यूक्रेन संकट: कौन हैं पुतिन के ख़ास सलाहकार जिनके हाथ में है यूक्रेन पर हमले की डोर

क्रेमलिन

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इमेज कैप्शन, यूक्रेन पर हमले से पहले पुतिन ने 30 सदस्यों वाली सिक्यूरिटी काउंसिल की बैठक की. इस बैठक की बातचीत को टीवी पर भी दिखाया गया
    • Author, पॉल किर्बी
    • पदनाम, बीबीसी न्यूज़

दुनिया में इस वक्त ये आभास जा रहा है कि व्लादिमीर पुतिन एक अलग-थलग पड़े व्यक्ति हैं जो रूस की सेना को एक जोखिम भरे युद्ध में धकेल चुके हैं.

और उनके इस क़दम ने रूस की अर्थव्यवस्था को तबाही की ओर धकेल दिया है. राष्ट्र्पति पुतिन हाल के दिनों में केवल दो बार दिखे हैं. दोनों बार वे अपने नज़दीकी सलाहकारों से काफ़ी दूरी बनाते हुए, उनसे मुलाक़ात करते नज़र आ रहे हैं.

रूसी सेना के कमांडर इन चीफ़ होने की वजह से यूक्रेन पर हमले के अंतिम ज़िम्मेदारी उन्हीं की है. लेकिन वे हमेशा अपने वफ़ादार सलाहकारों पर भरोसा करते हैं. इनमें से अधिकतर ने अपने करियर की शुरूआत रूस की सिक्योरिटी सर्विसेज़ या ख़ुफ़िया सेवाओं में की है.

लेकिन प्रश्न ये है कि पुतिन के राष्ट्रपति काल के सबसे अहम मोड़ पर, कौन लोग हैं जो उनके फ़ैसलों पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं. पढ़िए इन्हीं हस्तियों के बारे में-

सर्गेई शोइगु
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अगर कोई ऐसा व्यक्ति है जो पुतिन के निर्णयों को प्रभावित करता है तो वो हैं उनके वफ़ादार सर्गेई शोइगु. वे अरसे से यूक्रेन की सेना को घटाने और पश्चिम की सैन्य ताक़त से रूस की रक्षा की सिफ़ारिश दोहराते रहे हैं.

ये वही व्यक्ति हैं जो पुतिन के साथ साइबेरिया में शिकार खेलने और मछलियां पकड़ने जाते हैं. कई लोग उन्हें पुतिन का उत्तराधिकारी भी मानते हैं.

लेकिन नीचे दी गई इस असाधारण तस्वीर को देखिए. इसमें सर्गेई शोइगु, पुतिन के साथ टेबल के दूसरे कोने पर बैठे हैं. उनके साथ रूस के सेनाध्यक्ष भी हैं. इसे देखकर तो यकीन करना मुश्किल है कि वो पुतिन इतने नज़दीक हैं.

पुतिन

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इमेज कैप्शन, राष्ट्रपति पुतिन अक्सर अकेले दिखते हैं.

ये तस्वीर यूक्रेन पर रूसी चढ़ाई के तीन दिन बाद ली गई थी. इस दौरान यूक्रेन की ओर से कड़ी टक्कर और रूसी सेना के गिरते मनोबल की ख़बरें आनी शुरू हो गई थीं.

युद्ध के मामलों के विशेषज्ञ वेरा मिरोनोवा कहती हैं, "शोइगु को तो कीएव में क़दमताल करते हुए पहुंचना था. वो रक्षा मंत्री हैं और उन्हें ये जंग जीतनी थी."

शोइगु के सिर साल 2014 में क्राइमिया की जीत का सेहरा सजा था. वे रूस की मिलिट्री इंटेलिजेंस एजेंसी के इन-चार्ज भी रह चुके हैं. इस यूनिट पर ब्रिटेन में 2018 में और साइबेरिया में 2020 में नर्व एजेंट पॉइज़निंग के आरोप भी लग चुके हैं.

वेरा मिरोनोवा कहती हैं, "क्लोज़ अप में देखें तो तस्वीर बहुत ही दुख भरी लगती है. ऐसी कि जैसे कोई मर गया हो."

वेलेरी गेरासिमोव (बाएं) और रक्षा मंत्री सर्गेई सोइगु

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इमेज कैप्शन, वेलेरी गेरासिमोफ़ (बाएं) और रक्षा मंत्री सर्गेई सोइगु ने पुतिन के रणनीतिक निर्णयों में अहम भूमिका निभाई है.

