप भी बिजली से चलता है, इसलिए पानी की किल्लत हो रही है.

यहां एक स्टोव है लेकिन वे उसे इस्तेमाल करने से डर रहे हैं. उन्हें डर है कि कहीं इससे उनकी लोकेशन का पता न चल जाए. उनके पास खाने-पीने का सामान ख़त्म हो रहा है और खाना बनाना असंभव बना हुआ है.

पड़ोस में रहने वाले एक परिवार के पास जब खाना ख़त्म हो गया तो उन्होंने निकलने की कोशिश की. लेकिन इसके बाद से उनसे संपर्क नहीं हो सका है. कोई नहीं जानता कि उनके साथ क्या हुआ है.

कात्या की माँ कभी-कभी उन्हें फोन करके बताती हैं कि वे ज़िंदा हैं. लोग बुरी तरह डरे हुए हैं और उन्हें हर समय बमबारी की आवाज़ें सुनाई पड़ती हैं.

कात्या को ये समझ नहीं आ रहा है कि वह अपने परिवार को इस गाँव से बाहर कैसे निकाल सकती हैं. ये जगह मानवीय गलियारों से काफ़ी दूर है और कीएव क्षेत्र के मानवीय गलियारे से मदद मिलना संभव नहीं है.

बीती 9 मार्च को बुका और गोस्तेमल से लोगों को निकालने के लिए चलाए गए बचाव अभियान असफल रहे.

कात्या फेसबुक पर लिखती हैं, "मैं रो रही हूं. मैं बेबस हूं. मुझे नहीं पता कि मैं उनकी मदद कैसे कर सकती हूं. माँ, मैं आपको बहुत प्यार करती हूं. आप ये शब्द नहीं पढ़ पाएंगी क्योंकि वहां इंटरनेट मौजूद नहीं है. लेकिन इसके बिना भी आपको पता है कि मैं आपसे कितना प्यार करती हूं."

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कीएव क्षेत्र - युद्ध की डायरी

तातियाना (सुरक्षा कारणों से नाम बदला गया) एक ऑनलाइन डायरी में कीएव के पास स्थित गाँवों में रहने वाले लोगों के बारे में जानकारी दर्ज कर रही हैं.

वह अपने एक दोस्त को मैसेज़ भेजती हैं जो कि उन्हें फेसबुक पर प्रकाशित करता है.

बीती 9 मार्च को नीचे लिखी पोस्ट प्रकाशित हुई -

"अब तक हम बेहद शांति के साथ घर के कामों जैसे लकड़ी बीनना, कुएँ से पानी निकालने और खाना पकाने जैसे कामों में लगे हुए हैं. युद्ध के दूसरे दिन से यहां बिजली नहीं है. हमारे गाँव में सब लोग मिल-जुलकर रह रहे हैं. सब लोग एकदूसरे के साथ सब कुछ साझा कर रहे हैं. मुझे पता है कि पूरे देश में ऐसा ही हो रहा होगा. इस तरह के मुल्क को जीतना आसान नहीं होगा."

तातियाना ने 8 मार्च को लिखा कि वह बर्फ और धूप देखकर ख़ुश हुईं "क्योंकि, इससे ज़्यादा पानी, बिजली और सुरक्षा मिलेगी."

कभी-कभी ये संदेश काफ़ी संक्षिप्त होते हैं - "ज़िंदा हैं, फोन थोड़ा चार्ज किया है."

कभी वह लिखती हैं - "आवाज़ सुनकर ख़तरे का अंदाजा लगाने के लिए रात में बेहतर ढंग से देखने और सुनने की क्षमता विकसित कर ली है."

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खेरसोन - सामान लेने के लिए घंटों लंबी कतारें

रूसी कब्जे के बाद से यूक्रेन के खेरसोन शहर के कुछ इलाकों में गैस, बिजली और हीटिंग उपलब्ध नहीं थी. और कुछ लोगों के पास खाने-पीने का सामान भी नहीं था.

खेरसोन में रहने वाले एंड्रीय (सुरक्षा कारणों से नाम बदला गया) युद्ध से पहले एक आईटी विशेषज्ञ थे लेकिन इंटरनेट कनेक्शन से जुड़ी समस्याओं की वजह से वह काम नहीं कर रहे हैं. इन दिनों वह खाने-पीने का सामान लेने के लिए कतार में खड़े होते हैं.

वह कहते हैं, "मैं एक घंटे तक सेव खरीदने के लिए लाइन में खड़ा रहा. इसके बाद ढाई घंटे तक आलू खरीदने की लाइन में खड़ा रहा. इसके बाद जमी हुई मछली ख़रीदने में मुझे दो घंटे का वक़्त लगा. मैं घर से सुबह 9 बजे निकला था लेकिन दोपहर के तीन बजे तक वापस आया."

एंड्रीय बताते हैं कि सुपरमार्केट में आपको पिस्ता, आइसक्रीम और नोरी की पत्तियां मिलती हैं. कभी-कभी वहां दूध मिल जाता है. और लोगों को पास ही में स्थित चोर्नोबायिव पॉल्ट्री फार्म से मुर्गे दिए गए हैं.

लेकिन रूसी आक्रमण के बाद से मुर्गों को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है.

एंड्रीय कहते हैं, "हम शायद बचे-खुचे मुर्गों को खा लेंगे. लेकिन उसके बाद क्या होगा?"

वह कहते हैं कि दुश्मन देश की सेना जान बूझकर लोगों को मारने और रूस की ओर से मानवीय मदद लेने के लिए विवश करने के लिए पॉल्ट्री फार्म में काम रुकवा रही है.

हाल ही में खेरसोन में कई ट्रकों में लोगों की ज़रूरत का सामान लाया गया है लेकिन खेरसोन के लोगों ने ये सामान स्वीकार नहीं किया है.

एंड्रीय कहते हैं, "रूसी खाना देते हैं लेकिन अब तक कुछ बेघर लोगों ने ही उनसे खाने का सामान लिया है. लोग यूक्रेन की ओर से आने वाली मदद का इंतज़ार कर रहे हैं."

दर्जनों ट्रक इस क्षेत्र में घुसने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन रूसी सैन्य टुकड़ियां उनका रास्ता रोके हुए हैं.

इतनी ख़राब परिस्थितियों के बावजूद एंड्रीय ने यहां से निकलने का फ़ैसला नहीं किया है. वह अपने घर को लुटते हुए और खेरसोन क्षेत्र को एक अन्य "पिपुल्स रिपब्लिक" बनते नहीं देखना चाहते.

लेकिन वह कहते हैं कि "कौन जानता है कि पांच लाख लोगों की आबादी वाला ये शहर कब तक खाद्य आपूर्ति के बिना रह सकेगा."

(इलोना ग्रोमल्युक और ओलेग क्रिनिश के इनपुट समेत)

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