इस तस्वीर को देखकर भले ही कुछ और लगे लेकिन रूसी सिक्योरिटी एक्सपर्ट आंद्रेई सोल्डाटोफ़ मानते हैं कि रक्षा मंत्री अब भी पुतिन से सबसे बड़े विश्वासपात्र हैं.

सोल्डाटोफ़ कहते हैं, "शोइगु सिर्फ़ सेना के ही इन-चार्ज नहीं हैं, वे विचारधारा के भी पक्के हैं. और रूस में विचारधारा का अर्थ है इतिहास के साथ रहना. वे इतिहास के साथ हैं."

वैलेरी गिरासिमोफ़
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रूसी सेना के प्रमुख गिरासिमोफ़ को यूक्रेन पर हमला कर उसपर फ़तह हासिल करनी थी लेकिन वो अपने काम में फ़िलहाल कामयाब होते नहीं दिख रहे.

साल 1999 में चेचेन्या में सेना की एक टुकड़ी की जीत दिलाने के बाद से गिरासिमोफ़ ने पुतिन के कई कामयाब अभियानों में अहम रोल अदा किया है. यूक्रेन के युद्ध पहले भी वो बेलारूस में सेना के अभ्यास में बढ़ चढ़ हिस्सा ले रहे थे.

रूसी मामलों के विशेषज्ञ उन्हें 'कभी न हंसने वाला व्यक्ति' करार देते हैं. क्राइमिया की जीत में भी उनकी अहम भूमिका रही है.

कुछ रिपोर्टस के मुताबिक अब उन्हें दरकिनार कर दिया गया है क्योंकि यूक्रेन का अभियान अपेक्षा के अनुसार नहीं चल रहा और दूसरे सेना का मनोबल भी गिर रहा है.

लेकिन आंद्रेई सोल्डाटोफ़ कहते हैं, " ये ख़ुशफ़हमी अधिक लगती है. पुतिन हर सड़क और हर बैटेलियन पर कंट्रोल नहीं रख सकते. ये काम सेना प्रमुख का है."

रक्षा मंत्री को भले ही फौजी वर्दी पसंद हो पर उन्हें मिलिट्री का कोई अनुभव नहीं है और इसके लिए उन्हें भी सेना प्रमुख की मदद चाहिए होगी.

निकोलाई पातरूशेव
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लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में रशियन पॉलिटिक्स के प्रोफ़ेसर बेन नोबल कहते हैं कि पातरुशेव रूस में सबसे बड़े हार्ड लाइनर हैं जिनका मानना है कि वर्षों से पश्चिमी देश रूस के पीछे पड़े हैं.

पातरूशेव पुतिन के उन तीन सहयोगियों में से एक हैं जो 1970 के दशक में सेंट पीटर्सबर्ग के दिनों से उनके वफ़ादार रहे हैं. उस वक्त शहर का नाम लेनिनग्राड था.

इस तीकड़ी के बाक़ी दो लोग हैं - सिक्यूरिटी सर्विस के चीफ़ अलेक्ज़ेंडर बोर्तनिकोफ़ और विदेशी ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुख सर्गेई नारिश्किन. राष्ट्रपति पुतिन के नज़दीकी लोगों को सिलोविकी कहा जाता है. लेकिन ये तीन पुतिन के, सिलोविकी से भी अधिक क़रीब हैं.

राष्ट्रपति पुतिन पर जितना प्रभाव पातरुशेव का है उतना किसी और का नहीं. वे न सिर्फ़ केजीबी में एक साथ थे बल्कि उन्होंने केजीबी के बाद बनी एफ़एसबी में भी वर्षों तक प्रमुख की भूमिका निभाई है.

यूक्रेन पर हमले के तीन दिन पहले हुई रूसी सिक्योरिटी काउंसिल की उस चर्चित मीटिंग में पातरुशेव ने कहा था कि अमेरिका का उद्देश्य रूस के टुकड़े करना है.

ये बैठक कई मायनों में अनोखी थी. इसे बाद में टीवी पर भी दिखाया गया. इस बैठक में सिक्यूरिटी टीम का एक एक व्यक्ति उठता था और एक बेंच के पीछे बैठे पुतिन के सामने यूक्रेन के बारे में अपनी राय रखता था.

उस मीटिंग में पातरुशेव ने अपना टेस्ट पास कर लिया था. बेन नोबल कहते हैं, "ये युद्ध के हिमायती हैं और इस बात का आभास हो रहा है कि अब पुतिन पातरुशेव की कट्टर पॉज़िशन के करीब जा रहे हैं."

बोर्तनिकोफ़
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रूसी राजनीति पर नज़र रखने वाले कहते हैं कि राष्ट्रपति पुतिन अपने सिक्योरिटी चीफ़ से मिली सूचनाओं पर भरोसा करते हैं. इसीलिए अलेक्ज़ेंडर बोर्तनिकोफ़ पुतिन के विश्वासपात्र हैं.

बोर्तनिकोफ़ केजीबी के ज़माने से पुतिन को जानते हैं. पातरुशेव ने जब 2008 में एफएसबी ( केजीबी की उत्तराधिकारी संस्था) छोड़ा तब से इस ख़ुफिया संस्था की कमान बोर्तनिकोफ़ के हाथ में है.

पातरुशेव और बोर्तनिकोफ़ - दोनों ही पुतिन के करीबी हैं पर जैसा कि बेन नोबल बताते हैं - "ये कहना बहुत ही मुश्किल है कि इस वक्त मॉस्को में किस की बात मानी जा रही है."

एफ़एसबी का अन्य रूसी एजेंसियों पर भी ख़ासा प्रभाव है. यहां तक कि इस ख़ुफ़िया संस्था का एक सशस्त्र बल भी है.

आंद्रेई सोल्डाटोफ़ कहते हैं कि बोर्तनिकोफ़ सूचना का अहम साधन हो सकते हैं पर लेकिन वो बाक़ियों की तरह सलाह नहीं दे पाते होंगे.

सर्गेई नारिश्किन
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लेनिनग्राड के जासूसों की तिकड़ी को पूरा करते हैं सर्गेई नारिश्किन. वे पुतिन के सारे सियासी करियर में उनके साथ रहे हैं.

उस चर्चित सिक्योरिटी काउंसिल की बैठक में नारिश्किन पर पुतिन ख़ूब ख़फ़ा दिखे थे. उस वाकये का क्या अर्थ लगाया जाए?

दरअसल जब बैठक में पुतिन ने नारिश्किन से यूक्रेन की हालात पर राय मांगी तो वे कुछ असमंजस में दिखे. वे वक्तव्य के दौरान थोड़े कंफ़्यूज से दिखे. पुतिन ने यहां तक कहा - 'हम यहां वो डिस्कस नहीं कर रहे जो आप कह रहे हैं.'

वो लंबी सेशन का शायद एक हिस्सा था जिसमें नारिश्किन अहसज दिखे. शायद जानबूझ उस हिस्से को टीवी पर दिखाया गया हो.

बेन नोबल कहते हैं, "ये एकदम शॉकिंग था. वो आमतौर पर काफ़ी सुलझे हुए और शांत स्वभाव के हैं.

रूसी सुरक्षा मामलों के जानकार मार्क गेलियोटी को तो ये सारी बैठक ही काफ़ी निगेटिव लगी. लेकिन आंद्रेई सोल्डाटोफ़ को लगता है कि पुतिन मज़े ले रहे थे.

आंद्रेई सोल्डाटोफ़ कहते हैं, "पुतिन अपनी नज़दीकी सलाहकारों के साथ ख़ूब मज़े लेते हैं. ये इसी क्रम में हुआ होगा."

सर्गेई नारिश्किन 1990 के दशक से पुतिन के साथ हैं. 2004 में वे पुतिन के ऑफ़िस में शामिल हुए और फिर संसद के स्पीकर बने. लेकिन वो रूस की रशियन हिस्टोरिकल सोसाइटी के भी प्रमुख हैं.

जानकार कहते हैं कि उन्होंने पुतिन को उनके क़दमों के समर्थन में, एक वैचारिक आधार भी दिया है.

पिछले साल सर्गेई ने बीबीसी के स्टीव रोज़नबर्ग को एक इंटरव्यू में बताया था कि रूस ने कभी भी किसी को ज़हर नहीं दिया और न ही कभी किसी मुल्क पर साइबर हमला किया.

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लावरोफ़
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18 वर्षों से लावरोफ़ रूस के सबसे सीनियर डिप्लोमैट हैं. भले ही क्रेमलिन के फ़ैसले में उनकी न चलती हो पर दुनिया के सामने रूसी पक्ष, वे बख़ूबी रखते हैं.

71 साल के सर्गेई लावरोफ़ इस बात का सबूत हैं कि पुतिन को अपने माज़ी के दोस्तों पर अधिक भरोसा है.

लेकिन लावरोफ़ एक चालाक राजनयिक हैं. पिछले महीने उन्होंने ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज़ ट्रस की रूसी भूगोल की जानकारी का मज़ाक उड़ाया था. एक बार वो यूरोपीय संघ के विदेशी मामलों के प्रमुख जोसफ़ बोरेल का भी मज़ाक उड़ा चुके हैं.

लेकिन अरसे से यूक्रेन के विषय पर रूस के भीतर उन्हें कोई नहीं पूछता. और एक आक्रामक छवि के बावजूद वे यूक्रेन पर कूटनीतिक वार्ताओं के हिमायती रहे हैं. ज़ाहिर है पुतिन ने उनकी सलाह को तरजीह नहीं दी है.

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वैलेन्तीना मातवियेंको
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वैलेन्तीना मातवियेंको पुतिन के नज़दीकी सलाहकारों में अकेली महिला हैं. उन्होंने सुनश्चित किया कि रूस की संसद का ऊपरी सदन यूक्रेन पर हमले पर मुहर लगाए ताकि सेना को देश के बाहर भेजा जा सके.

वैलेन्तीना मातवियेंको भी सेंट पीटर्सबर्ग के ज़माने से पुतिन के साथ हैं. साल 2014 में उन्होंने क्राइमिया के रूस में विलय में भी पुतिन की मदद की थी.

लेकिन उन्हें कोई बड़े फ़ैसले नहीं करने दिए जाते. पर बहुत कम लोग ये बता पाएंगे कि दरअसल मॉस्को में आख़िर किसकी बात मानी जाती है.

रूसी सिक्योरिटी काउंसिल के अन्य सदस्यों की तरह वैलेन्तीना मातवियेंको का भूमिका भी शायद ये दिखाने की है कि सारे फ़ैसले मिलकर लिए जा रहे हैं. ये संभव है कि क्या करना है इसका फ़ैसला रूसी नेता पहले ही ले चुका हो.

विक्तोर ज़ोलोतोफ़
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राष्ट्रपति पुतिन के बॉडीगार्ड रहे विक्तोर ज़ोलोतोफ़ अब रोस्गवार्दिया (नेशनल गार्ड) के प्रमुख हैं,

इस संगठन को छह साल पहले पुतिन ने रोमक शासकों के प्रेटोरियन गार्ड्स की तर्ज पर इस निजी सेना का गठित किया था.

अपने निजी बॉडीगार्ड को एक नए संगठन का प्रमुख चुनकर पुतिन ने अपने लिए वफादारी सुनिश्चित कर ली थी. इस वक्त विक्तोर ज़ोलोतोफ़ के संगठन में चार लाख सैनिक हैं.

वेरा मिरोनोवा का मानना है कि रूस की असली योजना, कुछ दिनों के भीतर यूक्रे पर कब्ज़ा करने की थी. लेकिन अब जब फौन कमज़ोर पड़ रही है तो नेशनल गार्ड आगे आ रहे हैं.

लेकिन दिक्कत ये है कि नेशनल गार्ड के लीडर के पास कोई सैन्य प्रशिक्षण नहीं है. उनकी फ़ोर्स के पास टैंक तक नहीं हैं.

और किसकी सुनते हैं पुतिन?

प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तिन के जिम्मे अर्थव्यवस्था को संभालने का काम है पर युद्ध के बारे में उनकी राय मायने नहीं रखती.

राजनीतिक टीकाकार येवगेनी मिंचेन्को के अनुसार मॉस्को के मेयर सर्गेई सोबिनिन और सरकारी तेल कंपनी रोसनेफ्ट के प्रमुख इगोर सेचिन भी पुतिन के करीब हैं.

बोरिस और आर्कडी रोटेगबर्ग दो रूसी अरबपति भाई हैं. यो दोनों पुतिन के बचपन के दोस्त हैं. और अरसे से उनके करीबी रहे हैं. साल 2020 में फोर्ब्स मैग़ज़ीन ने उन्हें रूस की सबसे अमीर फ़ैमिली बताया था.

इस ख़बर में बीबीसी रूसी सेवा की ओल्गा इव्शिना और कातेरिना खिंकुलोफ़ा से भी मदद ली गई है.

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